19 May 2012

धर्मनिर्पेक्षता और हमारा भारत: पर क्या है सच्चाई?


जब कभी कही धार्मिक उन्माद होता है तो स्वयंभू धर्मनिर्पेक्ष रोना चालू कर देते हैं और बोलते हैं की अगर ये सब नहीं रोका गया तो बहुत जल्द भारत में एक आतंरिक लड़ाई चालू हो जाएगी जैसी आज तक भारत में नहीं हुई| अब इतना देखने के बाद मैंने धर्मनिर्पेक्षता को नजदीक से जानना चाहा पर मुझे केवल यही मिला की आज हम जिसे भी देखते हैं चाहे वो जिस पद पर भी बैठा है या जहाँ भी है वो धर्मनिर्पेक्षता की बात करता हुआ दिख जाता है पर धर्मनिर्पेक्षता का मतलब नहीं बता पता है| धर्मनिर्पेक्षता एक बहुत अच्छी बात है| सारे धर्म के लोगो को जोड़ कर एक करने की बात है, एक पथ पर लाने की बात है जैसा धर्मनिर्पेक्ष बताते हैं| पर असल में क्या है ये धर्मनिर्पेक्षता? आइये हम सबसे पहले इस धर्मनिर्पेक्षता का मतलब समझाने की कोशिस करते हैं भारत के सन्दर्भ में|

जहाँ तक भारत में धर्मनिर्पेक्षता का सवाल है, भारत सरकार के तरफ से ही धर्मनिर्पेक्षता की कोई परिभाषा नहीं दिया गया है तो क्या ये धर्मनिर्पेक्षता केवल इस लिए है की जो हमारी सरकार चाहे या धर्मनिर्पेक्षता को लेकर जो भी सोच हो हम पर जबरदस्ती थोप दिया जाये| धर्मनिर्पेक्षता नामक इस गूढ़ प्रश्न का सर्वविदित उत्तर देखें तो वो होता है की देश में सभी धर्मों का दर्जा बराबर रहे कहीं से कोई अंतर ना रहे किन्ही भी धर्मो के बिच में चाहे धर्म के नाम पर चाहे उस धर्म को मानने वालों के संख्या के आधार पर| देश में उपस्थित सारे धर्मों को अपने धर्मानुसार आगे बढ़ने की आज़ादी हो और वो बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के| देश की सरकार का धर्म से कोई लेना देना नहीं होना चाहिए| धर्म देश में रहने वाले लोगो का व्यक्तिगत सोच हो और राह हो|

पर भारत में धर्मनिर्पेक्षता को पूरी तरह से गलत तरीके से समझाया या बताया जाता है कुछ लोगों की अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए| पिछले ६५ सालो में हमने बहुत से राजनेता देखे जो दिल्ली की संसद में बैठ कर हमर देश पर राज कर रहे हैं या किये पर सभी ने धर्मनिर्पेक्षता की परिभाषा अपने स्वार्थ अनुसार दिया ताकि इनकी बनी बनाई दुकान हमेसा फलती फूलती रहे चाहे भारतीय जनता भांड में जाये|

अब अगर हम हमारे संविधान को देखें तो सबसे पहले संविधान संसोधन के ४२ चरण में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा गया और उसके कालम २५-१ में साफ-साफ लिखा है, "धार्मिक अंतःकरण का अधिकार सभी को है, जो चाहे अपने धर्म को खुलेआम व्यक्त कर सकता है, अपने धर्म की बात कर सकता है, अपने धर्म को फैला सकता है|" पर इसके साथ एक और बात संविधान में जोड़ी गई की देश धर्म से जुडी बातो पर ध्यान दे सकता है की इससे दुसरो को आर्थिक और शारीरिक रूप से कोई कष्ट ना हो| इतना ही नहीं लिखा है हमारे संविधान में बल्कि इसके आगे भी लिखा गया है जो की बहुत ही महत्वपूर्ण है|

संविधान के कालम २८ में लिखा गया है की, "कोई भी धार्मिक संस्थान को सरकारी फंड से मदद नहीं मिलनी चाहिए|"

पर हमारे देश की ६५ सालो की सरकारों ने संविधान के इन सिद्धांतों को इतना तोड़-मरोड़ दिया की ये धर्मनिर्पेक्ष शब्द मात्र एक मखौल बन कर रह गया हमारे देश में| अब जब हमारे संविधान में सीधे-सीधे धर्मनिरपेक्ष की परिभाषा दे दी गई है की कोई भी भारतीय सरकार से जुड़ा किसी धर्म के बारे में नहीं सोचेगा और न ही व्यक्तिगत रूप से उस धर्म से जुड़े लोगो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपने से जोड़ने की कोशिस करेगा तब हमारे राष्ट्रपति भवन में कभी ईद के मौके पर तो कभी दिवाली के मौके पर क्यों लोगो को आमंत्रित किया जाता है| हमारे नेता फिर चाहे वो जो कोई भी हो वो अधिकांश तौर पर इदी बांटते दिख जाते हैं दुहाई दी जाती है धर्मनिरपेक्षता की| हद तो तब हो जाती है जब चुनाव के मौके पर किसी धर्म विशेष के लिए आरक्षण की मांग कर दी जाती है| चलिए छोडिये हम आरक्षण के बारे में यहाँ क्या बताये हमारा मुद्दा तो धर्मनिरपेक्षता है उसके बारे में आगे बताते हैं|

जब संविधान के कालम २८ में ये साफ़-साफ़ लिखा है की किसी भी धार्मिक संसथान को सरकारी फंड से मदद नहीं मिलनी चाहिए तब कुछ चर्चों और मदरसों को कैसे मदद दी जा रही है क्या हमारे देश की संविधान का सीधा-सीधा उलंघन नहीं है?

असलियत ये है की जो भी धर्मनिरपेक्षता की बात करते दीखते हैं वो ही सबसे ज्यादा साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं फिर चाहे वो हमारे धर्मनिरपेक्ष नेता हों या हमारी धर्मनिरपेक्ष सरकार| इसके पीछे और कोई कारण नहीं होता बल्कि उन नेताओ और सरकारों का व्यक्तिगत लाभ होता है जो धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक दिखा राजनीती चाल चलते दिख जाते हैं| जबकि संविधान में एक दम सरल भाषा में कहा गया है की कोई भी सरकार धर्म के नाम पर राजनीती नहीं कर सकती है पर ६५ सालों से धर्म के नाम पर राजनीती करती आ रही हैं सारी धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ| सारी धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ केवल धार्मिक अल्प्संख्यकता को ढाल बना कर उक्त धर्म से जुड़े लोगों को बहलाती फुसलाती हैं जिसका उल्टा असर दुसरे धर्म के लोगो पर पड़ता है जोकि पूरी तरह लाजमी है और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है|

आज तक धर्मनिरपेक्ष भारत में धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने धार्मिक अल्प्संख्यकता का कोई माप दंड नहीं दिया की देश की कुल जनसँख्या का कितना प्रतिशत होने पर उक्त धर्म विशेष को अल्पसंख्यक घोषित किया जायेगा|

अब इन धर्मनिरपेक्षों के सामने मै कुछ सवाल रखना चाहूँगा और आशा करूँगा की धर्मनिरपेक्ष इन सवालो का सीधा और सरल भाषा में जवाब देंगे:-

१. जम्मू-कश्मीर में १९४६ से साम्प्रदायिकता कैंसर की तरह फैली हुई है और खुलेआम वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने पहले तो १९४६ में विद्रोह किया जम्मू-कश्मीर को मुस्लिम राष्ट्र बनाने और वहाँ के तत्कालीन राजा, महाराज हरी सिंह तक को जम्मू-कश्मीर छोड़ने की धमकी दी और फिर आजाद भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद खुलेआम भाषण देते देखे और सुने गए की जम्मू-कश्मीर केवल मुसलमानों का है यहाँ के हिन्दुवों को यहाँ से भगा दिया जाये| और परिणाम आज सबके सामने है की कश्मीर से एक तरह से सारे हिन्दू परिवारों को अपना बसा-बसाया घर छोड़ना पड़ा और दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर होना पड़ा| वहाँ के हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बना दिया गया और ये सब हुआ आजाद भारत में| तब कोई धर्मनिरपेक्ष क्यों नहीं आया सामने?

२. गुजरात दंगे की बात करते हैं आज लोग, शुरुवाती दौर में १९९५ तक में २९५ दंगे हुए गुजरात में और तब शासन में हमारी अभी की धर्मनिरपेक्ष सरकार ही थी और साथ ही अधिकतर दंगाई पाकिस्तान भाग गए उदहारण के तौर पर मै गोधरा के सदवा रिज़वी और चुडिघर का नाम लेना चाहूँगा|

३. गोधरा में साबरमती ट्रेन के साथ ५८ मासूम जानें जलीं तब कहाँ थे ये धर्मनिरपेक्षी|

४. १९८४ में कहाँ थी ये धर्मनिरपेक्षता जब सिखों को खुलेआम सड़कों पर काटा जा रहा था और हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री और भारत रत्न धारी राजीव गाँधी जी ने कहा था की जब बड़ा पेंड गिरता है तब उसके आस पास की धरती हिलती है तो इसमें परेसान होने वाली बात नहीं है| क्या ये धर्मनिरपेक्षता का उदहारण दिया था तब तत्कालीन भारत रत्न विजेता प्रधानमंत्री जी ने?

५. भोजसाला का सरस्वती मंदिर जो की आज भोजशाला कमाल मौला मस्जिद बन चूका है और अभी कुछ समय पहले तक हिंदुवो को साल में एक बार बसंत पंचमी के दिन उस मंदिर के प्रान्गड़ में जाने की इजाजत थी और मुस्लमान हर शुक्रवार को वहाँ नमाज अदा करते थे पर कुछ लोगों के प्रयास और जान गंवाने के बाद हर मंगलवार को मंदिर को हिंदुवो के लिय खोला गया जबकि उस मंदिर में खुदाई करके भी जांचने की जरुरत नहीं है बल्कि वहाँ उस मंदिर की दीवारों और चबूतरों पर आज भी श्लोक खुदे हुए मिले हैं जो एक मस्जिद में नहीं होते| ये क्या है धर्मनिरपेक्षता या कुछ और?

६. अभी हाल में ही हैदराबाद में मंदिर में घंटा बजने पर और राम नवमी मानाने पर प्रतिबन्ध लगाने वाली वहाँ की सरकार ही थी साथ ही हनुमान जयंती मानाने पर भी प्रतिबन्ध लगाने की मांग थी पर जनाक्रोश के कारण उसे पारित नहीं किया गया और कमोबेश इससे भी बदतर स्थिति जम्मू-कश्मीर और बंगाल में है|

७. बंगाल में मुसलमानों को अलग से १०% का आरक्षण देने के साथ-साथ वहाँ मस्जिदों में काम करने वालों को मासिक वेतन के साथ-साथ मुफ्त का इलाज और घर भी| ये कौन सी धर्मनिरपेक्षता है?

उपरोक्त पंक्तियाँ केवल उदहारण मात्र हैं हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष होने के मुखौटे की| ऐसी घटनाएँ लिखने बैठ जाएँ तो पता नहीं कितने ही पन्ने भर जायेंगे|

अब सवाल ये है की क्या सच में हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है या हमारे नेता और लोग जो धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते नहीं थकते हैं?

क्या अनेक कारणों में से कुछ कारण जो ऊपर उल्लेखित हैं वो आपको धर्मनिरपेक्ष दिख रहे हैं?

या यहाँ भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर केवल, जो आज अल्पसंख्यक नहीं रहे उनके वोट को पाने के लिए, दुसरे धर्म विशेष के लोगों के हितों को तक पर रख कर और उन्हें धर्मनिरपेक्ष होने का लबादा ओढा कर नपुंसक बनाया जा रहा है? ताकि उस धर्म विशेष के लोग इतने निचे गिर जाएँ की इन नेताओं की आँखों में बसे इन अल्पसंख्यकों के टुकडो पर पालें और उनके कदमो में पड़े रहें जैसा आज से १००० साल पहले हुआ था जब मोहम्मद गोरी नाम का आतताई आया और उसके बाद कई मुग़ल आते गए और उनमे से कुछ यहाँ बस गए| ये मुग़ल भी भारत की धरती पर वैसे ही घुसपैठिये की तरह आए जैसे की अंगरेज| गए केवल अंगरेज| मुग़ल नहीं गए| तो भारत तो १००० साल से गुलाम था आजाद कब होगा ये नहीं पता और ना ही ये पता है की आजाद होगा भी की नहीं ऐसी स्थिति के चलते?


क्या हम सब आज भी धर्मनिरपेक्षता के आड़ में गुलाम बने रहना चाहते हैं जैसे १००० सालों से गुलाम बने हैं?

क्या हमारे अन्दर का खून पानी बन गया है?

क्या हमारी आत्मा मर चुकी है या खुद हम?

5 comments:

  1. Excellent post. Great presentation. I am proud of you.

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    1. धन्यवाद दिव्या दी, कोशिस करूँगा की मैं हमेसा आपको अपने प्रयासों से गौरवान्वित महसूस कराऊँ और सच लिखूं जैसे आप लिखती हैं

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  2. खून भी है और आत्मा भी जीवित है, हिन्दुओ को जगाने बाला एक क्रन्तिकारी संगठन कि जरुरत है, अब तक जो संगठन बना हुआ है हिन्दुओ के नाम पर वही सो रहा है और उसके संचालन हिजडों के हाथों में है तो ........क्या करें ?

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    1. जब तन जवान हो
      मन जवान हो
      धमनियों में दौड़ता है खून
      तो क्यों सोचें हम किसी और को
      हममे क्या कमी है
      बस हाँथ ही तो मिला कर चलना है
      और चलते ही जाना है
      जब तक या तो मंजिल ना मिले
      या शहादत ना मिले

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  3. bharat tab tak bacha tab tak hindu , hindu ke bina ye desh tik nahi sakta...

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