जो कांग्रेस अपने किये हुए घोटालों और उस वजह से गर्त में धकेले जाने के बाद भी भारत निर्माण नाम से विज्ञापन चला कर भोली-भाली भारतीय आम जनता को बेवकूफ बनाने में लगी है वही कांग्रेस की सरकार क्या ये बता सकती है की जब भारत में इतना विकास हुआ है तो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी विदेशों में क्यूँ इलाज कराने जाती हैं.....क्या भारत में उपस्थित अस्पताल और डॉक्टर पर उनका भरोषा नहीं है या ये डॉक्टर और अस्पताल हठी के दिखने के दांत हैं जिन्हें आम जनता को मारने के लिए छोड़ा गया है
साथ ही साथ सोनिया गाँधी लगता है इतनी बड़ी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बन गईं और शायद ये बयान भी आ जाये की सोनिया गाँधी १८५७ के स्वतंत्रता आन्दोलन में लक्ष्मी बाई जी के साथ लड़ी थी वो आज देश से इतनी बड़ी हो गईं की देशवासियों को अपनी अय्यास्सी पर हुए खर्च का ब्यौरा भी नहीं दे सकती हैं.............वैसे याद दिलाना चाहूँगा की ये वही सोनिया गाँधी हैं जो देश को अब तक में ४ बार मझधार में छोड़ कर देश से भाग चुकी हैं
१. इमरजेंसी के समय अपने पुरे परिवार पति और बच्चों समेत इतालियन दूतावास में शरण लेने गईं थीं जबकि ऐसा कहा जाता रहा है की उस समय तक सोनिया गाँधी इतालियन नागरिकता त्याग चुकी थी.
२. राजीव गाँधी की मृत्यु के समय देश छोड़ कर गईं और जाने से पहले ये कह कर गईं की ये कभी भी भारतीय राजनीती में नहीं आएँगी.
३. पिछले साल जब बाबा रामदेव जी का आन्दोलन हुआ था तब सपरिवार सोनिया गाँधी पहले स्विट्जरलैंड फिर अमेरिका गईं, आखिर वो कौन सा इलाज था जो पहले तो स्विट्जरलैंड में नहीं हुआ लेकिन अमेरिका जा कर महिना दिन के प्रवास में संभव हो पाया.
४. इस साल भी जब जन-आन्दोलन हुआ तब देश में कुछ भी हो सकता था पर सोनिया गाँधी को इससे क्या मतलब वो तो फिर चली गईं अमेरिका इलाज के बहाने.
क्या ऐसी औरत जो खुद को जबरदस्ती एक पार्टी पर अध्यक्ष बने रहने के लिए थोपे, देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखे और जब देश कातर दृष्टि से सोनिया और उनके परिवार की तरफ देखे तो देशवासी पायें की सोनिया गाँधी तो अमेरिका या किसी और देश में बेहद ही गुप्त दौरे पर निकल गईं हैं जिन दौरों से आज तक भारत का कुछ भला नहीं हुआ है. ऐसी महिला जो अपने आप को देश का भला सोचने वाली बताती है वो देश में संकट के समय देश से भाग जाये वो देश का क्या खाक सोचेगी.
और सबसे अहम् बात जब सोनिया गाँधी अपने मायके इटली की नही हुई (भले दिखाने के लिए) तो वो भारत जो की उनका ससुराल है उसका क्या होंगी.
देश की भोली-भाली जनता अब खुद निर्णय करे की उसे कौन चाहिए और कौन गलत है.......कौन दिखावे का लड्डू भारत को खिलाना चाहता है और कौन भारत को कम से कम अपना तो मान कर काम कर रहा है.
सुमित कुमार सिंह,नमस्ते,आप सही कह रहे है लेकिन स्थिति इतनी जटिल हो गयी है कि अब हमें एक द्य्सरे को कोसना बंद करके उस लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए एक सर्व सम्मति बनाने की दिशा में सोचना चाहिए जो लक्ष्य भारत को इस संक्रांति काल से बहार निकाल कर पुनः सांस्कृतिक गरिमा दिला सके.यदि हम परस्पर आरोप प्रत्यारोप में अपनी उर्जा नष्ट करते रहे तो न तो यह व्यक्तिगत हित में है और न ही राष्ट्र और मानवीय हित में है अतः स्थिति बद से बत्तर होती चली जा रही है. मैं एक ऐसी अवधारण देने का प्रयास कर रहा हूँ जो सर्वसम्मति बनाने के लिए सभी को मजबूर कर सकती है. ये ब्लॉग श्रंखला लिखनी शुरू करने के बाद आप पहले व्यक्ति हैं जिन से में व्यक्तिगत स्तर पर सम्पर्क करने का इच्छुक हुआ हूँ. आप इन ब्लोग्स पर विजिट करें और फिर स्वविवेक से ठन्डे दिमाग से परिस्थितियों का अध्यन-चिन्तन-मनन करें और फिर उचित समझें तो अपने ब्लोग्स पर इन्हें साझा करें. मैं आपके इस पते को अपने ब्लॉग से लिंक करने जा रहा हूँ. संगठन में शक्ति होती है अतः कुछ लक्ष्य मिलने के कारन क्यों न हम संगठित हो कर काम करें लेकिन उस शक्ति को आवेश और परस्पर लड़ाई में नष्ट न करके रचनात्मक कार्य में लगायें और स्वयं भारत निर्माण के लिए आगे आयें.
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