सीने में इक ज्वाला जाने कब से धधक रही है,
ज्वालामुखी सी बाहर आने को कब से तड़प रही है,
अब तो बस सोचते हैं, काश वो पल कब आएगा,
जब इटली, रोम और पोप भी भागवामय हो जायेगा ।।
भागते क्यूँ हो तुम इन गद्दार आतताइयों से,
इक बार तो वही पुरानी रणभेरी फूंको तुम,
जो फूंकी थी कभी राणा, लक्ष्मी और सुभाष ने,
फिर देखो कैसे पूंछ सटकाता ये पाकिस्तान है ।।
बात कभी न करना तुम इस कायर सेक्युलरता की,
कोई नहीं है यहाँ जो सोचता सर्व धर्म समभाव की,
सब मनगढ़ंत बाते हैं जिनको बोया निज-स्वार्थ में,
उठ गया पर्दा अब गाँधी नेहरु इंदिरा के "काम" से ।।
सब कुचलना तुम्हे चाहते हैं क्यूँ समझते नहीं हो तुम,
मिल कर सभी मिटाना तुम्हे चाहते हैं इस पावन धरा से,
रोटी चबा कर तुम्हारी ही हाथ मिलाया सबने है आपस में,
फिर चाहे वो हो बांग्लादेश या फिर हो वो अफगानिस्तान ।।
सुन्दर स्रजन!
ReplyDeleteआपका अनुज हूँ आपसे बहुत कुछ सीख रहा हूँ
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