30 Sept 2014

एक कटी पतंग (Ek Kati Patang)




मेरा जीवन एक कटी पतंग,
बल्खाता हूँ, मचल जाता हूँ, 
बिन डोर के यूंही चला जाता हूँ,
कभी इस ओर तो कभी उस ओर,
कभी इस डगर तो कभी उस डगर,
बिन मंजिल के मैं बस उड़ा जाता हूँ,
कोई डोर होती जो थाम लेती मुझको,
कंधे पर यूं हाथ रख रोक लेती मुझको,
बवंडर मे नीले अंबर मे हिचकोले खाता हूँ,
हिचकोले खाते मंद-मंद मुस्काता हूँ,
शीतल मंद पवन मे नीचे गिर जाता हूँ,
कभी बिजली के खंभे मे अड़ता हूँ,
कभी नंगे तारों पर झूल सा जाता हूँ,
सूखे दरख्तों मे भी लिपट मैं जाता हूँ,
कभी चिथड़े मे बदल जाता हूँ,
तो कभी कचरे मे मिल भी मैं जाता हूँ,
क्या करूँ क्या ना करूँ सोच घबरा जाता हूँ,
चाहता हूँ थाम लूँ खुद को, रुक जाऊँ,
ठहर जाऊँ, थम जाऊँ, सो जाऊँ, रम जाऊँ,
लेकिन जिंदगी इतनी बेरहम हो गई है,
इसको ही सोच सिहर जाता हूँ, ठिठक जाता हूँ,
सोच के इक बात को यूंही अकड़ जाता हूँ,
अकेला नहीं हूँ मैं इस अंबर की ओट मे
जो होगा देख लूँगा, सह लूँगा, जी लूँगा,
गमों को मय मे मिला कर पी लूँगा,
वीरान इस जिंदगी को अपने तरीके से जी लूँगा॥

29 Sept 2014

रेत पर कभी कोई तकदीर लिखी नहीं जाती (Ret Par Kabhi Koi Takdir Likhi Nahi Jati)




दिल की बात को दिल मे दबाए बैठा हूँ,
होंठ बेजान से पर आँखों से भी कुछ कह नहीं पाता हूँ॥
 
मन की बात को लबों पर दबाए बैठा हूँ,
दिल मे उठती हूक को आँखों मे छुपा नहीं पाता हूँ॥

आज बन गया मेरा दिल भी इक पत्थर,
अब तो जुगनुओं की चमक भी झेल नहीं पाता हूँ॥

भँवर मे कर रहा कोशिश तैरने की,
भूल गया था लहरों से लड़ाई जीत नहीं पाता हूँ॥

दुखी हो गया मेरा मन भी अब तो गालिब,
खुद की चुप्पी ही अब तो मुझसे सही नहीं जाती है॥

मन मे जाने कितने बवंडर दबाए बैठा हूँ,
पर इन आँखों की नमी मुझसे झेली नहीं जाती है॥

कभी मेरी अश्को ने बनाया था समंदर भी,
पर भूल गया की रेत पर कभी कोई तकदीर लिखी नहीं जाती है॥

मेरे जीने की दुआ कौन करे (Mere Jine Ki Dua Kaun Kare)


उदास इस रात मे वीरान दिल की सजी है महफ़ील,
ना कोई हमसफर है, ना है ठिकाना किसी मजिल का॥

ये नामुराद अलसाई जिंदगी कहाँ ले कर आई मुझे,
जिंदगी तो कर गई बेवफाई, शायद मौत दे वफा मुझे॥

अब ना तो कोई तरंग है ना ही है कोई उमंग,
जिंदगी तो बनी मेरी बस एक कटी पतंग॥

खुशी की चाह मे उठाता रहा मैं रंज बड़े,
बदनसीबी मिलती रही, जहां पड़े कदम मेरे॥

दुखते मेरे जख्मों की दवा कौन करे,
सबको अपनी पड़ी है, मेरी परवाह कौन करे॥

इस हाल मे मेरे जीने की दुआ कौन करे,
मुझ मरीज की दवा करे तो कौन करे॥

धुंधली पड़ी आज हर तस्वीर


धुंधली पड़ी आज हर तस्वीर है,
हर तस्वीर की अपनी तकदीर है,
तकदीर को क्या कोसें हम,
आँखों के आँसू कैसे पोछे हम॥

आँसू का स्वाद चखा हमने,
डबडबाई आँखों का राज समझा हमने,
रखा जिनको आँखों मे हमने,
बह गए आज वो आँसू मे मिलकर॥

दिल का हर राज दिया
दर्द का मैंने साज लिया
गीत-गजल सब हैं बहाने
मिले दर्द के ही फसाने॥ 

लोगों ने पूछा क्यूँ सुर्ख हुईं आंखे तुम्हारी,
मैंने हँस के कहा रात को सो ना सका,
बहुत चाहा कह दूँ ये बात मगर कह ना सका,
दिल के दर्द को जुबां पर कभी ला ना सका॥

जख्मों का अपने हिसाब मैं करता किससे,
बाजार मे प्रचलित थे जाने कितने किस्से,
दर्द ही दर्द आते रहे क्यूँ मेरे ही हिस्से,
क्या जीऊँ या मर जाऊँ मैं फिर से!!
 
रोता रहा दिल पर आँखों मे हसरत थी,
आँखों के आँसू को देख सकता है हर कोई,
दिल के आंसुओं की कोई लकीर कहाँ,
दर्द मे मैं पड़ा रहा अब तक, किसी को मेरी परवाह कहाँ॥