अर्थ के नाम पर हमेसा होता अनर्थ
सोच वही गुलामो की क्या होगा समर्थ
कभी देश था ये सोने की चिड़िया
आज बन गया है पिजड़े की चिड़िया
देश को लूटा बाहर वालों ने अब तक
देश लूट रहा अन्दर वाला अब तो
लूट का माल न मिले बराबर तो समझो
न भैया न बहना रास्ता अलग समझो
बोलियाँ लग रही हैं देश की आज
देखना है कौन बड़ी बोली लगता है आज
गाँधी की तस्वीर तुम रखते हो अपने पीछे
उसी तस्वीर के आगे करते हो गबन
जिसने दिया विश्व को रहने की सीख
आज वही सीखेगा सब्जी बेचना
देश की बोली लग चुकी है
देश की अर्थी उठने वाली है
खून के छींटे पड़ते थे दामन पर अब तक
अब तो बहनों की इज्जत के छींटे भी सहने हैं
दूध मलाई के देश में हो गया कैसे बवंडर
आज गाय काटी जाती है हर चौराहे पर
आ जाओ ऐ भारत के वीरों फिर से
देश में जरुरत तुम्हारी आन पड़ी फिर से
यहाँ कोई नहीं आगे आने वाला है
सब बैठ तमासा देखने वाले हैं
भारत अब तक एक न हो पाया है
कुछ तुमने और कुछ मैंने इसमें कमाया है
पर इतना जरुर सोचना ऐ भारतीयों
इस कमाई में हम सबने क्या गंवाया है
No comments:
Post a Comment