केजरीवाल की बदलती टोपीयाँ
जब से अन्ना आंदोलन चालू हुआ और अरविंद के साथ टोपियों का बाजार चालू हुआ वो बदस्तूर जारी है
सबसे पहली टोपी आई "मैं अन्ना हूँ" "i am annaa" "मी अण्णा आहे"
अगले अनसन मे टोपी आई "मुझे चाहिए जनलोकपाल"
थोड़े समय बाद IAC ग्रुप टूट गया और फिर नई टोपी आई "मैं अरविंद हूँ" - ये इस लिए था क्यूंकी अन्ना के आम लोगों के साथ मिल कर खड़े किए गए आंदोलन को अरविंद ने हाईजैक कर अपना नाम दे दिया आखिर अपनी महत्वाकांक्षा जो पूरी करनी थी...और इस महत्वाकांक्षा के लिए अन्ना की बाली देना मतलब अलग करना जरूरी था।
फिर नम्बर आया "मुझे चाहिए स्वराज" - वैसे ज्ञात रहे की यहाँ स्वराज नामक किताब तक अरविंद केजरीवाल ने चोरी कर ली एक शिक्षक की और अपने नाम से छाप दिया....इसे कहते हैं ईमानदारी
फिर बारी आई "मैं हूँ आम आदमी"
एक सभा मे अरविंद की टोपी पर हिन्दी और उर्दू दोनों मे लिखा मिला "मैं हूँ आम आदमी" .... क्यूँ भाई वन्देमातरम और भारत माता की फोटो को मंच से हटाने के बाद भी बुखारी का सपोर्ट नहीं मिल रहा था क्या?
इसके बाद टोपी आई "आम आदमी पार्टी जिंदाबाद" - इस टोपी को दिखा कर कॉंग्रेस का साथ पर बीजेपी पर बकवास यही केजरीवाल का मकसद बना.....बिके हुए इंसान से इससे ज्यादा क्या उम्मीद की जा सकती है।
इन बदलती टोपियों से एक बात तो समझ आ गई की केजरीवाल बहुत ही प्यार से लोगों को टोपी पहनाता चला जा रहा है.....हाँ टोपी पहनने के बाद आपको सवाल करने का हक नहीं है बस आँख बंद कर जो केजरीवाल कह रहा है उसे मान लो....ज्यादा चूँ-चापड़ की तो केजरीवाल के गुंडे हैं ना
केजरीवाल की टोपी की कसम बड़ा ही धूर्त है यह....जब ये अपने अन्ना का नहीं हुआ....किरण बेदी का नहीं हुआ....अपनी बुड्ढी साथी को अपने घर के बाहर पिटवाया अपने गुंडो से तो ये आम आदमी और देश का क्या खाक होगा
No comments:
Post a Comment