31 May 2012

ना आँखों में शर्म

ना आँखों में शर्म
ना दिल में हया है
हैं बड़े बेपरवाह वो
करते अपनी मनमानी
बाकि सब है बेमानी
इज्जत है इनका पैसा
अबरू इन्होने गवाई है
काम है इनका लूटना
पर दिखाते ईमानदारी हैं
लूट का कोई मौका छूटे ना
लूट की ये डोर कभी टूटे ना
स्विस बैंक का खाता छूटे ना
लूट का हिस्सा लगे बराबर
ढिंढोरा पीटो ईमानदारी का
पूछने वाला है नहीं
जांचने वाला जमाई है
कौन उखाड़ सकता है कुछ
रोम-रोम में बसी बेहयाई है
ना आँखों में शर्म
ना दिल में हया है

सोचा था कभी ये मैंने

सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम
सोचा था कभी ये सभी ने
लेंगे साँस आज़ादी की हम
मिली रुस्वाईयां हमें
एक नौटंकी बनी
जो चली जा रही है
दूर तलक अँधेरा
गुंजायमान अभिमान है
टुटा विश्वास मेरा
घोर अपमान है
देश है नंगा अभी
कुछ की तो तान है
सोचा था मैंने कभी
होंगे आजाद हम
रुशवा किया हमें अपनों ने
झूठी ये शान है
बँटी हमारी ही पहचान है
दुःख हुआ जब देखा मैंने
दुश्मन से गलबहियां
अपनों में तानी तलवार है
इज्जत भी गई
वो शोहरत भी गई
फिर भी झूठा अभिमान है
"मैं" को सोचते हैं हमेसा
"हम" को भूल गए हैं
चाहत अभी भी है आज़ादी की
पर क्रांति नहीं ला सकते हैं
क्रन्तिकारी को भी हैं भूले
क्रांति चाहिए पड़ोस से
सोचा था मैंने कभी
होंगे आजाद हम 
कटुता भरी है दिल में
मक्कारी हमने दुश्मनों से सिखा
उपयोग इनका अपनों पर करते हैं
गैरों से मोहब्बत रखते हैं
अपनों को भुला दिया है
गैरो को गले लगाया
कहते हैं इसे भाईचारा
जब घर में ही ना हो
भाई तो कहा मिलेगा चारा
सोचने की जगह हम 
सुनने में यकीन रखते हैं
वाणी पर संयम नहीं
बात बहादुरी की करते हैं
सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम
प्रेम की भाषा भूल कर
इर्ष्या को है अपनाया हमने
अपने लोगों को ही हमने
अपने से दूर भगाया है
बातें करते हैं बड़ी-बड़ी
छोटी सोच के सताए हैं
दुश्मन जो ना कर सका
वो करके हमने दिखाया है
अपने लोगों को ही हमने
अपने आंगन में दफनाया है
लूटी इज्जत को हमने
हँसी में उड़ाया है 
लूटेरों को ही हमने 
दिल में अपने बसाया है
अपनों को लात
और गैरों को भात 
करो इन बातों को आत्मसात
पहचानो की कौन अपना
और कौन पराया है
किसने दिया मुँह में बीड़ा-पान
किसने पीठ में खंजर चुभाया है
सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम

30 May 2012

क्या: काशी काबा एक है


काशी काबा एक है, एक ही राम रहीम
अंतर इनमे नहीं ऐसा आज भी सभी मानते हैं
सुनाने में अच्छा लगे पर व्यावहारिक नहीं
अंतर है इनको मानने वालो की सोच में 
अंतर है सोच की प्रक्रिया का
जिसने दिया नारा ये 
उसी के मरने के बाद
हुआ बड़ा हंगामा एक
कोई कहा दफनायेंगे इनको
तो किसी ने कहा जलाएंगे
चलिए जनाब ये बातें तो हम छोड़ते हैं
पर कोई तो बता दे
सन ६३६ से चले आ रहे अत्याचार
सन ६३६ से चले आ रहे व्यभिचार
अनाचार, दुराचार और कितनो ही चार
किसने किया ये दुर्व्यवहार

मेरी गलतियाँ


जाने अनजाने हुईं कुछ गलतियाँ
हुआ कुछ ऐसा रूठे मेरे अपने
दुखा उनका दिल मेरी वजह से
पर सलाम है उनके बड़प्पन को
किया आगाह मुझे बिना नाम लिए मेरा
कारण जो ना था मेरा, वो दिखा मेरा
पर जो दिखा वो सच नहीं था पूरा
सच था कुछ और पर वो दिखा नहीं
छिप गया वो सच मेरी गलतियों के पीछे
बेपरवाही थी वो मेरी और कुछ नहीं
मकसद नहीं था छिपाना तथ्यों को
पर जांचा नहीं मैंने तथ्यों को
मूल श्रोत को जाना नहीं मैंने
और सामने पड़े श्रोत को माना सही मैंने 
इन्सान हूँ गलती होगी मुझी से
गलती पर अपने को गलत कहूँ
ये कूबत है मुझमे 
अपनी गलती को मान बताया उन्हें
अब इन्तेजार है उन अपनों का
करें माफ़ मुझे वो और
मिले स्नेह और सानिध्य उन अपनों का
ये स्नेह का ही तो बंधन है 
जो बांधे रखता है सभी से 

दलित हिन्दू के बिच खाई: क्या है सच्चाई?

मै अक्सर देखता हूँ की चाहे हम्मे से कोई भी चाहे अपने ब्लॉग पर या फसबूक पर हिंदुत्व से प्रेरित कुछ लिखता है तो मुस्लमान या किसी और के आने से पहले कुछ खुद के बनाये हुए कुछ दलित ठेकेदार वहां टपक पड़ते हैं और अपनी ढपली बजाना शुरू कर देते हैं| अगर मै अपने ब्लॉग की ही बात करूँ तो मैंने कभी भी दलित को हिन्दू से अलग नहीं बोला है हमेसा एक सूत्र में हिन्दू बोला है फिर चाहे वो पंडित हो, राजपूत हो, वैश्य हो, कायस्थ हो या दलित हो| क्या ये जातियां हिन्दू से अलग हैं? मेरे मानने में तो ऐसा कभी नहीं हुआ| ये सारे वर्ण, ये सारी जातियां पूरी तरह से हिन्दू हैं|

अगर मै अपने गाँव का उदहारण लूँ तो मेरे गाँव में मुस्लिम और क्रिस्चियन को छोड़ करीब सारी हिन्दू जातियां हैं| हम सभी एक हैं वहां| हम सभी हिन्दू हैं वहां| हम सभी एक साथ अपने त्यौहार मनाते हैं फिर चाहे वो होली हो या दिवाली हो, दशहरा हो या राखी| कोई अंतर नहीं होता| एक दुसरे के यहाँ हो रहे किसी खास उत्सव जैसे शादी, बच्चा पैदा होना सभी में सम्मिलित होते हैं और एक दुसरे की सहायता करते हैं| फिर यहाँ फसबूक पर ऐसा अंतर क्यों दीखता है?

कुछ लोग आते हैं कहते हैं की दलित शंकराचार्य नहीं बना| दलित कहीं किसी मंदिर का पंडित नहीं बना| अम्बेडकर की दुहाई देते हैं की आंबेडकर की वजह से ही भारत का संविधान बना| अम्बेडकर का वक्तव्य कहते हैं की मै हिन्दू पैदा हुआ पर हिन्दू नहीं मरूँगा मै| छुवा-छूत की दुहाई देते कुछ दिख जाते हैं| कुछ तो यहाँ तक की हिन्दू के ३३ करोड़ देवी देवता कहाँ से?

अब अगर मै उनके पहले आरोप को लूँ की कोई दलित शंकराचार्य क्यूँ नहीं बनता है? शंकराचार्य बनाने के लिए वो धैर्य, वो साधना, वो समर्पण और वो उपासना चाहिए| उसके लिए उस तरह की काबिलियत चाहिए| मै एक राजपूत हूँ| पर अगर मेरे अन्दर इनमे से कोई काबिलियत नहीं है तो मै कैसे सोच सकता हु की मै शंकराचार्य क्यों नहीं बना या क्यों नहीं बन सकता हूँ| और यही बात केवल दलित पर नहीं बल्कि सारे वर्णों पर लागु होती है|

दलित किसी मंदिर का पंडित क्यों नहीं बना अगर ये देखूं मैं तो शायद ये लोग महर्षि वाल्मीकि, कालिदास और वेद व्यास इत्यादि को भूल गए हैं| इन्ही लोगों के बिच से वो भी आए थे| ये लोग क्या कर्म किये की महर्षि या आदरणीय बन गए सभी के? पर क्या वो कर्म आज दीखते हैं सभी के अन्दर तो जवाब होगा नहीं| तो जब यहीं जवाब मिल गया तो कैसे सोचा जा सकता है मंदिर का पंडित बनाने के लिए| कर्म करें फिर कहें|


आंबेडकर की बात करी जाती है| मैं भी मानता हु की आंबेडकर का योगदान रहा भारतीय संविधान बनाने में पर एक सवाल है की क्या केवल आंबेडकर का ही योगदान रहा? उस कांस्तिच्युसन ड्राफ्टिंग कमिटी के कई और सदस्य थे पर उनका नाम कही नहीं आता है| क्यों? क्यों केवल आंबेडकर का ही नाम लिया जाता रहा बाकि के ६ सदस्यों को छोड़ दिया गया| मैं उन सदस्यों का नाम यहाँ दे रहा हूँ|

कनैयालाल मनेक्लाल मुंशी (के एम् मुंशी, भूतपूर्व गृह मंत्री, बॉम्बे), अल्लादी कृष्णास्वामी अयीयर (Ex- Advocate General, Madras State), एन गोपालस्वामी अयेंगर (Ex-Prime Minister, J&K and later member of Nehru Cabinet), बी एल मित्टर (Ex-Advocate General, India), एमडी. सादुल्लाह (Ex- Chief Minister of Assam, Muslim League member) और डी पि खेतान (Scion of Khaitan Business family and a renowned lawyer)|

अब जरा हम सभी सोचें इस बारे में की आखिर ऐसी कौन सी सच्चाई छिपा कर कुछ बातों को ही तुल दिया गया?

29 May 2012

संस्कृत भाषा की विशेषताएं


संस्कृत भाषा का मूल भी दिव्यता से  ही निःसृत है| सम और कृत दो शब्दों के योग से संस्कृत शब्द बना है| सम का अर्थ सामायिक अर्थात हर काल, युग में एक सी ही रहने वाली विधा| समय के प्रभाव से परे अर्थात कितना ही काल बीते इसके मूल स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं होता| जो स्वयं में ही पूर्ण और सम्पूर्ण है| 

कृ क्रियाकृतके लिए प्रयुक्त हुआ है|

संस्कृत में  सोलह स्वर और छत्तीस व्यंजन हैंये जब से उद्भूत हुए तब से अब तक इनमें अंश भर भी परिवर्तन नहीं हुए हैं| सारी वर्ण माला यथावत ही है| मूल धातु (क्रिया) में कोई परिवर्तन नहीं होता यह बीज रूप में सदा मूल रूप में ही प्रयुक्त होती है| 

जैसेभवशब्द है सदा भव ही रहेगा, पहले और बाद में शब्द लग सकते हैं जैसे अनुभव, संभव, भवतु आदि|

संस्कृत व्याकरण में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता| जैसे ब्रह्म अविनाशी वैसे ही संस्कृत भी अविनाशी है| नाद की परिधि में आते हीअक्षर’ ‘अक्षरहो जाते हैं, महाकाश में समाहित ब्रह्ममय हो जाते हैं| सूक्ष्म और तत्व मय हो जाते हैं| इस पार गुरुत्वमय तो उस पार तत्वमय, नादमय और ब्रह्ममय क्षेत्र का प्रसार है|

27 May 2012

भ्रस्टाचार: आखिर शुरू कहाँ से?


आज हम सभी चिल्ला रहे हैं की देश में भ्रस्टाचार हो रहा है, देश में महंगाई है और देश का बेडा-गर्क हो रहा है| देश में भ्रस्टाचार तो बहुत समय से है कभी किसी की पर्दादारी ने छुपाया इसे तो कभी किसी के गुरुर और झूटे शानो-शौकत के आगे ये खबरें दम तोडती गईं और आम जनता तक इसकी खबर नहीं पहुची| अगर कुछ खबर पहुची भी तो १९४७ के बाद देश में रह रहे लोग शायद गाँधी जी को इतना मानने लगे थे की वो और कुछ तो नहीं पर गाँधी जी तीनो बंदरो को अपने अन्दर उतार जरुर लिया था की कभी कुछ न देखो, कभी कुछ न बोलो और कभी कुछ न सुनो| और उन लोगो के कारण देश का क्या से क्या हाल होता गया|

चलिए अब इसके बारे में क्या कहें अभी का हाल ही देखते हैं|

अभी लोगो को कहते सुना जाता है की भ्रस्टाचार हमेसा निचे से ऊपर जाता है| सबसे बड़े भ्रस्टाचारी हमारे पुलिस वाले हैं| सड़क पर खड़ा हवालदार पैसे लेता है गाड़ियों से और ऊपर तक बांटता है| या एक चपरासी पैसे लेता है और फाइलों को इधर से उधर तुरंत कर बहुत जल्दी कम करवा देता है| तो भ्रस्टाचार निचे से ही तो शुरू हुआ|

कुछ लोगों को कहते सुनता हूँ की भ्रस्टाचार के दोषी हम आम जनता हैं| हम कुछ नहीं करते हैं| सब देख सुन कर भी चुप रह जाते हैं|

पर असलियत तो शायद कुछ और ही है|

एक छोटे से उदहारण से समझाने की कोशिस करता हूँ मैं| क्या हम मे से किसी ने पानी को निचे से ऊपर बहते हुए देखा है? क्या भारत की सबसे प्रमुख और आराध्य नदी गंगा बंगाल की खाड़ी से गंगोत्री की तरफ बहती हैं? जवाब होगा नहीं| क्युकी पानी हमेसा ऊँचाई से निचे की तरफ बहता है और गंगा गंगोत्री से निकल कर बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं|

ठीक ऐसे ही यहाँ जब एक चपरासी की भी नौकरी लगती है तो उसके लिए उसे पैसा खिलाना पड़ता है अपने से निचे वाले को नहीं बल्कि अपने से ऊपर वाले को| कितने ही पुलिस भारतियों में हमने सुना की फलां नेता ने इतने पैसे लिए या उस अमुक भर्ती में धांधली के चलते उस भर्ती को ही रोक दिया गया| हर धांधली के पीछे सत्ता पक्ष या बड़ा कद का नेता होता है| और वो बड़े कद का नेता पैसे ले भर्ती करवाता है और चाहे कोई सही बन्दा कैसा भी प्रयास किया हो होगा वही जिसका नाम नेता जी देंगे| तो जो आम इन्सान के बिच से गया बन्दा पैसे दे कर नौकरी पा रहा है वो अमूमन है की कुछ तो ऊपर की कमाई करेगा ही ताकि जो पैसे उसने अपने नौकरी के लिए खर्चे किये वो पैसे वो निकल सके पर यही धीरे-धीरे उसकी आदत बन जाती है| किसी भी कर्मचारी का तबादला हो जाये तो नेता को पैसे खिलाओ ताकि तबादला रुक सके|

आज हम सभी महंगाई की मर झेल रहे हैं और किसान आत्महत्या करता जा रहा है या किसानी छोड़ता जा रहा है| क्यों हो रहा है ऐसा? आज रोज इतने बड़े-बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं क्या ये महंगाई को नहीं बढ़ा रहे है?

22 May 2012

भारत की गुलामी


हम भारत की आज़ादी का इतिहास तो बहुत सुनते सुनाते हैं पर कुछ करी जाये अपनी नाकामयाबियों को भी जानने की और भारत की आज़ादी के साथ-साथ भारत की गुलामी को भी जानने कीहम सभी भारतवासी जानते हैं की भारत की आज़ादी का जश्न मनाया जाता है १५ अगस्त को क्युकी इसी दिन १९४७ को भारत को आज़ादी मिली थी अंगरेजों से अंगरेजो के २०० सालों की गुलामी सेपर एक बहुत बड़ा सवाल उठता है अगर हम भारत के इतिहास को देखें तो की क्या भारत केवल अंगरेजो का ही गुलाम थाक्या भारत में कोई और विदेशी नहीं आए कभीक्या उन्होंने राज नहीं किया जैसे अंगरेजों ने कियाक्या है भारत की गुलामी का इतिहासक्यूँ  अधूरी है हमारी १५ अगस्त को मिली आज़ादी?

भारत में हुए अब तक के अतिक्रमण:

. सबसे पहले क्राइस्ट से ३२६ साल पहले अलेक्जेंडर ने आक्रमण किया और भारत में १९ महीनो तक रहा और ये भारत की धरती पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण था|

. इसके बाद दौर आया मुग़ल आतताइयों का जिनका उद्देश्य इस्लाम को भारत में फ़ैलाने के साथ-साथ भारत के दुसरे देशों के साथ हो रहे व्यापार (ज्ञात रहे की भारत शुरू से सोने की चिड़िया और व्यापार का मुख्या केंद्र मन जाता रहा हैपर एकाधिकार जमाना भी शामिल थाइसी उद्देश्य को लेकर साल ६३६-३७ में खलीफा उमर ने समुद्री रास्ते से भारत के पश्चिमी तट ठाणे के पास त्रौम्बे पर   आक्रमण कियापर यहाँ उसे हार का सामना करना पड़ाअब समुद्री रास्ते से मिली हार के चलते मुग़ल सेना ने साल ६४४ में जमीनी रास्ते से आक्रमण किया मकरान के तरफ से पर यहाँ भी उन्हें हार का सामना करना पड़ापर भारत के दुर्भाग्य के चलते साल ७११ में मुग़ल मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में जित गए भारत मेंसाल ७११ में इन मुगलों की सोच थी की सीरियापालेस्तिनइजिप्ट और परसिया की सुखी धरती को जितने से इस्लाम को तो फैला दिया पर यहाँ क्यादा कुछ फ़ायदा नहीं होने वालाऔर तब इन्होने  इस्लाम को फ़ैलाने और व्यापार पर एकाधिकार या   भारत के बहुमुखी व्यापार और सोने की चिड़िया को छिनने के लिए मुगलों ने भारत के ऊपर आक्रमण करने चालू कियेइस प्रकरण में इन्होने सबसे पहले सिंध को अपने कब्जे में लियापर आठवीं शताब्दी तक भारत के और भाग तक में इस्लाम को मानने वाले   मुगलों का आतंक नहीं फ़ैल पाया|

अब इस समय में मुगलों ने क्या किया वो देखते हैं जरा|

>. मुग़ल जानकारों ने हिन्दू जानकारों से भारत की सभ्यता और संस्कृति को जानना चालू किये|
>. संस्कृत में लिखे कितने ही खगोलीयज्योतिषगणितचिकित्सा पद्धति इत्यादि को अरबी में अनुवाद कराया गयासाथ ही   प्रभाव ज़माने के लिए कुछ अरब के कार्यों को भी संस्कृत में अनुवाद कराया गया|
>. मुगलों ने - तक की संख्या को भारतीयों से सिखा|
>. शतरंज जैसा खेल भी मुगलों ने हम भारतीयों से सिखा|
>. भारतीय डाक्टरों को अरब के हॉस्पिटल में इलाज करवाने के लिए ले जाया गया|
>. साथ ही सिंध में इस्लाम को सबसे बड़ा धर्म स्थापित कर दिया गया|

पर ये मुग़ल यहीं नहीं रुकेये तो मात्र एक शुरुवात थीआगे चल कर इनका असली और विकृत चेहरा सामने आना शुरू हुआ|

. इसके बाद बारी आया टर्किस मुहम्मद गजनी कागजनी अफगानिस्तान का गामिनी वंश का शासक थाइसने भारत पर    आक्रमण यहाँ राज करने के लिए नहीं परन्तु भारत की सम्पदा को लूटने के इरादे से आया थाऔर इसी इरादे के चलते गजनी  नामक आतताई ने भारत  साल १००० से १०२७ के दौरान पर १७ बार अपने कुत्सित विचारों से प्रभावित हो जिहाद के नाम पर   आक्रमण कियागजनी ने साल १००१-१००८ के मध्य राजा जयपाल और राजा आनंदपाल को हराया१००९ में नागरकोट१०१४   थानेसर१०१५ कश्मीर१०१८-१९ मथुरा और कन्नौज१०२१ कालिंजर१०२३ लाहोरऔर सबसे भयानक आक्रमण रहा इसका   साल १०२५ का सोमनाथ मंदिर का आक्रमण जिसमे गजनी ने ना केवल उस मंदिर को लूटापर यहाँ एक और घटना घटी की जब ये मंदिर से लुटे धन को ले जा रहा था अपने साथ तो जाट राजपूतों ने गजनी पर आक्रमण किया और फलस्वरूप गजनी ने साल १०२६ में सत्रहवीं और अंतिम बार सोमनाथ पर आक्रमण किया और सोमनाथ मंदिर को लूटने के साथ-साथ उस मंदिर को पूरी तरह   नेस्तोनाबुत कर दिया३० अप्रैल १०३० को गजनी की मौत हुई पर उसके बेटे मसूद ने भारत पर आक्रमण किया और कश्मीर पर   अपना अधिकार जमा लिया|

. मुहम्मद गोरी की बारी आई इनके बादमोहम्मद गोरी ने अपने भाई गिसुद्दीन के साथ मिल कर ११७५ और १२०६ के मध्य भारत पर आक्रमण कियासबसे पहले गोरी ने ११७५ में भारत पर आक्रमण कर मुल्तान पर कब्ज़ा कियाफिर ११८६ में लाहोरफिर उसने अपने भाई की मौत के बाद इसने अपने राज्य को फैलाना चालू किया और आज की मौजूदा किताबो में पढाये जा रहे पाठो के आधार पर इसने कन्नौज के राजा जयचंद को ११९३ में हराया बल्कि सच्चाई में जयचंद की सहायता से इसने राजा पृथ्वी राज चौहान को   हराया और ११९४ में गद्दार जयचंद को भी हरा उसे मौत के घाट उतर दिया था गोरी नेक्या कारन था जयचंद को मारने का गोरी का क्युकी जयचंद ने तो गोरी का साथ दिया था एक मुस्लिम शासक का साथ पृथ्वी राज चौहान के खिलाफकारन साफ है की गोरी   और सभी जानते हैं की जो अपने लोगों का और सबसे पहले अपने धर्म का नहीं हुआ वो किसी और का क्या होगा और इसी के चलते जयचंद को मरना पड़ापर आज तो पता नहीं कितने जयचंद हो गए हैं इनका क्या हस्र होगा ये तो हम केवल सोच सकते हैंचलिए   छोडिये इन बातों को हम आगे बढ़ते हैंइसके बाद गौरी ने १२०६ में मरने और उसके पहले अपने लौटने तक में गंगा और घाघरा के   दोवाब के साथ-साथ बंगाल तक पर अपना साम्राज्य स्थापित कर गयाऔर इसके साथ उसने अपने एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को वहां का शासक बना गया जिसे आगे चल कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की भारत में

मोहम्मद गोरी के उपरांत निम्नांकित शासन काल रहा:
गुलाम शासन .......... १२०६-१२९०
खिलजी शासन .......... १२९०-१३२०
तुघ्लक शासन ...... १३२०-१४१२
सैयद शासन ........ १४१४-१४५१
लोदी शासन ..........१४५१-१५२६

. अब आयी मुग़ल साम्राज्य का बारीमुग़ल असल में तुर्क थे| पहला मुग़ल शासक था बाबर जो की तुर्किस और चंगेज का मिश्रित रूप था|

बाबर १५२६-१५३०, हुमायूँ १५३०-१५४० और १५५५-१५५६, अकबर १५५६-१६०५, जहाँगीर १६०५-१६२७, शाहजहाँ १६२८-१६५८, औरंगजेब १६५८-१७०७, बहादुर शाह १७०७-१७१२, जहानदार शाह १७१२-१७१३, फुर्रुख्सियर १७१३-१७१९, रफ़ी-उद-दराज १७१९-१७१९, रफ़ी-उद-दौलत १७१९-१७१९, निकुसियर १७१९-१७४३, मोहम्मद इब्राहीम १७२०-१७४४, मोहम्मद शाह १७१९-१७२०, १७२०-१७४८, अहमद शाह बहादुर १७४८-१७५४, आलमगीर II १७५४-१७५९, शाह जहाँ III १७५९-१७५९, शाह आलम II १७५९-१८०६, अकबर शाह II १८०६-१८३७, बहादुर शाह II १८३७-१८५७.

बाबर की लड़ाई सबसे बड़ी लड़ाई राजा राणा सांगा के साथ हुई जिसमे बाबर जीत गया और इस जीत के चलते भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना हुई और इस लड़ाई को बाबर ने "जिहाद" की संज्ञा दी थी| पहली ही लड़ाई में बाबर ने दिल्ली और आगरा को जीत लिया जिसे बाबर ने अपने लड़ाको और तोपों के वजह से जीती और साथ ही और राज्यों को जीतता गया और मुग़ल साम्राज्य को फैलता गया| पर जब बाबर की मौत हुई और हुमायूँ गद्दी पर बैठा तब शेर शाह सूरी जो की एक अफगानी था ने हुमायूँ को हराया और भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया| भारत छोड़ हुमायूँ अपनी शक्तियां बटोरने में लगा ताकि फिर से भारत में अपना राज्य स्थापित किया जाये और हुमायूँ ने ऐसा किया भी पर ज्यादा समय राज नहीं कही कर पाया और सीढियों से गिरने के वजह से मारा गया| हुमायूँ के मरने के बाद उसके १३ साल के लड़के अकबर को गद्दी पर बैठाया गया| यहाँ से शुरू हुआ असली मुग़ल साम्राज्य भारत में| क्युकी अकबर ने यहाँ चलें चलनी शुरू करी जो कमोबेश आज भी चल रही हैं पर कोई मानाने को तैयार नहीं|

अकबर अपने लोगों को लड़ाई से बचाना चाहता था क्युकी उस समय राजपूत और साथ और राजा मुगलों को उखाड़ने में लगे हुए थे इस वजह से वो रिश्ते मजबूत करने के नाम पर और भाईचारा बढ़ने के नाम पर राजपूत लड़कियों से शादी के प्रस्ताव भेजने लगा साथ ही उन राज्यों को अपने में मिलाने लगा| पर इसी देश में महा राणा प्रताप जैसे लोग भी थे जिन्होंने उसके आगे झुकना तो मंजूर नहीं किया पर हल्दी घटी की लड़ाई लड़ी और उस लड़ाई को देख खुद अकबर भी एक बार को डर गया था पर एक काम तो हमेसा से आया इन मुगलों को की कैसे लोगो को अपने से जोड़े बहले झूट बोल कर (ज्ञात हो की इस्लाम में झूट बोलना मना है पर ये हमेसा से झूट बोलते आये जिसे ये खुद ताकैयाह का नाम देते हैं)| इसी के सहारे जब अकबर को लगा वो हर जायेगा तो इसने महा राणा प्रताप के कुछ सहयोगियों को अपने में मिला लिया और इसके चलते महा राणा प्रताप को हार का मुंह देखना पड़ा| अकबर ने यहाँ तक की उन राज्यों को भी नहीं छोड़ा जहाँ औरत थी गद्दी पर| ऐसी ही एक महा रानी थीं चाँद बीबी जो अकबर के साथ हुई लड़ाई नहीं जीत सकीं और १५९६ में उनके राज्य अहमदनगर को मुग़ल राज्य में मिला लिया गया|

ऐसा कहा जाता है या कहें तो ऐसा हमें पढाया जाता है की अकबर हिन्दुवों को ले कर बहुत उदार था| पर इसी अकबर ने २४ फरवरी १५६८ को ३०,००० बंदी बनाये गए राजपूतों को मौत के घाट के उतरवा दिया| ये शायद एक दिन में दी गई सबसे बड़ी मृत्यु दंड की सजा होगी जिसमे इतने लोग मरे| इस सामूहिक हत्याकांड को "अब्दुल फजल" नामक अकबर का इतिहासकार दरबारी ने लिखा है| अकबर ने दिन-इ-इलाही नमक धर्म को भारत का धर्म बनाया| ज्ञात रहे की इस्लाम में आप इस्लाम के अलावा कुछ नहीं छोड़ सकते हैं फिर अकबर ने तो इस्लाम के बदले ही एक नया धर्म बना दिया था तो इसके क्या कहेंगे और इसको क्या कहा जाता है आज ये तो शायद सभी जानते होंगे|

अकबर की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र मोहम्मद सलीम जिसे हम जहाँगीर नाम से भी जानते हैं वो बैठा दिल्ली की गद्दी पर| पर जहाँगीर अपनी बीबी नूर जहाँ के इश्क में ही फ़ना रहता था और इसके साथ-साथ अपने राज्य का कार्यभार भी एक तरह से उसने अपनी पत्नी के कंधो पर छोड़ रखा था| जहाँगीर ने भी बहुत सी लड़ियाँ लड़ीं पर अकबर जैसा कुतनितिग्य नहीं हुआ|

इसके बाद आया शाह जहाँ जो अपने पिता सामान ही हुश्न का दीवाना था अपनी बेगम मुमताज़ महल का| इसने पोर्तगीज से कई लड़ियाँ लड़ीं साथ ही ये अहमदनगर का राज्य बीजापुर के शासक के साथ साँझा रूप में चलता था| और जब इसने देखा की परेसनियाँ ज्यादा बढ़ रही हैं तो इसने अपने आपको राज-पाट से अलग कर लिया और तभी इसका बेटा औरंगजेब सुल्तान बना और उसने मानवता की सारी हदें तोड़ दिन| औरंगजेब ने अपने भाइयों को मारा गद्दी के लिए वो तो किया ही साथ ही अपने बूढ़े बाप शाह जहाँ को आगरा के किले में कैद खाने में डाल दिया और कैद खाने में ही शाह जहाँ की ताज महल देखते हुए मौत हुई| अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की जो इन्सान सुल्तान बनने के लिए अपने बूढ़े बाप को तिल-तिल कर मरने के लिए अँधेरी काल कोठरी में बंद सकता है वो और लोगों और दुसरे धर्मो को मानने वालों के साथ कैसे पेश आता होगा| औरग्जेब के ज़माने में सबसे ज्यादा मंदिरों को तोडा गया, मूर्तियों को विखंडित किया गया और मुजुदा बहुत से मंदिरों को तोड़ मस्जिद बनाया गया| इसकी गन्दी निगाह यहाँ तक की पूरी के मंदिर तक पर पड़ी थी पर कैसे भी करके उस मंदिर को उसमे राखी प्रतिमा बचाया गया| ये अलग बात रही की सबसे ज्यादा बार बंद होने वाला और सबसे ज्यादा समय तक बंद रहने वाला मंदिर बना पूरी का मंदिर| औरंगजेब ने १६७९ में हिन्दुवों पर जाजिया लगाया| इसी दौरान इसने सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह जी को मौत के घाट उतारा| और इन सारी घटनाओं ने राजपूतो, सिखों और जाटों में एक विद्रोह फैला दिया और इन लोगो ने अलग मोर्चा खोल लिया औरंगजेब के खिलाफ| कुछ समय तक तो औरंगजेब लड़ता रहा पर बाद में उसने राजपूतों के साथ संधि कर ली जिसे वो बार-बार तोड़ता रहा और जिस वजह से मथुरा के आस पास के जात उसके मरने के समय तक उसे परेसान करते रहे| औरंगजेब को सबसे ज्यादा परेशानी रही वीर छत्रपति शिवाजी से| और औरंगजेब मराठों को काबू में नहीं कर पाया अपने जीवन पर्यंत|

इन्ही सबके बिच में साल १६०० में ही सर थोमस रॉय के भारत आगमन के समय व्यापार की अनुमति मिल चुकी थी तत्कालीन मुग़ल शासक के द्वारा| और १६१६ में मुसलिपत्तम में अंगरेजो को पहली फैक्ट्री डालने की अनुमति मिली थी|

पर अभी भी भारत पर मुगलों का शासन चल ही रहा था पर बहादुर शाह I के १७१२ में मौत के बाद कोई अच्छा मुग़ल शासक न होने के चलते मुग़ल शासक मोहम्मद शाह के शासनकाल में भारत ने नादिर शाह और उसके सिपहसलार अहमद शाह अब्दाली नामक मुगलों का भारत पर आक्रमण झेला| और इस तरह मुग़ल साम्राज्य शांत हुआ| क्युकी उस समय अंगरेजी ताकतें भी पनपने लगी थीं और इन मुगलों के अलग-अलग जगह पर बिठाये इनके भरोसेमंद सिपहसलार भी अब उन जगहों को अपना बनने में लगे थे|

इसी बिच एक और शासक हुए टीपू सुल्तान जिनका नाम भारत में बड़े अदब से लिया जाता है पर कितने लोग जानते हैं की यही वो टीपू सुल्तान थे जिन्होंने १७५०-१७९९) तक राज किया पर इनका एक फतवा निकला हुआ था की सामूहिक धर्म परिवर्तन का| ये हिन्दुवों को मुसलमान बना देना चाहते थे| जिसे इतिहासकारों ने या तो दबा दिया या आज उन बातों को सामने नहीं लाया जाता है| और हमें आधी-अधूरी जानकारी दी जाती है हमारे देश के इतिहास के बारे में|

मुग़ल साम्राज्य का मकसद:

जितने भी मुग़ल शासक हुए भारत में या जो भी आतताई आये उनका मकसद था भारत की अतुल्य सम्पदा और धन-वैभव को लूटना और इसके साथ-साथ धीरे-धीरे और एक प्रभावपूर्ण तरीके से भारत से हिंदुत्व को मिटा इस्लाम और इस्लामिक सभ्यता को स्थापित करना| मुगलों ने बहुत कोशिस करी हमारे भारत की सभ्यता, भाषा और शिक्षा पद्धति (जैसे नालंदा विश्वविद्यालय को मटियामेट करना) को ख़तम करने की| मुगलों ने भारत के कई जगहों के मंदिरों को तोडा जैसे सोमनाथ, मथुरा, बनारस, अयोध्या, कन्नौज, थानेस्वर और इत्यादि इत्यादि| मंदिरों के पुजारियों और पजा करने वालों का सामूहिक हत्या किया गया| औरतों को मुग़ल अपने साथ अरब ले गए जहाँ उनके साथ पता नहीं कितनी ही यातनाएं दी गई होंगी और पता नहीं कितने हाथों हमारे देश की हिन्दू औरतों को बेचा गया|

कारण हिन्दुवों के हार का:

१. भारत के शासकों में एकता नहीं थी बल्कि ये मुग़ल पूरी तरह एकता के साथ रहते थे| (आज भी स्थिति वैसी ही है और हिन्दू बँटा हुआ है पर ये मुस्लिम एक हैं हमारे खिलाफ)
२. भारतीय हमेसा से सीधे-साधे रहे और किसी और देश पर आक्रमण नहीं करते थे इस लिए इनकी सेनाएं अपने आस-पास के लोगों से रक्षा के अनुरूप ही सुसज्जित थीं जबकि मुग़ल आतताई और आक्रमणकारी होने के कारन हमेसा अपनी रणनीति और सेना को आगे बढ़ाते गए|

अब सवाल है की हम आजाद हुए केवल अंगरेजों से केवल पर मुगलों ने भी तो भारत को गुलाम बनाया था| मुगलों से आज़ादी मिली क्या भारत को? क्या हमारा फर्ज नहीं बनता है की हम भारत माँ को पूरी तरह से आजाद कराएँ? क्या हमारी भुजाओं में पानी भर गया है? या हमारी आत्मा मर चुकी है? या खुद हम मर चुके हैं और देखना नहीं चाहते हैं की क्या है हमारी असलियत और क्या है हमारे देश का इतिहास? आज भी समय-समय पर आज के मुग़ल अपनी असलियत दिखा जाते हैं| क्या हमारे अन्दर का इन्सान मर चूका है? क्या हम अपने दुसरे बन्धुवों की परेशानी को अपनी परेशानी समझ नहीं खड़े हो सकते हैं? हम क्यूँ हमारे ऊपर पड़ने की बाट जोहते हैं? क्या जब एक-एक हिन्दू के ऊपर अत्याचार होगा तभी हिन्दू जागेगा? 

बन्धुवों तब तक इतनी देर चुकी जैसे की ६३६ में हुई थी|

"जागो और अपने देश के इतिहास को जान एक बनो और आज़ादी की सोचो"