21 Dec 2012

History of Hindus after 50 years

50 साल बाद कुछ इस प्रकार लिखा जायेगा हिन्दुओं का इतिहास



यदि इस देश का हिन्दू अब भी नहीं जगा तो 50 साल बाद कुछ इस प्रकार लिखा जायेगा हिन्दुओं का इतिहास :


कभी इस देश का नाम भारत हुआ करता था, फिर भारत से बदल कर हिंदुस्तान हुआ, अब दोनों भारत और हिंदुस्तान को हम भारतवाशियों ने ख़तम कर बना दिया उसे इंडिया। इस देश में विदेशी आतताइयों के निरंतर  हुए। यहाँ के हिन्दू शासक ताकतवर और साहसी तो जरुर थे परन्तु उनकी आपस में ही फुट थी। धार्मिक कायरता थी इस लिए भारत के हिन्दू शासक विदेशी आतताइयों से हार गए।

यहाँ की औरतें, खाना, जमीन और मौसम बहुत अच्छा था (आज भी अहि) जिस वजह से भारत की ये पावन धरा हमारी वसुंधरा विदेशियों को भा गई। धीरे-धीरे उन विदेशियों का राज हो गया। उनकी संख्या बढती गई। फिर इक और विदेशी कौम आई हमारी इस पावन धरा को कलुषित करने वो थी अंग्रेज। इस अंग्रेज कौम ने हमारे फूट का फायदा उठा यहाँ इसाई कौम को फैलाया तथा अंत में जाते-जाते इस देश के तीन टुकड़े करके थमा दिए हमें एक सोने की थाली में सजा कर और देखो हमने क्या किया उनकी सोने की थाली में दिए हुए विष को भी अमृत समझ कर ख़ुशी-ख़ुशी पी लिया और बड़े आराम से बैठ गए दोनों कोनों पर और इसको और टुकड़ों में बाँटने के काम में मनोयोग से लग गए।

अब क्या कहें की इस देश का हिन्दू महाबेवकुफ़ था या है जो इन आतताइयों को अपना हितैषी और भाई मानता रहा। इसमें इनके कुकर्मों को आसान करने हेतु और भी कई लोग कंधे से कन्धा मिला कर देश को पतन के मार्ग पर चलने के लिए आ गए इनमे प्रमुख थे बहुतों के महाश्रद्ध्येय गाँधी और नेहरु। ये दोनों महाशय देशी वस्तु के उपयोग को बढ़ावा देने की बात तो करते थे परन्तु खुद विदेशी वस्तु को गले में लटकाए घूमते रहे जिसे आज पूरा भारत भुगत रहा है। जी हाँ आपने सही सुना विदेशी वस्तु का गाँधी-नेहरु के द्वारा पूर्ण मनोयोग से उपयोग जीवनपर्यंत। ये विदेशी वास्तु कोई और नहीं कांग्रेस है जिसे "एओ ह्युम" ने बनाई जो खुद एक अंग्रेज था। वैसे नेहरु को तो और भी विदेशी वस्तुओं से कुछ खास प्यार था जैसे की एडविना और जहाँ तक सुना जाता है इनके कपडे पेरिस से आते थे और धुलने को भी पेरिस ही जाते थे परन्तु ये देशी वस्तुओं के परिचायक थे।

हाँ इन्होने देशी वस्तुओं के प्यार में एक कार्य किया की विदेशी वास्तु कांग्रेस को भारत पर थोपने के बाद देशी संगठन "आरएसएस" को देश के लिए खतरा घोषित कर दिया परन्तु जब भी देश पर कोई संकट आया जैसे की भारत-पाक युद्ध या भारत-चीन युद्ध तब इसी "आरएसएस" के धुर विरोधी नेहरु "आरएसएस" के गणवेश में पथसंचलन तथा अधिवेशन में भाग लेते हुए पाए गए। ये एक मौकापरस्ती और चाटुकारिता नहीं थी तो और क्या थी। क्यूंकि आप पीठ पिछे तो इसी संगठन को देश के लिए खतरा बता रहे हैं और देश पर खतरा आने पर इसी संगठन के आँचल में अपना सर छुपाने तथा देश की सम्प्रभुता तथा आतंरिक सुरक्षा की व्यवस्था सौंप आये। आपका मकसद क्या था इसमें पहले तो इस देशभक्त और देशी संगठन को बदनाम कर दो फिर इसको अपने स्वार्थ में उपयोग भी करते रहो क्यूंकि ये "आरएसएस" के लोग तो सीधे और सच्चे इन्सान थे जो देशहित की ही सोचते थे।

फिर आई बारी जाँत-पात की जिसे नेहरु जी आपने अपने झूठे जनेउ जो आप केवल चुनाव के वक्त धारण करते थे ताकि जनेउ दिखा कर आप वोट पा सकें खुद को पंडित दिखा कर। फिर इस जाँत-पात को बढ़ाने के बाद बारी आई झूठी धर्मनिरपेक्षता की जिसे इंदिरा ने बुखारी और जनता दल से हारने के बाद अल्पसंख्यक जिनको जम कर कटवाया इनकी पार्टी ने उनको अपने साथ मिला उनका दोहन करने के नाम पर लागु करवा दिया ताकि  इनके कुकर्म अबाध गति से चलतें रहे।

इसी बिच गरीबी हटाने के नाम पर गरीबों का दोहन कर उच्चस्थ पदासीन लोगों को खरीदने हेतु आरक्षण नाम का भूत छोड़ दिया गया लोगों के पीछे। इसी धर्मनिरपेक्षता और आरक्षण के नाम पर मुल्लायम और दिग्विजय जैसे लोगों ने खुद को धर्मनिरपेक्ष और आरक्षण प्रणेता बताने के चक्कर में इनको इस पद तक पहुँचाने वाले हिन्दुओं को ही बिसरा दिया लेकिन बेचारे हिन्दू आज तक इस बात को समझ नहीं आये और उलझे हुए हैं दलित, पंडित, राजपूत इत्यादि जातियों में और ये लोग मलाई काटे जा रहे हैं हम हिन्दुओं के छातियों पर चढ़ कर।

हाँ इन छद्म धर्मनिर्पेक्षियों का सबसे बड़ा कार्य ये था की "आरएसएस" नाम के संगठन को गाली देते रहो और उनको गलत ठहराते रहो ताकि लोग इनसे नफरत करने लगें और इनके संगठन में जुड़ने से बचते रहें ताकि इनकी दुकान निर्बाध रूप से चलती रहे। इसी बिच आई इनकी मददगार महिला जो पता नहीं क्या थी शादी से पहले और शादी से पहले प्यार के किस्से तो बहुत ही सुनने को मिलते रहते हैं साथ ही बहुत से आरोपियों को अपने घर में 7 सालों तक छुपाये रखना ऐसी महिला सोनिया गाँधी जी इंडिया में पधारीं। इन महिला के आते ही भारत को इंडिया बनाने और धर्मपरिवर्तन कराने का कार्य तथा दलाली और कालाबाजारी का धंधा बड़े ही जोर-शोर से चालू हो गया।

इन सबके बिच खुलेआम लव जिहाद के नाम पर हिन्दू लड़कियों को बरगलाया जाने लगा लेकिन प्रशासन चुप था और है साथ ही हिन्दू भी चुप है क्यूंकि हिन्दू की लड़कियां बरगला कर मुसलमान बनाई जाने लगी थीं। मजारों, फकीरों और चर्चों को कुछ ज्यादा ही प्रचलित किया जाने लगा देश में और हिन्दुओं में ऐसी भावना जगाई जाने लगी की इन जगहों पर उन्हें शांति मिल सकती है उनके धर्मिकस्थल तो बिना काम के हैं लेकिन इतने पर भी हिन्दू चुप रहा।

हिन्दुओं के साधू-संत भी आपसी फूट तथा लालच में अपने मठ तथा मंदिरों में ही पदासीन रहे उससे बाहर निकल अपने हिन्दू भाइयों की सुध लेने का शायद विचार तक अपने मन-मंदिर में नहीं आने दिया। क्यूंकि शायद उनको चढ़ावे और अपने मठ से लगाव रहा। लेकिन इस फूट का फायदा हुआ किसे चर्च और मदरसों को अपनी अनियंत्रित गतिविधियों में लगे रहे तथा पुरे हिन्द देश में चुन-चुन कर मारते रहे और साधू-संत अपने मठों में बैठ धूनी रमाते रहे लेकिन मठ के बाहर कदम नहीं निकाले ताकि उनके पद कोई और न बैठ जाए।

आज हमने इस देश को चार टुकडों में बाँट लिया है। हर शहर में इक चिड़ियाघर बनाया जिसमे हिन्दुओं को कुछ सैम्पल जानवरों के साथ रखे हैं हिन्दुओं को ही कंकण-पत्थर मारने के लिए। ये चिड़ियाघर में बंद हिन्दू ही उनकी औरतों को सताने के लिए दूर-दूर से इन जानवरों के मनोरंजन के खेलों में भाग लेने के लिए जबरदस्ती पकड़ लायी गई हिन्दू महिलाओं और लड़कियों के चीत्कारों को सुन ताली बजाते रहे और आज भी बदस्तूर बजा रहे हैं शायद उन हिन्दू औरतों की चीत्कारों से उन जानवरों से ज्यादा इन छद्म हिन्दू पाखंडियों को मजा आता है।

जिन जानवरों ने भारत को हिन्दुस्तान तथा फिर कब्रिस्तान बनाया वो तो हमारे बिच नहीं रहे परन्तु शायद उनके हरम में कैद हमारी हिन्दू बहनों के कोख से पैदा हुए इन्सान तो नहीं बन पाए अलबत्ता उसी जानवर योनि को ह्रदय से लगा हरम के व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए छद्म हिन्दू पाखंडियों को अपने हरम में सबसे पहले मिला लिया और फिर से अपना जानवर-राज कायम करने के राह पर चल निकले। अब भाई हिन्दू कोख से पैदा हो जानवरों से मिलोगे तो ऐसा ही होगा वो तुम्हरे घरों में घुस तुम्हारी बहु-बेटियों की दावत उड़ायेंगे और अपनी बहु-बेटियों के चीत्कारों को कमरे के बाहर बैठ सुन कर तुम ताली बजाना लेकिन ये सिलसिला टूटे और एक नया सवेरा इस पावन धरा को चूमे ऐसा कोई कर्म न करना।

रुद्राक्ष को पहनना सांप्रदायिक दिख गया लेकिन गंदे जगह के बाल की ताबीज और क्रोस पहनना शांति का प्रतिक बन बैठा। साड़ियों को पहनना बहन जी टाईप हो गया और बदन उघाडू परिधान आधुनिकता का द्योतक बन गया। शादी उपरांत पति या पत्नी के साथ घूमना मज़बूरी और शादी से पहले माँ-बाप को धोखा दे अपनी प्रेयसी या प्रेमी के संग अठखेलियाँ करना सभ्यता बन गया। महाराणा प्रताप, लक्ष्मीबाई और सुभाष चन्द्र बोस आतंकी बन गए परन्तु हिन्दुओं को ही काट कर उनके सर से मीनार बनाने वाले अकबर, औरंगजेब इत्यादि फ़क़ीर और रहनुमा बन गए और तो और जब फ़िल्मी हस्तियाँ हमारे पुस्तकों में स्थान पाने लगीं तो हमें ऐसा ही दूषित परिवेश मिलना तथ्यपरक लगता है।

ऐसे अंधों से एक निवेदन करना चाहूँगा मैं की अपने घर की महिलाओं और बेटियों का चेहरा देख समय रहते मुख्यधारा अपने मूल के तरफ लौट आओ कहीं देर न हो जाए और तुम केवल ताली बजाते रह जाओ।




2 comments:

  1. पचास साल तो बहुत दूर है ऐसे ही लापरवाही के हालात रहे तो बीस-तीस में बाजा बज जायेगा।

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