बहुत पढाया और बताया गया की इस नकली और उधारी के गाँधी परिवार के लोगों ने देश के लिए बलिदान दिया है. मैंने कई लोगों से पूछा की आखिर ऐसा क्या बलिदान दे दिया है इस नेहरु और गाँधी परिवार ने. लेकिन इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सका आज तक.
मैं नेहरु से ही अगर शुरू करता हूँ तो पाता हूँ की इन्होने तो कोई बलिदान किया ही नहीं बल्कि ये कुछ और ही था.
आप अगर नेहरु के परिधान को देखें जो ये आज़ादी के पहले पहनते थे तो आप पाएंगे की इन पर गुलामी का कोई निशान नहीं था. इनकी जीवन शैली बिलकुल भी अलग थी. इनकी जीवन शैली में भारत के गुलाम होने का कहीं से कोई दंश नहीं दिखाई देता था बल्कि ये एडविना के साथ-साथ बाकि कई औरतों के साथ ही मस्ती करते हुए देखे जाते थे. प्रधानमंत्री बनने के चक्कर इन महानुभाव ने देश का बंटवारा करा दिया लेकिन आक्षेप मढ़ा केवल जिन्ना पर. हमारे में से कितने लोग जानते हैं की जिन्ना तब से कांग्रेस की विचारधारा से अलग हुए जब सुभाष चन्द्र बोस जैसे व्यक्तितिवा के कांग्रेस अधिवेशन के चुनाव में जितने पर भी उनसे जबरन मानसिक प्रताड़ना दे कर पद से इस्तीफा दिलवाया गया. इसके बाद भी जिन्ना कांग्रेस का साथ देते रहे लेकिन आज़ादी के समय साफ-साफ बोल दिया था की अगर नेहरु प्रधानमंत्री बने तो देश का विभाजन लेकिन वहीँ नेहरु की जगह अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल जी बने तो हम बल्लभ भाई पटेल जी का साथ देंगे. लेकिन विडम्बना देखिये की प्रधानमंत्री पद की लोलुपता ऐसी थी की नेहरु ने देश का विभाजन स्वीकार किया लेकिन देश को एक रखने का प्रयास नहीं किया. वहीँ आजाद भारत में भी प्रधानमंत्री बनने का जब आतंरिक चुनाव हुआ तब सारे वोट केवल बल्लभ भाई पटेल जी को मिले और सिर्फ एक वोट ही नेहरु को मिला. यहाँ भी नेहरु ने गाँधी को ढाल बना कर प्रधानमंत्री पद को प्राप्त किया. बल्लभ भाई पटेल जी देश के गृहमंत्री बने और देश राज्यों को जोड़ा भारत से. वहीँ कश्मीर पर हुए पाकिस्तान के हमले में जीतने की अवस्था में भी संयुक्त राष्ट्र संघ में जा कर देश का बंटाधार कर दिया. इतने के बाद भी बल्लभ भाई पटेल जी ने कहा था की कश्मीर की जिम्मेदारी मुझे दीजिये मैं इसको भारत में जोड़ता हूँ लेकिन नेहरु ने अपना कद छोटा होता हुआ देख ऐसा करने से मना कर दिया और पूरा भारत गृह मंत्री पटेल जी के पास रहा और कश्मीर नेहरु के पास. और आज हम सभी जानते हैं की वही कश्मीर आज भारत के लिए किस प्रकार सरदर्द बना हुआ है. भारत में होकर भी कश्मीर अभी तक भारत का नहीं बन पाया है और न ही कश्मीरी भारत के बन पाए हैं. मौत भी अपनी स्वाभाविक मौत.
अब देखते हैं की इंदिरा गाँधी ने क्या बलिदान दिया भारत के लिए-
इंदिरा जी के बारे में क्या कहें और क्या सुने. इंदिरा गाँधी का नाम प्रिदार्शिनी नेहरु से मैमुना बेगम और इंदिरा गाँधी कैसे बना इसका कोई उत्तर नहीं दे पाता है. साथ ही इंदिरा गाँधी को रविन्द्र नाथ टैगोर जी के आश्रम से क्यूँ निकाली गईं इसके बारे में कोई बताता ही नहीं है. और अगर मथाई महाशय ने बताया तो उनकी किताब को ही भारत में बैन कर दिया गया. कहा जाता है की नेहरु के अपनी पत्नी को छोड़ बाकि की औरतों के साथ ही समय व्यतीत करने और इंदिरा तक पर समय न देने के वजह से इंदिरा बहक गई थीं. अरे भाई कोई एक बार बहकता है दो बार बहकता है न की हर बार बहकता ही रहता है. इनके प्यार के चर्चों की फेहरिश्त तो नेहरु से भी लम्बी है. कभी फिरोज खान (जिनसे इंदिरा ने शादी भी किया और मैमुना बेगम बनी फिर इंदिरा गाँधी) तो कभी युनुस खान. वैसे ये भी मजेदार बात है की राजीव गाँधी के जन्म के बाद से ही इंदिरा तो फिरोज गाँधी अलग-अलग रहते थे और बिना तलाक लिए ही इंदिरा ने फिरोज खान से सारे रिश्ते ख़तम कर दिए थे फिर संजय गाँधी कहाँ से आ गए ये सोचने वाली बात है. इसके साथ साथ ही इंदिरा जी ने अपने योग गुरु को भी नहीं छोड़ा योग गुरु के मोहपाश में बंधने से. वैसे लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इंदिरा गाँधी का नाम हमेसा से आता रहा है क्यूंकि इंदिरा की पद लोलुपता नेहरु से कहीं ज्यादा थी. संजय गाँधी के अपने असली बाप युनुस खान के बारे में जान जाने के बाद ही संजय गाँधी की मृत्यु. बाकि तो कई चेहरे हैं पन्ने कम पड़ जायेंगे और उँगलियाँ दुखने लगेंगी. वैसे मौत तो गोलियों से हुई लेकिन ये गोलियां चली क्यूँ इनके बारे में क्या कोई सोचता है.
अब बारी आती है राजीव गाँधी जी की---
ये तो उन महँ आत्मावों में से थे जिन्होंने खुलेआम दंगे करवाए दिल्ली में. उत्तेजक भाषण दिया जो सदियों तक १९८४ के दिल्ली के दंगा पीड़ितों के दिलों में नासूर बन कर चुभता रहेगा और ये भाषण था "जब बड़ा पेंड गिरता है तो उसके आस-पास की धरती हिलती है और घांस दब जाती है". इसके साथ ही इंदिरा की रख को पुरे भारत में घुमाना क्या कहा जा सकता था उस समय आप सभी समझ सकते हैं. इश्कबाजी तो विरासत में मिली थी पर उसके चलते आज देश भोग रहा है.
सोनिया गाँधी जी के बारे में कुछ कहना बाकि रह गया है ऐसा तो लगता नहीं है लेकिन फिर भी मैं कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश डालने की कोशिस करता हूँ----
ये वही सोनिया गाँधी हैं जिन्होंने इमरजेंसी के समय अपने पुरे परिवार मतलब ये खुद, राजीव गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को साथ ले कर इतालियन दूतावास में शरण लेने चली गई थी लेकिन कहा जाता है की उस समय सोनिया गाँधी ने इटालियन नागरिकता त्याग दिया था. अगर इटालियन नागरिकता त्याग दिया था तो ये इटालियन दूतावास में क्यूँ गईं. जब राजीव गाँधी मेरे तब इन्होने खुलेआम कहा था की ये भारत की राजनीती में कभी वापस नहीं आएँगी लेकिन सीताराम केसरी को बिना कार्यकाल पूरा हुए लात मार कर बहार का रास्ता दिखा इनको कांग्रेस अध्यक्षा बनाया गया जो आज भी बिना चुनाव हुए बदस्तूर जारी है. एक और मजेदार बात मैं बताना भूल गया की जिस राजीव गाँधी को मारने वाला लिट्टे था उसी लिट्टे को हथियार देने वाला क्वात्रोची है और क्वात्रोव्ची सोनिया का कितना करीबी है ये तो हम सभी जानते हैं. साथ ही भारत में कोई भी विधवा या उस विधवा का बच्चा अपने पिता के कातिल को माफ़ नहीं करेगा लेकिन आखिर इतने बड़े दिलवाले तो इटली वाले होते नहीं हैं की अपने पति के खुनी को माफ़ कर दें लेकिन सोनिया ने साफ़ कहा की वो अपने पति के कातिल को माफ़ कर रही है और कोर्ट भी उसे माफ़ करे. कहीं ऐसा तो नहीं है की राजीव गाँधी की हत्या में सोनिया का ही हाथ है और इन हत्यारों को सजा दिलवाने के चक्कर में सोनिया का नाम सामने आ जाये और सोनिया का अमेरिका प्रवास कुछ दिन की अपेक्षा हमेसा के लिए हो जाये. अमेरिका प्रवास से याद आया की बाबा रामदेव जी के काले धन के अनसन के समय यही सोनिया गाँधी अपने बच्चों और लावलश्कर समेत स्विट्जरलैंड गईं पहले फिर तबसे २ बार के अनसन के समय ही जब देश पर कोई भी विपत्ति आ सकती थी उसी समय ये अब अमेरिका जाना शुरू कर दिया. वो भी संविधान का सीधा-सीधा उलंघन करके.
राहुल गाँधी क्या कहें इन जनाब के बारे में
इनके बारे में तो यही कह सकते हैं की जहाँ बजा ढोल वहीँ खुला इनका पोल. जनाब को गरीबों के घरों में जा कर खाने का बहुत शौक है और इसी शौक में ये गरीबों के हक़ का खाना तो खा कर निकल जाते हैं और गरीब वैसे ही नंगे और भूखे रह जाते हैं. कहीं कोई हलचल हुई और वहां चुनाव है तो सबसे पहले पहुँचने वालों में से होते हैं राहुल गाँधी और कहीं दंगा भी हो जाये और सैंकड़ों लोग मर जाएँ तब भी इनके दर्शन दुर्लभ होते हैं. कांग्रेस शासित प्रदेशों में बलात्कार, दंगे और किसानों की मौत इन मंद बुद्धि बालक को नहीं दिखती है.
प्रियंका गाँधी..........एक ही शब्द इनके लिए...............बरसाती मेंढकी..........बरसाती इस लिए की इस मेंढकी के दर्शन केवल चुनावी बरसात में ही दिखाई देते हैं बाकि समय ये क्या करती हैं ये तो शायद भगवान जनता होगा या खुद ये.
बाकि आप सभी सदस्यगण मुझसे ज्यादा जानकर हैं.....अगर कहीं कोई त्रुटी रह गई हो तो उसे पूरा करने का प्रयत्न करें.
बहुत ही रंगीन मिज़ाज़ का है ये खानदान.... लेकिन ये किसका खानदान है????? ये आजतक नही पता चला.... :)
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