8 Feb 2013

Secularism a propaganda of injustice

धर्मनिरपेक्षता की एक बानगी 

धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले जरा इन तसवीरों को देख कुछ कहें। ये तस्वीरें कहीं और की नहीं वरन एक संग्रहालय की हैं जो अलग-अलग जगह से लाई गई हैं।

इन मूर्तियों को देख कर यही लगता है की इन मूर्तियों को बड़े ही इतमीनान और प्यार से भंग किया गया है। इन मूर्तियों मे किसी का पैर, किसी का हाथ तो किसी का सर लेकिन जो देवियों की मूर्तियाँ हैं उन मूर्तियों का सर और वक्ष स्थल तोड़ा या काटा गया है।

अब इन धर्मनिरपेक्ष बंधुओं के इतने प्यार को देख मेरे से तो कुछ बहुत ही अच्छी उपाधि निकल रही है लेकिन शायद मेरे सेक्युलर टैग वाले बंधु विशेष प्रकाश डाल सकें इन पर।

वैसे जिनका धर्म निराश और नीरस होता है, तत्वहीन और छिछला होता है, जिन्हे दूसरों का अच्छा स्वरूप नहीं भाता है, वो दुष्ट और नीच प्रकृति के क्रोधाग्नि से जलते हुए गंदे लोगों का ही कुकर्म है ये और शायद यही कुकर्म है की जिसका फल इनका पूरा कुनबा बड़े प्यार से भुगतता है। अगर नहीं पता तो किसी भी इनकी महिला से "हलाला" पूछ लो या फिर ये देख लो की आपा बोलते-बोलते कब ये धापा मार देते हैं पता ही नहीं चलता है और अपने भाँजे के ये अब्बा बन बैठते हैं।

जय हिन्दुत्व.......जय श्री राम

जय भारत........वन्देमातरम

















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