30 May 2012

मेरी गलतियाँ


जाने अनजाने हुईं कुछ गलतियाँ
हुआ कुछ ऐसा रूठे मेरे अपने
दुखा उनका दिल मेरी वजह से
पर सलाम है उनके बड़प्पन को
किया आगाह मुझे बिना नाम लिए मेरा
कारण जो ना था मेरा, वो दिखा मेरा
पर जो दिखा वो सच नहीं था पूरा
सच था कुछ और पर वो दिखा नहीं
छिप गया वो सच मेरी गलतियों के पीछे
बेपरवाही थी वो मेरी और कुछ नहीं
मकसद नहीं था छिपाना तथ्यों को
पर जांचा नहीं मैंने तथ्यों को
मूल श्रोत को जाना नहीं मैंने
और सामने पड़े श्रोत को माना सही मैंने 
इन्सान हूँ गलती होगी मुझी से
गलती पर अपने को गलत कहूँ
ये कूबत है मुझमे 
अपनी गलती को मान बताया उन्हें
अब इन्तेजार है उन अपनों का
करें माफ़ मुझे वो और
मिले स्नेह और सानिध्य उन अपनों का
ये स्नेह का ही तो बंधन है 
जो बांधे रखता है सभी से 

4 comments:

  1. मन का प्रायश्चित हर गलती को धो देता है। उदास न हों। लेखन जारी रखें। शुभकामनाएं।

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