19 Jun 2014

वो मांगती है मुझसे खुशियाँ ज्यादा




वो मांगती है मुझसे खुशियाँ ज्यादा ,
उसको क्या पता मैं तो ,
तन्हाइयों का इकलौता वारिश हूँ ,
गमों की चोट मैं खाता हूँ ,
पतझड़ को खुद मे संभाले बैठा हूँ ,
आंसुओं के समंदर मे गोते लगता हूँ ,
हिचकियों मे सारी रात बिताता हूँ ,
मुरझाये फूलों का गुलदस्ता हूँ ,
मिट्टी का बेजान पुतला हूँ ,
रेत सा खुद से फिसल जाता हूँ ,
संभलता कम गिरता ज्यादा हूँ ,
आकांक्षाओं के बोझ तले दबा जाता हूँ ,
बेवफाई के धागे मे लिपटा हूँ ,
बिना मंजिल का बेजान मुसाफिर हूँ ,
दोस्तों के लिए हमेसा हाजिर हूँ ,
फिर भी उनके बीच बस एक मुहाजिर हूँ ,
अपनों के बीच भी अकेला पाया जाता हूँ ,
हर दर्द को सिने मे दबाये जीता हूँ ,
बस दिल ही दिल मे हरपल रोता हूँ ॥

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