29 May 2012

संस्कृत भाषा की विशेषताएं


संस्कृत भाषा का मूल भी दिव्यता से  ही निःसृत है| सम और कृत दो शब्दों के योग से संस्कृत शब्द बना है| सम का अर्थ सामायिक अर्थात हर काल, युग में एक सी ही रहने वाली विधा| समय के प्रभाव से परे अर्थात कितना ही काल बीते इसके मूल स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं होता| जो स्वयं में ही पूर्ण और सम्पूर्ण है| 

कृ क्रियाकृतके लिए प्रयुक्त हुआ है|

संस्कृत में  सोलह स्वर और छत्तीस व्यंजन हैंये जब से उद्भूत हुए तब से अब तक इनमें अंश भर भी परिवर्तन नहीं हुए हैं| सारी वर्ण माला यथावत ही है| मूल धातु (क्रिया) में कोई परिवर्तन नहीं होता यह बीज रूप में सदा मूल रूप में ही प्रयुक्त होती है| 

जैसेभवशब्द है सदा भव ही रहेगा, पहले और बाद में शब्द लग सकते हैं जैसे अनुभव, संभव, भवतु आदि|

संस्कृत व्याकरण में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता| जैसे ब्रह्म अविनाशी वैसे ही संस्कृत भी अविनाशी है| नाद की परिधि में आते हीअक्षर’ ‘अक्षरहो जाते हैं, महाकाश में समाहित ब्रह्ममय हो जाते हैं| सूक्ष्म और तत्व मय हो जाते हैं| इस पार गुरुत्वमय तो उस पार तत्वमय, नादमय और ब्रह्ममय क्षेत्र का प्रसार है|

2 comments:

  1. सत्य वचन!
    और एक खास बात,
    संस्कृत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए भी सर्वोत्तम भाषा है।
    गोपाल कुमार
    अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद.

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    1. सत्य कहा अपने गोपाल जी, तभी नासा जैसी संस्था तक अपने वैज्ञानिको को सिखाने के लिए संस्कृत सिखाने जा रही है पर हमारे देस की विडम्बना है की कोई संस्कृत पढ़ाने वाला छोडिये पढने वाला तक नहीं मिल रहा है...संस्कृत विश्वविद्यालय खोला गया पर वहां लोग केवल नंबर पाने हेतु जाते हैं न सही से पढ़ाने और न सही से पढने वाले...इसका एक बहुत महत्वपूर्ण कारण ये भी हो सकता है की संस्कृत की पढाई के उपरांत भविष्य थोडा डगमगाता हुआ सा दीखता है...पर भाषावों के मूल को बचाने और उसको आगे बढ़ाने का कुछ प्रयास हमें करना होगा...मैं इस विषय को भूल चूका था पर यहाँ मैं धन्यवाद देना चाहूँगा IRON LADY जी को जिनके चलते मेरा भी ध्यान इस तरफ गया और बाकि लोगो के ध्यान में भी इस बात को लाने का मैं प्रयास कर रहा हूँ

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