हे गिरधर गोपाल,
क्यूँ हो तुम ऐसे मूर्धन्य खड़े,
कर-कमलों में अपनी बांसुरी को धरे ?
क्यूँ नहीं करते तुम अपना शंखनाद
जो किया था, तुमने उस महाभारत में ?
पुनः चुन अर्जुन सा पार्थ अपना
क्यूँ नहीं रचते हो, तुम एक आखिरी महाभारत ?
देखते नहीं चल पड़ा है
पतन के पथ पर सम्पूर्ण भारत।
क्या बन गए हो पवन पुत्र हनुमान तुम
किस क्षण तक रहोगे यूँही तुम सुसुप्त ?
हे जग के पालनहार क्या हो जाने दोगे
तुम इस मानवता को विलुप्त ?
जीवित रही मीरा, विषपान के पश्चात भी,
क्या हुआ तुमको हे नाथों के नाथ !
क्यूँ दिखाते हो जग को ऐसा,
जैसे हो गई तुम्हारी शक्ति विलुप्त !
कराहती ये धरा करती ये करुण पुकार है
ले कर साथ पार्थ आ जाओ ऐ मेरे गिरधर गोपाल ।।
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