10 Mar 2014

Wakt Gujar Jayega


ये वक्त गुजर जाएगा, फिर लौट के ना आएगा
लेकिन ये जो जाएगा, फिर बड़ा मजा आएगा
सुन ले ओ प्यारे
सुन ले ओ बंधु
ना तो घबराना कभी, ना तो इतराना कभी
वक्त जैसा है जो भी है बदल जाएगा,
बदल जाएगा, वक्त बदल जाएगा।
जितनी भी परेशानी है अभी तू सह ले
अभी तू सह ले, क्यूंकी

ये वक्त गुजर जाएगा, फिर लौट के ना आएगा
लेकिन ये जो जाएगा, फिर बड़ा मजा आएगा
दर्द भी देता है, दवाई भी मलता है,
रुलाता भी है और यही हँसाता भी है,
वक्त बेरहम है लेकिन है रहमदिल भी,
इस वक्त के आगे ना किसी की भी चलती।

ये वक्त गुजर जाएगा, फिर लौट के ना आएगा
लेकिन ये जो जाएगा, फिर बड़ा मजा आएगा
वक्त सब करता है, वक्त ही सब कराता है,
वक्त बेवक्त है, वक्त पे है ज़ोर किसका,
वक्त के पाबंद बनो, वक्त बेरहम है,
वक्त ने जो दिया है उसको तो संभाल लो,
ज्यादे को भागोगे थोड़ा भी न पाओगे

ये वक्त गुजर जाएगा, फिर लौट के ना आएगा
लेकिन ये जो जाएगा, फिर बड़ा मजा आएगा
वक्त की तुम सुनो, वक्त सुनेगा तुमको
वक्त के वास्ते चल पड़ो वक्त के ही रास्ते
वक्त वक्त वक्त है वक्त ही सशक्त है,
वक्त की करवटें देती हैं सिलवटें
अपनी ढाल तुम बना लो वक्त की चाल को

ये वक्त गुजर जाएगा, फिर लौट के ना आएगा
लेकिन ये जो जाएगा, फिर बड़ा मजा आएगा

Tired at work


रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
फिर हम बेचारे उफ तक नहीं करते हैं,
चुप रह कर सब कुछ हम सहते हैं,
घर आ करके भी हम ना तो रुकते हैं,
खाना बनाते हैं और फेसबुक करते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
सूरज की गर्मी मे दिन को जलते हैं,
चंदा की रोशनी मे भी हम झुलसते हैं,
मशीनों पे अपना सर रख सो जाते हैं,
सपने मे काम-काम ही बड़बड़ाते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
हम भी इन्सान हैं ना की हैवान हैं,
थकते हैं, तेल मालिश हम खुद करते हैं,
मालिश भी करते हैं पोलिश भी करते हैं
भगवान से हम गुजारिश भी करते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
फिर भी हमसे, देखो लोग यूं जलते हैं,
क्यूँ भगवान हम बेचारों को ठोकते हैं,
ऐसी भी क्या है जल्दी, ले आओ जरा हल्दी,
ले आओ जरा हल्दी, ले आओ जरा हल्दी।

7 Mar 2014

Corruption Free Gujarat


भ्रष्टाचार मुक्त गुजरात (आपबीती)


बात 2008 के अप्रैल महीने की है...

मेरी पहली जॉब सूरत मे लगी थी। मैंने अपनी बाइक पल्सर 150 रेल बुकिंग के जरिए दिल्ली से सूरत मंगा ली थी। लेकिन कुछ परेशानियों के चलते मैं मेरी पहली जॉब छोड़ मैं मुंबई शिफ्ट हो गया (200% सैलरी के हाईक पर) लेकिन मेरी बाइक यहीं सूरत मे ही रह गई थी क्यूंकी कागज पूरे नहीं थे। 

मैं अपनी बाइक छोड़ मुंबई चला गया फिर कुछ दिन बाद ही मेरा सूरत आना हुआ। यहाँ सूरत मे मेरे दोस्त रहते थे। हम लोग 3 बाइक पर घूमने निकले। मेरी बाइक मेरे सीनियर चला रहे थे। तभी मस्ती-मस्ती मे धीरे-धीरे चलते चलते हमने कोई ट्रैफिक रूल तोड़ दिया। इतने मे ट्रैफिक पुलिस वाला अपनी बाइक ले कर हमे रोकने आ गया। हमने बाइक रोकी। उसने तुरंत हमारा चालान ठोंक दिया। 

मेरे मामा जो पुलिस सर्विस मे उच्च पद पर हैं यहाँ गुजरात मे ही थे उस समय। मैंने उनको फोन किया की शायद हमारी बाइक छुट जाए। मेरे जैसे भांजे की बात सुन मेरे मामा ने ट्रैफिक पुलिस वाले से बात की लेकिन ट्रैफिक पुलिस वाला नहीं माना। 

तब हम दोस्तों ने दिल्ली वाला तरीका अपनाया की कुछ ले दे कर यहाँ से निकल चलें लेकिन ट्रैफिक पुलिस वाला इस पर भी नहीं माना और हमारी गाड़ी जब्त कर ली। कहा सारे पेपर ले कर आओ तब गाड़ी छूटेगी RTO से।

मेरी गाड़ी 2 महीने पड़ी रही सूरत के पुलिस स्टेशन मे लेकिन ट्रैफिक पुलिस वाले ने मेरी बाइक छोड़ी नहीं। सारे कागज देने और वैध कागजात देने के बाद केवल चालान का पैसा ले कर RTO ने मेरी गाड़ी छोड़ दी। 

हाँ यही अगर दिल्ली या भारत के किसी और प्रदेश मे होता तो ट्रैफिक पुलिस वाले को 100 का नोट पकड़ा हम अपने रास्ते होते और बाइक भी हमारे पास होती। 

ऐसे मे मैं कैसे मान लूँ की गुजरात मे भ्रष्टाचार है।