11 May 2012

एयर इंडिया: गलती या साजिस


१९९० के उड्डयन विभाग में एकाधिकार के बाद आज अचानक ऐसा क्या हो गया की एयर इंडिया का मार्केट शेयर घट कर केवल १४% पर गिरा| अभी से 20 साल पहले जब उड्डयन विभाग का विकेंद्रीकरण किया गया तब शायद ही किसी ने सोचा होगा की जिस उड्डयन कम्पनी को जमशेद जी टाटा ने बनाया वो आज बदहाली की ऐसी हालात में होगा की उसके कर्मचारियों को वेतन देने का भी पैसा नहीं बचा होगा| एयर इंडिया की ये हालत एक दिन में या एक साल में नहीं हुई बल्कि ये हमारे भ्रष्ट सिस्टम का नतीजा है या किसी व्यक्ति विशेस की कारगुजारियो का नतीजा|

२००७ में हमारी UPA गवर्नमेंट जिसमे प्रफुल्ल पटेल जी एविएसन मिनिस्टर थे (२००४-११) ने ये घोसडा किया की एयर इंडिया को इंडियन एरलाईन्स से मिला दिया जायेगा| इस मेल मिलाप के लिए एक नयी कम्पनी बनायीं गई जिसका नाम था नेसनल एविएसन कम्पनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (NACIL) जिसमे एयर इंडिया (एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ-साथ) और इंडियन एरलाईन्स (अल्लिएंस एयर के साथ-साथ) मिली जाने वाली थी| २७ फरवरी २०११ को एयर इंडिया और इंडियन एरलाईन्स को इनके सहायक कंपनियों के साथ मिला कर एयर इंडिया लिमिटेड बनाई गई| पर 2006-07 में ही दोनों कम्पनियाँ घाटा में चलने लगीं और घाटा भी कितने का ७७० करोड़ रुपये का| जो की दोनों कंपनियों के २००९ के मिलने के समय तक में बढ़ कर ७२०० करोड़ रुपये का हो गया| पर मार्च २०११ आते-आते तो साडी हदे टूट गईं| एयर इंडिया का कुल कर्जा बढ़ कर ४२,५७० करोड़ रुपये का हो गया और इसके साथ-साथ घाटा अलग से २२,००० करोड़ रुपये का हो गया| और तो और इंडियन गवर्नमेंट से ४२९७० करोड़ रुपये की सहायता की मांग करी गई|

अब देखते हैं की कहा तक सही था ये मर्जर| संसदीय समिति की जाँच रिपोर्ट में ये सामने आया की दोनों कंपनियों को जोड़ने का प्लान पूरी तरह से छुपाया गया और इसमें पारदर्शिता नहीं बरती गई| संसदीय समिति ने कहा, "दोनों कंपनियों को ऐसे समय पर मिलाया गया एक कम्पनी में जब दोनों कम्पनियाँ फ़िनन्सिअलि तैयार नहीं थी और ये उनपर थोपा गया एक ऐसा भार था जिससे ये कम्पनियाँ पूरी तरह बिखर गईं| साथ ही जिसकी भी ये महत्वकांक्षी प्लान था उसे इसकी जिम्मेदारी ले कर जवाब देना चाहिए|"

अब इतना तो सभी जानते हैं की ये दो सरकारी कंपनियों को एक में मिलाने का फैसला कौन कर सकता है

काश ये कहानी यही ख़तम हो गई होती पर नहीं ये कहानी यही ख़तम नहीं होती है बल्कि इसमें इतने गन्दगी के बाद भी एक ऐसा निर्णय सामने आया जिसने इतनी पुरानी कम्पनी को पूरी तरह ख़तम होने के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया| ये कृत्य था विमान खरीद का मामला|

एयर इंडिया ने २४ विमान और इंडियन एरलाईन्स ने ४३ विमान खरीदने का फैसला किया था| पर प्रफुल्ल पटेल के मार्गनिर्देशन में दोनों उड्डयन कंपनियों ने २४ महीनो में ही अपना ६७ विमान खरीदने का प्लान बदल दिया और १११ विमान खरीदने का फैसला किया| अब क्या कोई बताएगा की जहाँ साल का टर्न-ओभर केवल ,००० करोड़ रुपये है वो कम्पनी ३५,००० करोड़ का विमान खरीद रही है वो भी कर्ज ले कर जिसका ब्याज था ,००० करोड़ रुपये| याद रहे की कम्पनी पर पहले से ४२,९७२ करोड़ रुपये का कर्ज था|

यहाँ तो कोई अँधा भी बता सकता है की भाई अंधेर नगरी में लूट मची है लूट लो|

इसके आगे जहाँ प्राइवेट कम्पनियाँ जानी जाती हैं बेहतर सैलरी के वह यहाँ गलत साबित होता है एयर इंडिया के पायलट की सलारी एवरेज १०,००० डालर है वहीँ प्राइवेट कम्पनी के पायलट की सैलरी सिर्फ ,००० डालर| क्या ये भार नहीं है एक डूबती हुई कम्पनी पर?

एक सिनिअर विमान कर्मचारी की माने तो ये विमान कम्पनी हर दिन करोड़ का सर्विस ब्याज दे रही है जिस वजह कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिल रही है|

यहाँ तक तो एक विमान कम्पनी की बेईजत्ति हो रही थी पर देश कैसे शर्मशार हुआ महँ प्रफुल्ल पटेल के कारण वो देखिये:

मुड़ी इन्वेस्टर सर्विस नाम की कम्पनी ने हमारी सरकार और विमान कम्पनी को चेताया की अगर विमान कम्पनी ने जिनसे कर्जा लिया जिसमे प्रमुख हैं SBI बैंक तो कर्ज देने वाले संस्थानों की क्रेडिट रेटिंग गिरेगी| अगर किसी भी देश के ऐसे प्रमुख संस्थानों की क्रेडिट रेटिंग गिरे तो देश के क्रेडिट पर क्या असर होगा ये तो कोई अमेरिका से पूछे जब उसका क्रेडिट गिरा था तब वहां के क्या हालात बने थे|

CAG ने भी अपने रिपोर्ट में १११ विमानों के खरीद को ही जिम्मेदार माना इन विमान कंपनियों के खात्मे को|

बेईजत्ति तो और भी होनी थी| एयर इंडिया को एयर बस A300 और एक बोईंग 747-300M बेचना पड़ा|

अब भारत और भारत के इतने पुराने विमान कम्पनी को डूबाने वाले प्रफुल्ल पटेल जी की जीवनी भी तो जान लें:

ये महाशय ४०० करोड़ के टर्न ओवर की कम्पनी रखते हैं जिसमे ६०,००० लोग काम करते हैं| इनका मुख्य काम है तम्बाकू का| इनकी कम्पनी में बीडी बनाती है| पर इनका बिजिनेस प्रेम यही नहीं ख़तम होता बल्कि रियल एस्टेट, इन्वेस्टमेंट, ऑयल, फार्मा इन सभी में इनके काम हैं|

इन महाशय के ऊपर भ्रस्टाचार के अच्छे खासे आरोप हैं जैसे की एअरपोर्ट के सुन्दरीकरण के नाम पर इन्होने GMR और GVK ग्रुप को १००-२०० करोड़ का नहीं बल्कि हजारो करोड़ का चुना लगाया देश को| भारतीय कनाडा मूल के नाजिर कारीगर ने प्रफुल पटेल पर अपनी विमान मिनिस्ट्री के समय एयर इंडिया की कोई डील दिलाने के लिए १२.५० करोड़ रुपये घुस लिए|

एयर इंडिया में इनका परिवार बिजिनेस क्लास में चलता था या अलग से विमान आता था वो भी बड़ा|

एयर इंडिया ने ये भी माना की बड़े विमानों की खरीद केवल प्रफुल पटेल के कहने पर किया गया|

पर भारत की नाक को चुल्लू भार पानी में डूबने वाले इस भ्रस्ताचार के द्योतक को क्या इनाम मिला....इन महाशय का विभाग बदल दिया गया और इन्हें हेवी इन्दस्त्रिज और प्राइवेट कम्पनी की मिनिस्ट्री मिल गई ताकि ये बाकि की कंपनियों को खा जाये और देश को कंगाल करे|


पर सवाल अभी भी बाकि है....किसको फायदा पंहुचा है इस धोखा धडी में?

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