अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त जामा मस्जिद को पांचवें मुग़ल बादशाह शाहजहाँ से बनवाया था| शाहजहाँ ने खुद जामा मस्जिद की नींव ६ अक्टूबर १६५० को रखा था| इसके बाद ६ साल बाद १६५६ में जामा मस्जिद बन कर तैयार हुआ| जामा मस्जिद के बन जाने के बाद शाहजहाँ को इसके इमाम के लिए सोचना पड़ा की किसको इस मस्जिद का इमाम रखें| तब शाहजहाँ ने इमाम ढूँढना चालू किया और उज्बेकिस्तान के बुखारा शाह से मिन्नत किया की कोई पैदाईशी पवित्र इन्सान चाहिए इमाम के लिए| तब बुखारा के शाह ने पहले इमाम सैयद अब्दुल घफूर शाह बुखारी को सपरिवार शाहजहानाबाद (दिल्ली) भेजा| इस तरह जामा मस्जिद को पहला इमाम मिला उज्बेकिस्तान से और कमोबेश आज भी वही परिवार जामा मस्जिद का इमाम हैं|
एक और बड़ी विचित्र बात हुई की जिस जामा मस्जिद और उसके आस पास के इलाके के सफाई और मरम्मत के नाम पर भारत सरकार इतने पैसे खर्च करती है (गौर तलब हो की ये जामा मस्जिद पुरातात्विक विभाग के संरक्षण में नहीं आता है) उसी जामा मस्जिद के नौंवे शाही इमाम सैयद मोहम्मद शाह बुखारी ने जामा मस्जिद के उच्च और सुसज्जित ऑफिस को अपने बेटे और उनके बाद शाही इमाम मुलाना सैयद अहमद बुखारी के नाम वसीयतनामा कर दिया था जिसके बारे में कहीं उल्लेख नहीं मिलता है की उस वसीयतनामे को ख़ारिज किया गया हो कभी और अगर वसीयतनामा कर दिया गया इसका मतलब हुआ की वसीयत की गई सारी चीजें व्यक्तिगत सम्पदा अर्थात जामा मस्जिद के आने वाले इमामो की निजी सम्पदा हो गई|
साथ ही ये भी ध्यान रहे की यही जामा मस्जिद जो की पुरातत्व विभाग के अंतर्गत नहीं आता है फिर भी हमारी कांग्रेस
सरकार ने १४५ करोड़ रुपये दिए थे इसके और मजारों के सुन्दरीकरण के लिए|
यहाँ तक की इसी जामा मस्जिद के उत्तरी भाग में १९७७ में ही रिहाईशी घर बना लिए गए थे जिन्हें बाद में कोर्ट को आदेश देना पड़ा तोड़ने के लिए| पर कोर्ट के आदेश को भी बुखारी परिवार के प्रभाव के चलते कुछ नहीं हुआ और बाद में बने रिहईशी ईमारत को नहीं तोडा जा सका| साथ ही जामा मस्जिद के आस पास की दुकाने जो की अवैध हैं उन्हें तक हमारी सरकार छू तक नहीं पाई है जबकि हर जगह के बड़ी से बड़ी ईमारत और ऑफिस को सिल कर दिया गया था २००७ में|
तो आप क्या सोचते हैं किसका कद बड़ा है और कौन किसको नचा रहा है अपने इशारे पर?
ऐसी क्या मज़बूरी है की एक देश की सरकार एक मस्जिद और उसके इमाम के सामने घुटने टेक चुकी है?
afsosjanak
ReplyDeletepar ek bahut hi kadvi sacchai
DeleteThis is a very good example that India or Bhaarat Varsh is not a secular country.... in a secular country, the government does not get involved in religious matters.... next... who does this belong to? well, like most monuments in India, it should legally belong to the country... there fore muslims have no direct inheritance rights on a property of that nature.... in my opinion, no muslim property belongs to individuals or trusts or whatever in India.... all these properties were acquired by muslims USING FORCE...THROUGH GUNDAGARDI ... and therefore have no right on these properties. In fact even the Aga Khan Trust also has no right on all its properties because even this family is muslim and has aquired property by treachery... infact this family is the biggest culprit in dividing our country and given to Pakistan and Bangladesh therefore none of the Aga Khani properties belong to the Aga Khan. All muslim properties should be put under a trust which the government can sort out once the muslim problem has been sorted out....
ReplyDeleteMadhu ji you raised a very good and valid point but the thing is that this is all our government and seculars who all are encouraging these activities. every body is only concern about Muslims by forgetting the real history that how these muslims destroyed our spiritualism and worship places. but now we have to bring all the things infront of these dumbs
ReplyDeleteThis is quite sad
ReplyDeleteI think u should also add tajo mahal truth about taj mahal in ur blog pls google it
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