होठों पर हंसी है पर दिल तो हताश है
आँखे पथरा गईं हाथ कांपते हैं अब तो
गले में आवाज नहीं शारीर में जान नहीं
टूट कर बिखरा हूँ मैं जाने कब जुडुन्गा
खुद को खड़ा न कर पाया मैं अब तलक
खोखला हुआ पड़ा हूँ मैं दशकों से यारों
रण में तो उतर गया पर हाथ खाली हैं
सोचता नहीं की देगा कोई सहारा मुझे
राह चुनी है जब ये मैंने खुद से ही
सोचता हूँ हो जाये सवेरा मेरे लिए भी
कब तलक भटकूँ इस अन्धकार में मैं
सोचता हूँ कोई साथी मिल जाये मुझे
कब तलक बना रहूँ राही अकेला मैं
ध्यान लगाता हूँ मैं अपने काम में
पर दिल में रहती है एक हुक हरदम
डांट भी सुनता हूँ मैं मेरे अपनों की
पर मेरे अपने डांटते भी हैं मेरे लिए ही
पर करूँ क्या कभी-कभी समझ न आता
दिमाग लगाता तो दिल कहीं और है जाता
पर मैं भी बढूँगा एक दिन बहुत आगे
अँधेरा काट आएगा सवेरा मेरे लिए भी
इन्तेजार में हूँ मैं उस दिन के की जब
खुद का तो भार उठा सकूँगा मैं तब
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