दिल्ली में हुआ लड़की का गैंग रेप
यहाँ लड़की का गैंग रेप नहीं हुआ बल्कि ये पुरे भारत का सामूहिक बलात्कार था जो किसी और ने नहीं बल्कि देश के कर्णधार और सुरक्षा को पैबंद लोगों ने किया। पुरे भारत का बलात्कार करने वाले हमारे नेता जो अपना वेतन बढाने में ही सोचते रहते हैं या कैसे लूट कर सकें इसमें लगे रहते हैं और जो समय बचता है उसमे ये लोग आम जनता को कैसे चुप करा सकें इस कानून को बनाने में लगे रहते हैं काश ये आम जनता की सुरक्षा के लिए भी थोडा सोचे होते।
आदमी तो आदमी यहाँ जो औरते हैं लोक सभा या राज्य सभा या दिल्ली प्रदेश की मुखिया शिला दीक्षित महिलाओं को ही नसीहत देती रहीं। महिलाओं को दी गई नसीहत की बात ही क्या कहें जब शिला दीक्षित अपराधियों को अपने गोद में बैठा कर पुलिस महकमे को अपने पैरों के निचे रखती हैं। कहीं ऐसा तो नहीं की यहाँ का पुलिस महकमा या कहें तो दिल्ली पुलिस के उच्चस्थ पदासीन व्यक्ति ही अपराधियों को सह दे रहा है क्यूंकि शायद अपराधी और उन अपराधियों की अम्मी इसके मुंह में इसके औकात की कीमत ठूंस रही हैं। अगर पुलिस प्रशासन दिल्ली में होता तो कोई मंदिर से भीखारी के कटोरे से एक सिक्का तक नहीं चुरा सकता है।
या शायद पाश्चात्य सभ्यता के लिए मर रही पाश्चात्य महिला जो देश में कुछ भी करके देश को टुकड़ों में विभाजित करने में लगी है लोगों के सोच को इतना कलुषित कर देना चाहती है की देश में कोई परिवार शांति से न रह सके।
जैसे शिला दीक्षित महिलाओं को नसीहत दे रही थी की ऐसे कपडे मत पहनो वैसे मत रहो ये मत करो, अबे बुड्ढी जिस दिन तेरी बेटी अर्धनग्न और नशे की हालत में बेहोश हो बार से निकलती थी तब तो तेरे पाले हुए बॉडी गार्ड रहते थे तो तू क्या समझेगी एक महिला की व्यथा। और जो समय तू ये सलाह देने में बिता रही थी उस समय में तू अगर अपराधियों पर पाबन्दी लगाने में बिताती तो दिल्ली और दिल्ली की महिलाओं की ऐसी स्थिति नहीं होती। क्यूंकि यहाँ महिलाएं तो महिलाएं नवजात नासमझ बच्चियां तक भी शिकार बन रही हैं। अब तू क्या चाहती है शिला दीक्षित की महिलाएं तेरी बेटी की दिन में बुर्के में रहें और रात को................
इसके बाद अब पुलिस को कहने को कुछ बचता ही कहाँ है ये तो ढक्कन की औलादें हैं जो अपने अपराधी बापों के गोद में बैठ अपनी बेटी और बहन का सौदा करते रहने में व्यस्त रहते हैं।
अब जब दिल्ली जो की देश की राजधानी होने के साथ-साथ एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति रखती है उसका ये हाल है तो देश के दुसरे हिस्से और सुदूर के गांवों में क्या हाल होगा। जब देश की राजधानी ही सुरक्षित नहीं है तो देश के गाँव कितने सुरक्षित होंगे ये समझा जा सकता है।
और कहाँ मर गया ये महिला आयोग ? कोई जवाब नहीं आया इनका और नाही इनकी कोई प्रतिक्रिया ? क्या ये महिला आयोग बलात्कार के केसों को मनोरमा कहानियों के किस्सों की तरह चाय की चुश्की की साथ पढ़ कर ठहाके लगाती हैं और अपने बारी का इन्तेजार करती हैं की काश ऐसा मजा इनको कब मिलेगा आखिर।
अब तो इस देश को राम ही राखें ! ! !
महिला आयोग जब नजर आता जब लोग-बाग इन लोगों को जान से मार डालते।
ReplyDeleteऐसे ही कथित मानवाधिकार वाले है, जब नक्सली पुलिस वालों को मारते है तब उनकी बोलती बन्द रहती है लेकिन जब पुलिस वाले नक्सली को मारते है तब ये हाय तौबा मचाते है।