1 Jun 2012

व्यथा एक गाँव कि !!!


एक गाँव था भारत में| जिसका नाम सुखसागर था| वहां कुछ छोटे और कुछ बड़े किसान रहते थे| सभी में बड़ा प्रेम था| सब मिल जुल कर रहा करते थे| मेहनत करते थे जम कर और फसल इतनी अच्छी पैदा होती थी की वहां से शहरों में भेजी जाती थी| उन फसलों के वजह से शहरियों को भोजन मिल रहा था| साथ ही ये किसान जिनके पास जीवन-यापन का खेती के अलावा कुछ नहीं था फिर भी ये खुश रहा करते थे अपनी अच्छी पैदावार के वजह से|

उसी गाँव में एक छोटा किसान था जिसका नाम था सुरेश| सुरेश के परिवार में कई लोग थे एक भरा पूरा परिवार था| सुरेश, सुरेश की माँ, सुरेश के पिता, सुरेश की बीवी, सुरेश के ३ बच्चे एक छोटी बहन जो शादी के योग्य हो गई थी और उसकी शादी तय भी हो गई थी एक किसान के ही घर में और बहन अभी पढाई भी कर रही थी, एक छोटा भाई जो पढाई कर रहा था| इस पुरे परिवार की जिम्मेदारी सुरेश के ऊपर थी और इनका पूरा जीवन-यापन केन्द्रित था खेती पर| चाहे कड़कती धुप हो या ठिठुरनभरी ठण्ड या फिर मुसलाधार बारिश सुरेश हमेसा अपने खेती को संवारने में लगा था| सुरेश की मेहनत का नतीजा था की पुरे गाँव में लोग उसके मेहनत और उसके फसलों की दाद दिया करते थे|

पर २ फसल पहले हुआ कुछ ऐसा जिसने सुरेश और सुरेश जैसे और किसानो की कमर तोड़ दी|

लगातार बढ़ रहे डीजल के दाम ने खेतों की जुताई को इतना महंगा कर दिया की खेत परती रहने लगे लोगों के|

गायों की संख्या कम हो जाने के वजह से गायों का दाम इतना बढ़ गया की गाय की कीमत किसानो के खरीदने की शक्ति से ऊपर चली गई और यही हल हुआ बैलों के साथ| किसानो के यहाँ बैल नहीं मिल पा रहा है| चारा तो कोई और खा जा रहा था तो उन गरीब किसानो के पास चारा के लिए कोई साधन नहीं बचा था| अब सुरेश जैसे किसानो के लिए खेतों की जुताई एक असंभव कार्य हो गया?

उस पर से सुरेश जैसे किसानो के ताबूत में आखिरी किल साबित हुआ जब खेतों में डाली जाने वाली खाद जो उस समय ४२० रुपये की थी पर मिलती थी ४८० रुपये में| वही खाद पिछले फसल में बढ़ कर ९५० रुपये की हो गई परमिलती थी ९८० रुपये की|

पर सुरेश जैसे किसानो के लिए सबसे खतरनाक बात हुई जब उसी खाद को कहा जाने लगा की वो १९६० रुपये की मिलेगी| अब पिछली फसल में जो कर्ज लिया था वो वापस नहीं हो पाया था क्यूंकि पानी सही से नहीं मिला था| और इस बार कहीं से मदद नहीं मिल रही थी सुरेश को ताकि वो फसल की बोवाई कर सके| तभी उसे पता चला की बैंक से लोन मिल रहा है किसानो को| सुरेश बैंक गया और वहां के बैंक मैनेजर से मिला| बैंक मैनेजर ने कहा की लोन तो सुरेश तुमको मिल जायेगा पर उस बैंक मैनेजर ने ऐसी शर्त रखी की उसे सुन कर सुरेश वहीँ फफक-फफक कर रो दिया| बैंक मैनेजर ने सुरेश से लोन का एक हिस्सा लोन सैंक्सन होने से पहले ही माँगा| सुरेश जिसकी इतनी भी हैसियत नहीं थी की वो एक बोरी खाद खरीद सकता था वो इतना पैसा कहाँ से देता|

सुरेश बैंक से घर आया| सुरेश की माँ और बीवी गाँव के बड़े महुवा के पेड़ से महुवा चुन कर लायीं थी क्युकी उनके पास खाना बनाने को कुछ नहीं था| पर सुरेश की रोनी हालत देख सभी की भूख मर गई| बच्चे भूख से बिल-बिला रहे थे| घर में शादी का सामान एक तरफ रखा हुआ था| पर अब पुरे घर को चिंता हो गई की जहाँ घर के लोगों को खाने के लिए कुछ नहीं है वहां बारात का स्वागत कैसे करेंगे|

सुरेश घर आते वक़्त बाजार से अपने अंतिम बचे हुए पैसे एक पुडिया लाया था| उसने अपनी बीवी से बोला की सुरीली तुम माँ का पैर दबाओ माँ थकी हुई है मैं महुवा का हलवा बनता हूँ| सुरेश हलवा बनाने गया और उस हलवे में उसने उस पुडिया को उड़ेल दिया और बड़े प्यार से वो हलवा पुरे परिवार को दिया उसने| सारे बच्चो, माँ-बाप, भाई-बहन और बीवी के साथ सुरेश ने भी हलवा खाया|

रात गुजरी और हर दिन की तरह सुबह हुई| सुरेश का चचेरा भाई रमेश और कुछ पडोसी सुरेश से मिलने आये पर सुरेश के घर का दरवाजा अभी तक बंद था| सभी को अचम्भा हुआ की जो सुरेश और उसका परिवार तडके सुबह उठ जाता था वो आज इतना दिन चढ़ने पर भी कैसे सोया हुआ है| बहुत बार दरवाजा बजने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला तो सुरेश का भाई अपने छत से सुरेश के घर में दाखिल हुआ| घर में दाखिल होते ही सुरेश के भाई की हृदयविदारक चीख निकल गई| घर के अन्दर सुरेश का पूरा परिवार मरा पड़ा था| कही बच्चे लुढके पड़े थे तो कहीं बूढ़े माँ-बाप| गाँव वालो ने कैसे कैसे करके आपस में चंदा करके सुरेश के परिवार का दाह-संस्कार किया|

बात आई गई और हो गई| पर धीरे-धीरे पूरा गाँव एक श्मसान में तब्दील हो गया| क्युकी न तो पिने को साफ़ पानी मिल रहा था और न ही खाने को कुछ था और न ही उगने को कुछ था| प्रशासन ने खुश हो उस गाँव को एक होटल के व्यापारी को दान कर दिया| उस होटल के व्यापारी ने उस श्मसान को एक शानदार होटल में तब्दील कर दिया जहाँ आए दिन अब पार्टियाँ होती हैं और पार्टी करने वाले और कोई नहीं हमारे बेशर्म नेता हैं| जिस गाँव सुखसागर में अभी तक खाने बिना लोग मर गए उसी गाँव में आज नदियाँ बह रही हैं कबाब, शबाब और शराब की|

अब इन नेताओं को इन्तेजार है ऐसे ही किसी गाँव के खाली होने का ताकि वहां भी कोई होटल या गायों का कत्लखाना बनाया जा सके|

क्या आपकी जानकारी में है कोई ऐसा गाँव जो श्मसान में तब्दील हो चूका हो तो हमारे नेताओं को बता दें बड़ी कृपा होगी|


3 comments:

  1. वाह विनीत भाई ,आपने किसानों की हृदयविदारक मौतों का लेख लिख कर बहुत ही पुण्य कार्य किया है | किसानों की बदहाली और मौतों के कारणों का आपने सटीक आंकलन किया है | आपके इस मार्मिक लेख को पढ़ कर कोई भी, नेताओं और व्यापारियों के गठजोड़ द्वारा, देश के अन्नदाता के खिलाफ चलाये जा रहे साजिशों को आसानी से समझ सकता है | किसानों की हृदयविदारक मौतें अभी भी लोगों को झकझोर नहीं पा रहीं हैं कारण ,कहीं न कहीं राजनेता ऐसी खबरों को ज्यादा समय तक समाचार पत्रों और टेलीविज़न की सुर्खियाँ नहीं बने रहने देते | ऐसे में नेताओं और मीडिया का घिनौना गठजोड़ देशभक्तों और समाजसेवकों की उम्मीदों पर पानी फेर देता है | मैं भी किसानों की दुर्दशा और उन पर हर तरफ से मार पड़ते देख कर काफी व्यथित हूँ | इस देश में फैशन ,ग्लैमर और आइ पी एल के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये तो उड़ाए जा सकते हैं मगर किसानों की मदद के लिए देश में पैसे नहीं हैं | अगर देश में इतने पैसे वाले हैं तो उनके ऊपर ही बोझ बढ़ा कर गरीब किसानों को बोझ मुक्त क्यूँ नहीं किया जाता | देश में व्यापारी रातों रात पैसे बना रहे हैं , कैसे ? उनके ऊपर बोझ क्यूँ नहीं बढाया जाता ? जिस देश में अरबों रुपये के घोटाले हो रहे हों ,नेताओं के होटल और व्यापार कुछ सालों में विदेशों में फ़ैल जाता हो , नेता और व्यापारी विश्व के अमीरों में स्थान बनाने की होड़ में शामिल हो जाते हों , खिलाडी और अभिनेता रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर रहे हों तो .........ऐसे देश में किसानों की आत्महत्याओं का जिम्मेदार कौन है ?

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  2. bahut sateek aur yathaarthparak likha hai aapne.

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  3. धन्यवाद दी और संतोष भाई...मैं भी एक किसान का ही बेटा हु और कहो तो मैं भी एक किसान हूँ जो जीविका के चक्कर में शहर में रह रहा है पर दिल से वो हमेसा गाँव वाला ही रहेगा...ये कहानी मैंने सोच कर तो लिखनी चाही थी अपने गाँव के ऊपर ही पर कमोबेश जो स्थिति है की ये कहानी सारे गाँव की कहानी बन गई...कोई भी पार्टी किसान के बारे में नहीं सोच रही है...न तो धान या चावल का उचित मूल्य मिल रहा है और न ही गन्ने का समय पर भुगतान हो रहा है...गेंहू की भी कमोबेश यही स्थिति है...ऊपर से सारी खेती से जुडी जरुरत की चीजें दिन ब दिन महँगी होती जा रही हैं...खेतों तक पानी नहीं पहुँच पाता है...अपना ट्यूबवेल लगाने के लिए ग्राम प्रधान और किसके चक्कर काटने पड़ते हैं और चढ़ावा चढ़ाना अलग से...ऐसे में कोई किसान कैसे किसानी कर सकता है

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