मै अक्सर देखता हूँ की चाहे हम्मे से कोई भी चाहे अपने ब्लॉग पर या फसबूक पर हिंदुत्व से प्रेरित कुछ लिखता है तो मुस्लमान या किसी और के आने से पहले कुछ खुद के बनाये हुए कुछ दलित ठेकेदार वहां टपक पड़ते हैं और अपनी ढपली बजाना शुरू कर देते हैं| अगर मै अपने ब्लॉग की ही बात करूँ तो मैंने कभी भी दलित को हिन्दू से अलग नहीं बोला है हमेसा एक सूत्र में हिन्दू बोला है फिर चाहे वो पंडित हो, राजपूत हो, वैश्य हो, कायस्थ हो या दलित हो| क्या ये जातियां हिन्दू से अलग हैं? मेरे मानने में तो ऐसा कभी नहीं हुआ| ये सारे वर्ण, ये सारी जातियां पूरी तरह से हिन्दू हैं|
अगर मै अपने गाँव का उदहारण लूँ तो मेरे गाँव में मुस्लिम और क्रिस्चियन को छोड़ करीब सारी हिन्दू जातियां हैं| हम सभी एक हैं वहां| हम सभी हिन्दू हैं वहां| हम सभी एक साथ अपने त्यौहार मनाते हैं फिर चाहे वो होली हो या दिवाली हो, दशहरा हो या राखी| कोई अंतर नहीं होता| एक दुसरे के यहाँ हो रहे किसी खास उत्सव जैसे शादी, बच्चा पैदा होना सभी में सम्मिलित होते हैं और एक दुसरे की सहायता करते हैं| फिर यहाँ फसबूक पर ऐसा अंतर क्यों दीखता है?
कुछ लोग आते हैं कहते हैं की दलित शंकराचार्य नहीं बना| दलित कहीं किसी मंदिर का पंडित नहीं बना| अम्बेडकर की दुहाई देते हैं की आंबेडकर की वजह से ही भारत का संविधान बना| अम्बेडकर का वक्तव्य कहते हैं की मै हिन्दू पैदा हुआ पर हिन्दू नहीं मरूँगा मै| छुवा-छूत की दुहाई देते कुछ दिख जाते हैं| कुछ तो यहाँ तक की हिन्दू के ३३ करोड़ देवी देवता कहाँ से?
अब अगर मै उनके पहले आरोप को लूँ की कोई दलित शंकराचार्य क्यूँ नहीं बनता है? शंकराचार्य बनाने के लिए वो धैर्य, वो साधना, वो समर्पण और वो उपासना चाहिए| उसके लिए उस तरह की काबिलियत चाहिए| मै एक राजपूत हूँ| पर अगर मेरे अन्दर इनमे से कोई काबिलियत नहीं है तो मै कैसे सोच सकता हु की मै शंकराचार्य क्यों नहीं बना या क्यों नहीं बन सकता हूँ| और यही बात केवल दलित पर नहीं बल्कि सारे वर्णों पर लागु होती है|
दलित किसी मंदिर का पंडित क्यों नहीं बना अगर ये देखूं मैं तो शायद ये लोग महर्षि वाल्मीकि, कालिदास और वेद व्यास इत्यादि को भूल गए हैं| इन्ही लोगों के बिच से वो भी आए थे| ये लोग क्या कर्म किये की महर्षि या आदरणीय बन गए सभी के? पर क्या वो कर्म आज दीखते हैं सभी के अन्दर तो जवाब होगा नहीं| तो जब यहीं जवाब मिल गया तो कैसे सोचा जा सकता है मंदिर का पंडित बनाने के लिए| कर्म करें फिर कहें|
अगर मै अपने गाँव का उदहारण लूँ तो मेरे गाँव में मुस्लिम और क्रिस्चियन को छोड़ करीब सारी हिन्दू जातियां हैं| हम सभी एक हैं वहां| हम सभी हिन्दू हैं वहां| हम सभी एक साथ अपने त्यौहार मनाते हैं फिर चाहे वो होली हो या दिवाली हो, दशहरा हो या राखी| कोई अंतर नहीं होता| एक दुसरे के यहाँ हो रहे किसी खास उत्सव जैसे शादी, बच्चा पैदा होना सभी में सम्मिलित होते हैं और एक दुसरे की सहायता करते हैं| फिर यहाँ फसबूक पर ऐसा अंतर क्यों दीखता है?
कुछ लोग आते हैं कहते हैं की दलित शंकराचार्य नहीं बना| दलित कहीं किसी मंदिर का पंडित नहीं बना| अम्बेडकर की दुहाई देते हैं की आंबेडकर की वजह से ही भारत का संविधान बना| अम्बेडकर का वक्तव्य कहते हैं की मै हिन्दू पैदा हुआ पर हिन्दू नहीं मरूँगा मै| छुवा-छूत की दुहाई देते कुछ दिख जाते हैं| कुछ तो यहाँ तक की हिन्दू के ३३ करोड़ देवी देवता कहाँ से?
अब अगर मै उनके पहले आरोप को लूँ की कोई दलित शंकराचार्य क्यूँ नहीं बनता है? शंकराचार्य बनाने के लिए वो धैर्य, वो साधना, वो समर्पण और वो उपासना चाहिए| उसके लिए उस तरह की काबिलियत चाहिए| मै एक राजपूत हूँ| पर अगर मेरे अन्दर इनमे से कोई काबिलियत नहीं है तो मै कैसे सोच सकता हु की मै शंकराचार्य क्यों नहीं बना या क्यों नहीं बन सकता हूँ| और यही बात केवल दलित पर नहीं बल्कि सारे वर्णों पर लागु होती है|
दलित किसी मंदिर का पंडित क्यों नहीं बना अगर ये देखूं मैं तो शायद ये लोग महर्षि वाल्मीकि, कालिदास और वेद व्यास इत्यादि को भूल गए हैं| इन्ही लोगों के बिच से वो भी आए थे| ये लोग क्या कर्म किये की महर्षि या आदरणीय बन गए सभी के? पर क्या वो कर्म आज दीखते हैं सभी के अन्दर तो जवाब होगा नहीं| तो जब यहीं जवाब मिल गया तो कैसे सोचा जा सकता है मंदिर का पंडित बनाने के लिए| कर्म करें फिर कहें|
आंबेडकर की बात करी जाती है| मैं भी मानता हु की आंबेडकर का योगदान रहा भारतीय संविधान बनाने में पर एक सवाल है की क्या केवल आंबेडकर का ही योगदान रहा? उस कांस्तिच्युसन ड्राफ्टिंग कमिटी के कई और सदस्य थे पर उनका नाम कही नहीं आता है| क्यों? क्यों केवल आंबेडकर का ही नाम लिया जाता रहा बाकि के ६ सदस्यों को छोड़ दिया गया| मैं उन सदस्यों का नाम यहाँ दे रहा हूँ|
कनैयालाल मनेक्लाल मुंशी (के एम् मुंशी, भूतपूर्व गृह मंत्री, बॉम्बे), अल्लादी कृष्णास्वामी अयीयर (Ex- Advocate General, Madras State), एन गोपालस्वामी अयेंगर (Ex-Prime Minister, J&K and later member of Nehru Cabinet), बी एल मित्टर (Ex-Advocate General, India), एमडी. सादुल्लाह (Ex- Chief Minister of Assam, Muslim League member) और डी पि खेतान (Scion of Khaitan Business family and a renowned lawyer)|
अब जरा हम सभी सोचें इस बारे में की आखिर ऐसी कौन सी सच्चाई छिपा कर कुछ बातों को ही तुल दिया गया?
bahut badhia.....
ReplyDeleteagar desh k note par ganje ka photo ata hai par desh ko gulam banane mai kahi logo ka hath tha phir sabhi ka photo note par kyu nahi hai...jabab.== ushi tarah ambedkar ji ki wahi baat hai..
ReplyDeleteMai Apki Bat Se Sahmat Hu
ReplyDeleteHum Sabhi Hindu Bhaiyo Ko Ek Sath, Ek Mat Me Rahna Chaiye Kuki Hum Hindustani Hai
Aur Hindu Hai
yahan mai ek baat kehna chahta hun ki kuchh maamlon me gandhi ji bahut galat the aur wah hai unka mantra "ahinsa parmo dharmah" lekin gandhi ji ne desh ko gulaam nahi banaya balki unka to janm bhi desh ke gulaam banne ke baad hua tha. unhone to apni job bhi desh seva ke liye chhod di thi. desh ke tukde karwane me sabse bada haath jawar lal nehru ka tha. kamina insaan.
ReplyDeletevineet ji apne bahut badhiya baat kahi haiis post me
bahut achha laga aapka yah lekh ....
ReplyDeleteAisi soch ka ek hi jawab hai. Kyon ek hi Prime Minister hota hai? Parliament to kafi logo se bani hai lekin ek hi ko PM banaya jata hai.... zyada tarah log baate karte hai agyanta ke karan.... jo yeh sab padhe likhe hote to fir desh mai kisi tarah k taklif ka naam or nishan nahi.
ReplyDeleteये बात अगर समझ में आ जाये तो जितनी भी बड़ी परेसनियाँ हैं वो चुटकी में हल हो जाएँगी पर लोग हैं की समझाने को तैयार नहीं होते हैं और बाल गेम खेला जाता है की गेंद कभी इनके पाले में तो कभी गेंद उनके पाले में...पर अंत में बंट तो हिन्दू ही रहा है...अब यहाँ यह समझने की कोशिस करी जाये की इस बन्दर बाँट से किसका फ़ायदा हो रहा है तो फिर गेंद एक ही पाले में होगी और विरोधी खेमा चारो खाने चित्त
ReplyDeleteअगला ब्लॉग इस विषय पर लिखें की किसी मंदिर का पंडित और शंकराचार्य बनाने के लिए वो कौन से धैर्य, वो साधना, वो समर्पण और वो उपासना चाहिए और कृपया कुछ उदाहरण से भी स्पस्ट करने की कृपा करें.
ReplyDeleteजी कोशिस जरुर करूँगा
DeleteVinit ji, aap sahi hain. Lekin yahan kuchh cheejein samajhne ki zaroorat hai. daliton ke upar hue atyacharon ko bhulaya nahi ja sakta aur ye abhi bhi jaari hai, isse bhi inkaar nahi kiya ja sakta. daliton ke saath dweshpurn vyawhar koi naya nahi hai. mujhe lagta hai ki jaatiwaad hinduon ki unity ke liye khatra ban gaya hai, ise mitane ke liye hame jaatiwad se upar utthna hoga. nter caste marriage zaroori hai. daliton ko sirf dikhawe ke liye nahi balki dil se apnane ki zaroorat hai. aaj bhi samaj me dalit par atyachar ho raha hai aur iska fayda INDIA ARABIC aur KHANGRESS utha rahe hain. rahi baat ambedkar ji ki to unhe dalit hone ke karan bahot se atyachar sahan karne pade, samvidhan likhne me sirf unka hi haanth tha, baki members sirf naam ke liye the, lekiin baaki logon ne koi help nahi kiya samvidhan likhne me.
ReplyDeleteGreat....Vineet Ji. Great !! Thnx for this Usefull Information.
ReplyDeleteVineet Ji... Thnx. for this useful Information. Really Great.
ReplyDeletekhuli bahas karna chahte ho vinit ya bas apne hisab se hi logo ko digbramit kar rahe ho
ReplyDeletekhuli bahas karne ki dum hai bhai. to aa jao maidan me nahi to sirf yahi logo ko bramit karte raho bas
ReplyDeleteDear Uday Pal,
DeleteDam to tum rakhte ho bhagne ka....bhai ham to bas apne dil ki likhte jate hain....paresani hai to sar pit lo apna kyunki tumhare samajh ke bahar ki chijen hain ye.....tum apne mauj masti ke kaam me lage raho aur apna rona rote raho....bhramit karne ka kaam kiska hai ye tumse behtar kaun jan sakta hai....wall par aate ho debate karne aur sawal puchne par pith dikha dete ho.....had ho yaar tum...lajja bhi nahi hai tumhare andar balki besharmi ki chadar oodh kar munh uthaye chale aate ho kahin bhi.
भारत के असली " संबिधान निर्माता" कौन ??
ReplyDelete।। डॉ भीम राव अँबेडकर या डॉ राजेँद्र प्रसाद ।।
कुछ मुल्ला टाइप के दलित बोलते हैँ कि इस देश का संबिधान निर्माता अँबेडकर....|वैसे तो "संबिधान निर्माता" जैसा कोइ शब्द हि पुरी दुनिया के किसी देश मेँ नहिँ है अगर इंडिया के संबिधान निर्माण मेँ सबसे ज्यादा योगदान देने बाले कि बात कि जाये तो डॉः राजेन्द्र प्रसाद का हि नाम आयेगा ।क्योँकि संबिधान निर्माण के 13कमीटियोँ मेँ 4 कमिटियोँ के अध्यक्ष डॉ राजेँद्र प्रसाद थे और संबिधान के अध्यक्ष भी ।जबकि अंबेडकर केबल 1 कमीटि के अध्यक्ष तो योगदान किसका ज्यादा हुआ और संबिधान निर्माण मेँ राजेँद्र प्रसाद पिछले 10 सालोँ से लगे हुए थे ।जबकि अंबेडकर को कमिटी मेँबर अंत मेँ बनाया गया था ।अंबेडकर इन्हीँ के चरणोँ तले बैठ कर इनके लिखे संबिधान को केबल फाइल मेँ लगाया करते थे और कुछ अपराधी किश्म केलोगोँ ने इनके काम को किसी अंग्रेजी चमचे के नाम कर दिया।अगर लॉजिक देखी जाये तो संबिधान निर्माता उसे कहा जाना चाहिए जो संबिधान निर्माण के अध्यक्ष थे मतलब डॉःराजेँद्र प्रसाद ।राजेँद्र प्रसाद के लिए संबिधान कोइ नया सामान नहिँ था ।1950 के संबिधान के पहले भी 5 बार संबिधान लिखे जा चुके थे जो निम्नलिखित हैँ।
~Indian Councils Act 1861
~Indian Councils Act 1892
~Indian Councils Act 1909
~Government of India Act 1919
~Government of India Act 1935
जिसमेँ राजेँद्र प्रसाद 1935 के संबिधान के मेँमर्व भी रह चुके थे और 1935 से लगातार संशोधन भी कर रहे थे।इस कारण डॉ राजेँद्र प्रसाद को अगले संबिधान के लिए ज्यादा कार्यभार दिया गया था जबकि अँबेडकर के लिए संबिधान का काम नया था ।इतना होते हुए भी डॉः राजेँद्र प्रसाद को संबिधान निर्माता ना कहलाने का कारण मालुम चलता है कि वे राष्ट्रपति बन बन गये थे और नेहरु प्रधान मंत्री तो अंत मेँ अंबेडकर को राष्ट्रपति राजेँद्र प्रसाद से संबिधान पास करबाना पडा।अगर नेहरु और राजेँद्र प्रसाद को उच्च पद ना मिलता तो राजेँद्र प्रसाद संबिधान निर्माता कहे जाते ।अगर एक सच्चे तॉर पर किसी को जिनियस कहा जायेगा तो वो राजेँद्र प्रसाद होँगेँ ।अंबेडकर को जो भी कुछ मिला सिम्पैथी के आधार पर चाहे "संबिधान निर्माता" का रेसपेक्ट या फालतु ऑनर्ररी डिग्रियाँ ।
अब देखेँ अंबेडकर कि विद्वता कि सच्चाई
MA.,M.SC.(eco.)PHD.(eco.), D.SC(hon)., L.LD(hon)., D.LIT(hon) ., BAR-AT-LAW(hon). अँबेडकर ने इतनी सारी डिग्रियाँ हासिल कीँ लेकिन पढाइ और इग्जाम देकर केबल MA और PHD.का डिग्री हासिल किया गया था दोनोँ economics मेँ ही बाकी कि डिग्रियाँ ऑरेनरी डिग्रियाँ थी जो किसी युनिवर्सिटी द्वारा पाप्युलरिटी,विद ्वता,डोनेशन या युनिवर्सिटी के प्रचार प्रसार के योगदान के लिए दिया जाता है जिसमेँ किसी प्रकार कि तैयारी या इग्जाम कि आवश्यकता नहिँ होती।इन डिग्रियोँ का महत्व एकेडेमिक डिग्रियोँ से हमेशा कम होता है ।अँबेडकर को जीनियस कैसे माने क्योँकि ना तो अंबेडकर ने किसी युनिवर्सिटी क्या अपने क्लाश मेँ भी टाप नहिँ किये थे ।
*जबकि वहिँ दुसरी तरफ डॉ राजेन्द्र प्रसादका क्वालिफिकेशन देखेँ तो किसी जीनियश का हि लगेगा ।इनकी सभी डिग्रियाँ एकेडेमिक थीँ ना ऑनेर्ररी MA(entrance topper) LLM(gold med.) LLD,
*राजेन्द्र प्रसाद के LLD और अंबेडकरके LLD मेँ एक अंतर है कि अंबेडकर का LLD बिना इग्जाम दिये हासिल किया गया जबकि राजेँद्र प्रसाद का इग्जाम देकर ।
*अब D.SC कि बात करते हैँ तो ये भी एक ऑनेररी डिग्री है जिसे एक दशवीँ फेल को भी दिया जा सकता है वो भी बिना पढाईइग्जाम के ।आज प्रीति जिँटा और 8वीँ पास रामदेव बाबा भी D.SC degree holder हैँ ।
*अब D.LIT कि बात करते हैँ तो ये लेखनीके योगदान के लिए ऑनेररी डिग्री है ।कोइ 10वीँ फेल भी इसे ले सकता है