घायल पड़ी है भारत माता
लहूलुहान है उसकी छाती
धर्म क्षेत्र का ध्वज गिरा है
धर्म के नाम पर हो रहा अधर्म है
जीना था धर्म हित में जीवन
स्वार्थी मन से कुल्सित था बदन
निज अंगों को करके भंग हम
वर्गों के पीछे भागते हैं हम
विसरा देते हैं राष्ट्रदेवी के
करुण क्रंदन और पुकार को
देवी का वक्ष भी चीरा हुआ है
तपस्वी भोगी भी निरा हुआ है
फड़का दे सुस्त पड़ी भुजाओं को
फिर देख कैसे भागता है दुश्मन
कर पैदा पुनः राणा के भय को
न ला कभी अपने अन्दर तू मय को
एक हाथ तो उठा तू पहले ऐ पगले
फिर देख की कैसे लगता है मेला
बड़ा सौन्दर्य है इस लाल रंग में
बहता है जो तेरे रग-रग में
धरती है ये वीरों की तू याद रख
भाल, ढाल और काल को साथ रख
बढ़ता चल तू इस पथ पर ऐसे पार्थ
जैसे धर्म की रक्षा को उठते हो हाथ
करता रहा अर्पण अब तक तू फूल था
अब बारी आई बलिदान के शूल की
मत माफ़ कर तू गद्दारों के भूल को
काट शीश अर्पण कर भारत-माता को
तन में भगवा, तन पर भगवा
उसके ऊपर दिल और जान भी भगवा
अपना तो कर्म है भगवा, धर्म है भगवा
भ से भारत एवं भ से भगवा, याद रख
याद है भाई पक्का याद है।
ReplyDeletebahut khub bhai... bha se bhagwa bha se bharat yaad rakh..
ReplyDeleteजय भारत !!!
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