देखो सुकोमल अप्सराएँ क्षुब्ध हो रही हैं
पावन इस धरा पर इनसी रूपसी अनेक हैं
तप भंग करें किसका प्रश्न ये जटिल है
यहाँ तो सब सूरा-सुंदरी में व्यस्त-मदमस्त हैं
बढ़ रही है असुरों की सेना सो गया विवेक है
वशिष्ट दधिची सा ऋषि आज निष्क्रिय है
हो रहा अब तो पापियों का राज्याभिषेक है
इंद्र पद पाने की बात तो हम छोड़ ही देते हैं
देवाधिदेव पद की प्राप्ति भी हुई कितनी सरल है
फेंके जो तुम बोटी देखो कितने खुलते धोती हैं
चहुँ ओर फैला आधुनिक माया का जाल है
माया को भोगना ही आज का बड़ा तपकर्म है
माया तो मिलती नहीं कभी किसी को है
सब तो इस घोर क्षल का दुष्परिणाम है
दुर्भाग्य सुशोभित धरा का इस कदर बदहाल है
मांगती है ये कुछ, पर मिलता इसको कुछ और है
अक्षम्य खेल खेलने में यहाँ लगे सभी हुए हैं
सुधि इस पावन धरा की देखो किसको अब पड़ी है
परन्तु ! ! !
अब तो उठो ऐ इस धरा के वीर सपूतों
दिखा दो तुम अपना दमखम बाहु बल
दिखा दो भरा है तुममे इतना आत्मबल
नहीं डिगा सकती तुमको कोई रम्भा या लिओन है
दिखा दे इन बेगैरत अप्सराओं को तू क्या है
राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई तेरा कोई धर्म और कर्म नहीं है
जो पड़े अभी भी इन अप्सराओं के दिवास्वप्न में हैं
जग उनको बता तू क्या रखा इस हाड-मांस के तन में है
चल जाग वीर है तू देख धरा पुकारती तुझको है
इस धरा से सुन्दर अप्सरा दिखेगी फिर तुझे कहाँ है !!!
सीने में ज्वालामुखी, हाथों में, अंगार, फिर हो ऐसा संग्राम,
ReplyDeleteदसों दिशायें कांपे, विश्व झुके फिर, फैलाओ ऐसा कीर्तिमान॥
जाग देश के स्वाभिमान।
सीने में एक ज्वाला जाने कब से धधक रही है,
ReplyDeleteज्वालामुखी सी बाहर आने को कब से तड़प रही है,
अब तो बस सोचते हैं, काश वो पल कब आएगा,
जब इटली, रोम, अमेरिका भागवामय हो जायेगा ||
kya baat bhai ne to faad daala ek dum AAJAD VIDROHI
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