26 Jun 2012

हिन्दू तो जल रहा है

वो खामोश हैं,
वो मदहोश हैं,
वो खोये से हैं,
वो सोये से हैं,
वो व्यस्त से हैं,
वो मदमस्त से हैं,
पर
सिने में दर्द है,
बदन कमजोर है,
हड्डियों में पानी है,
ऑंखें कमजोर हैं,
हाथो में शक्ति नहीं है,
सिने में आग नहीं है,
अपने में लड़ते हैं,
मरते हैं-मारते हैं,
मरते को देखते हैं,
कटते को देख हंसते हैं,
फिर भी आंखे बंद हैं,
पर
होंठ सिले से हैं,
कान बंद से हैं,
क्या करें मजबूर हैं,
घर को चलाना है,
बच्चो को खिलाना है,
देश तो चल रहा है,
हिन्दू तो जल रहा है,
कुछ मलाई खा रहे हैं,
कुछ कौवाली गा रहे हैं,
पर,
कहीं जात-पात है,
कहीं उंच-नीच है,
कहीं भेद-भाव है,
कहने को हम एक हैं,
रश्ते बने तो अनेक हैं,
आँखों में पानी नहीं है,
सिने में रवानी नहीं है,
रगों में खून नहीं है,
आशिक मिजाजी है,
रंगीन हुई तबियत है,
चूँकि दुनिया गोल है||



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