भूल कर यादें वो अपने पितरों के संहार की,
माला जप रहे हो तुम इन मलेक्षों के प्यार की ?
बुझ चुकी है क्या ज्वाला तुम्हारे रक्त की ?
थू है सिर्फ मंदिरों में घंटा बजाते भक्त की..
भीम अर्जुन के शौर्य की तुम हकीकत भूल के,
क्यों बो रहे हो बीज तुम, खुद के घर में शूल के ?
शर्म से गंगा माँ भी लुप्त हो कर बह रहीं,
ये मेरे बच्चे नहीं हैं, दुनिया भर से कह रहीं..
क्या दिखाओगे मुँह तुम ऊपर उस भगवान् को ?
जब एक मंदिर दे ना पाए तुम अपने श्री राम को..
हिन्दू शब्द ही स्वयं में आग है, अंगार है...
त्याग भी है, दया भी पर अंत में संहार है.....
आभार: संदीप गोएल जी
क्या दिखाओगे मुँह तुम ऊपर उस भगवान् को ?
ReplyDeleteजब एक मंदिर दे ना पाए तुम अपने श्री राम को..
waah...Awesome !
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आंखे बंद करके जान बची समझ जाते हैं लोग
Delete१४०० साल की गुलामी भूल गले मिल जाते हैं लोग
बहु बेटियों की लूटी थी इज्जत कैसे भूल जाते हैं लोग
खंजर पीठ में ले कर कैसे जी पाते हैं लोग