1 Sept 2013

pratibha visthapan

प्रतिभा विस्थापन

आज लाखों की संख्या मे युवा प्रशासनिक परीक्षा मे बैठते हैं जिनमे से मात्र कुछ ही परीक्षा मे सफल हो पाते हैं। परीक्षा मे सफल हुए परीक्षार्थियों का सरकार देश के पैसे पर सर्वोत्तम उपलब्ध ट्रेनिंग कराती है, जिसमे लाखों-करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। ट्रेनिंग के समय उन परीक्षार्थियों को सरकार वेतन भी देती है।

ट्रेनिंग खत्म होने के उपरांत परीक्षार्थी प्रशासनिक पद पर प्रतिष्ठित होते हैं। उक्त समय मे भी उन प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर देश का बहुत पैसा लगता है। कुछ अधिकारी बड़े ही मनोयोग से देश सेवा कार्य मे लगते हैं और कार्यकाल पूर्ण होने तक देश सेवा करते रहते हैं। पर इन्ही अधिकारियों मे से कुछ अधिकारी देश विरोधी कार्य मसलन लूट-खसोट करने मे लग जाते हैं, चूंकि ये लूट-खसोट का विषय भिन्न है अतः मौजूदा लेख मे उसको शामिल करना यथार्थपरक नहीं है। 

परंतु इन्ही अधिकारियों मे से अधिकारियों की एक जमात ऐसी भी है जो अपना कार्य तब तक चुपचाप करते हैं जब तक VRS लेने का समय नहीं आ जाता है एवं कुछ बड़े रसुखदारों से उनकी गाढ़ी जान पहचान नहीं हो जाती है। इतना होते ही वो सभी प्रशासनिक अधिकारी अपने प्रशासनिक कार्यों को छोड़ मुख्यतया 2 कार्य करते हैं-

1. या तो वो प्रशासनिक अधिकारी  VRS लेने के पश्चात NGO चालू कर देते हैं और अपने रसुखदारों से तथा विदेशों मे स्थित अपने जान पहचान का उपयोग कर पैसे बनाने चालू कर देते हैं एवं मस्त जिंदगी जीते हैं (वैसे इनमे से कुछ अधिकारी अच्छा कार्य भी करते हैं लेकिन उनकी गणना नगण्य समान है)।

2. या फिर वो प्रशासनिक अधिकारी अपना VRS लेने के पश्चात किसी बड़ी निजी कंपनी या विदेशी कंपनी मे चले जाते हैं जहां उनको मोटी तंख्वाह मिलती है।

अब सवाल यहीं उठता है की जिन प्रशासनिक अधिकारियों पर सरकार देश का इतना पैसा खर्चा करती है देश सेवा हेतु वो अधिकारी एक तय सीमा के पश्चात VRS ले कर पेन्सन तो लेते ही हैं लेकिन देश के पैसे से सीखे हुए चीजों को निजी स्वार्थ मे निजी कंपनी या स्वयं हेतु उपयोग मे लाने लगते हैं।

जब ये VRS लिए हुए अधिकारी सेवा कार्य मे थे तब बहुत सी आंतरिक बातें इनके पास होती हैं जिसे किसी को नहीं जानना चाहिए होता है, परंतु क्या जो निजी कंपनी इनको लाखो-करोड़ो रुपये वेतन के रूप मे या NGO मे चंदे के रूप मे देती वो कंपनी इनसे वो सभी राज नहीं जानेगी या फिर इसकी क्या गारंटी है की ये सभी विशिष्ट सेवा निवृत पूर्व अधिकारी वो सभी बातें उक्त निजी कंपनी या कंपनियों को नहीं बताएँगे या फिर जिस ट्रेनिग को इन अधिकारियों को देने के लिए सरकार लाखो करोड़ रुपये खर्च करती है उसको महज चंद सिक्कों मे दूसरी कंपनी को नहीं देंगे।

क्या ये निकृष्ट कार्य देशद्रोह नहीं है? क्यूँ बढ़ रही है प्रशासनिक अधिकारियों के बीच VRS लेने की प्रवृत्ति ? क्या VRS ले कर उक्त सभी प्रशासनिक अधिकारी देश की आम जनता के पैसे के साथ-साथ जनभावना के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं ? क्या ये अधिकारियों के द्वारा पैसे की चमक मे मंत्रमुग्ध हो देश के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाना एक क्षम्य अपराध है ? क्या इन अव्यवस्थाओं की जांच पड़ताल तथा रोकथाम हेतु केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिल कर समीक्षा नहीं करना चाहिए ?

इस प्रतिभा पलायन को रोक कर प्रशासनिक अधिकारी अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझें एवं उन कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करें, ऐसा मैं सभी प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करना चाहूँगा !

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