मैं ये लेख न तो आरक्षण के प्रति दुर्भावना से किसी प्रकार ग्रषित हो कर लिख रहा हूँ और न ही इस आरक्षण के कारन मुझे कोई हानी है क्यूंकि शुरू से मुझे सरकारी नौकरी नहीं करनी थी| मुझे आरक्षण से कोई परेशानी नहीं है बल्कि मेरा मानना है की इस तुरुप के इक्के का अच्छे से इस्तेमाल हो|
भाई आरक्षण एक ऐसा लोलिओप बन रखा है जिसमे सीधा मकसद है की दलितों को बेवकूफ बनाओ और उनसे वोट लो| लेकिन एक और मकसद है जिसे दलित उत्थान के झूठे वादे में बड़े जतन से छिपा लिया गया है| ये मकसद और कुछ नहीं बल्कि हिन्दुओं में फुट डालने का|
अब आइये जांचते हैं की जो आरक्षण १० साल के लिए बनाया गया था उसको आज ६५ साल से लगातार चलाया जा रहा है लेकिन उसका फ़ायदा किसे पहुंचा आरक्षण का| आज तक कितनी झोपड़ियाँ पत्थर और कंक्रीट के घर बन पाए| कितने गाँव के दलित भाई विकसित हो पाए| क्या आरक्षण कुछ हाथों की कठपुतली बन कर नहीं रह गया है|
अब कोई भी आगे आये और अपने गाँव के दलित भाइयों का हश्र देख ले की कितना आगे बढ़ा है इस आरक्षण से आपके गाँव का दलित| क्या केवल आरक्षण के नाम पर चंद रुपये हथेली पर रख देने भर से किसी दलित का उत्थान हो सकता है क्या? घर में खाने को कुछ नहीं हो, अनाज पैदा करने के लिए जमीन न हो तो इस आरक्षण का क्या दलित अचार डालेंगें?
जो कल मिटटी के घरों और झोपड़ों में रहते थे वो आज भी उसी तरह रहने को मजबूर हैं लेकिन फ़ायदा मिला जिनके पास पहले से मजबूती थी| जो कल डॉक्टर या IAS या कुछ बड़े लाभ के पद पर थे वही आगे बढे जिनका प्रतिशत ९५% है लेकिन जो मलिन घरों से आगे आये वो केवल ५% हैं| सबसे बड़ी बात की जो आज नेता हैं वो भी इस आरक्षण का लाभ उठाते हैं जिसकी इनको जरुरत ही नहीं है|
तो क्या मान लिया जाये की आरक्षण केवल समर्थ लोगों के फायदे के लिए बनाया जाता है आज और गरीबों के लिए लोलीपोप|
अब इस आरक्षण का दूसरा पहलु देखते हैं| आरक्षण कैसे हिन्दुओं में फुट डाल रहा है| एक नाकाबिल युवक आरक्षण के जरिये लाभ के पद पर पहुँच जाता है लेकिन काबिल इन्सान पीछे रह जाता है तो अमूमन है की उस काबिल इन्सान के अन्दर रोष आएगा जो कभी न कभी फूटेगा| आज कितनी ही बार खबर आती है की अमुक कॉलेज की अरक्षित सिट भर नहीं पाई लेकिन किसी काबिल अनारक्षित युवक को वो सिट नहीं दी जा सकती है क्यूंकि वो अरक्षित वर्ग की है| जो कोई अपने मेहनत से ऊपर के पोस्ट तक पहुंचा है उसको केवल इस लिए पीछे छोड़ दिया जाता है क्यूंकि प्रोनात्ति पाने वाला एक अरक्षित वर्ग का युवक है|
एक बात याद आती है मुझे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री जो की अब जीवित नहीं हैं स्वर्गीय राजीव गाँधी जी, जिन्होंने कहा था की जो भी राहत कोष केंद्र से चलता है अगर वो १०० रूपया है तो जरूरतमंद तक पहुंचते-पहुंचते वो सिर्फ एक रूपया रह जाता है| अब आप खुद सोचें की अगर वो पूरा १०० रूपया जरूरतमंद तक पहुंचे तो क्या कोई गरीब रहेगा या इस आरक्षण की जरुरत रहेगी| लेकिन आज की हालत में तो वो १ रूपया भी नहीं पहुँच रहा है बल्कि पूरा १०० रूपया लूट लिया जा रहा है| इतने घोटाले हो रहे हैं देश में अगर वो पैसा देश में लगे तो देश में क्या आरक्षण की जरुरत रहेगी? जो पैसा इन चोरों ने विदेशों में जमा कर रखा है वो भारत लाने में इनकी हालत ख़राब क्यूँ होती है क्यूंकि उसके बाद आरक्षण की जरुरत ही नहीं होगी देश में|
अब जरा इन मंत्रियों की माली हालत पर नजर डालते हैं जो इस आरक्षण की पैरवी करते हैं की उनकी माली हालत में इन दिनों में कितना बदलाव आया:-
मायावती जो की उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री रही हैं उनकी धन-दौलत १११ करोड़ है जो की १४ मार्च २०१२ के हिसाब से पिचले २ सालों में ही २७% बढ़ी| मायावती जी के पिता गौतम बुद्ध नगर में एक पोस्ट ऑफिसर थे| इनका परिवार जाटव जाती का है जिस पर मायावती जी की सोच थी की ये अगर प्रधानमंत्री बनाने का मौका पाएंगी तब ये बुद्धिस्ट बन जाएँगी| यानि फिर जाती का खेल| मायावती जी १९९४ में राज्यसभा की सदाशय बनी| अब अगर १९९४ से आज तक यानि २०१४ तक हर महीने ५०,००० रुपये के हिसाब से भी हिसाब लगाया जाये जो की एक मुख्य मंत्री की सैलरी है तो देखते हैं की कितना होना चाहिए इन महोदय के पास|
१८ साल * १२ महीने * ५०००० = १,०८,००,००० यानि १ करोड़ ८० लाख ही होना चाहिए पर दलितों की अधिष्ठाता मायावती जी के पास है कितना माल तो सीधा १०१ गुना ज्यादा| अब जरा इनसे कोई पूछे की क्या इनको आरक्षण चाहिए या ये पैसा कहाँ से आया| क्या ये वो पैसा नहीं है जो अरक्षित लोगों के उत्थान के लिए था और जो उन लोगों के उत्थान के बदले अरक्षित लोगों की अधिष्ठात्री मायावती जी की जेब को शुशोभित कर रही है और ये दिखावे के लिए इस आरक्षण के लिए झूठी लड़ाई लड़ने की नौटंकी में लगी हैं और इन जैसे तो पता नहीं कितने नेता हैं जो भोले भाले दलित भाइयों को बेवकूफ बनाने में लगे हैं और उन्हें एक ऐसी गहरी और अँधेरी खाई में धकेल देना चाहते हैं जिसका परिणाम एक ही है "गृह युद्ध"|
दूसरा सवाल है की आखिर किसी भी आरक्षण का लोलीपोप केवल चुनावी माहौल में ही क्यूँ किया जाता है? क्या ये वोटर्स को ललचाने के पुराना और कारगर तरीका है जिसे वोटर्स देख ही नहीं पते हैं या देखने के बाद भी अपनी इन्द्रियों को बंद करके गाँधी जी बन्दर बन इन मदारी रूपी नेताओं के तान पर नाचते रहते हैं|
मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूँ जैसा की मैंने पहले भी कहा है पर अगर आरक्षण देना ही है तो जाती आधारित दे कर हिन्दुओं को बांटने से अच्छा है की आप आमदनी के आधार पर आरक्षण दें|
१. आमदनी के आधार पर आप आरक्षण दें जिसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज नजर रखें|
२. साथ ही आमदनी आधारित आरक्षण के लिए आप फॉर्म १६ लें जिसे लोग टैक्स जमा करने के लिए उपयोग करते हैं और जिसे सीधा सरकारी कम्पनी और मौजूदा सरकार की दुश्मन कैग चेक करती है|
३. जिसको एक बार आरक्षण मिल जाये उसे दुबारा आरक्षण का लाभ न मिले बल्कि उसके जगह दुसरे को आरक्षण का लाभ मिले|
इस आधार से हर उस व्यक्ति को लाभ मिल सकता है और हर जरूरतमंद को रोटी मिल सकती है| लेकिन हम सभी जानते हैं की अगर जरूरतमंद का पेट भर गया और वो सफल है तो वो इन पाखंडी और जाती के नाम पर आरक्षण का लोलीपोप दे कर दलित भाइयों का न तो मजाक बना पाएंगे और न ही हिन्दुओं के बिच कोई खाई पनप पायेगी|
भाइयों इन कुटिल नेताओं की मानसिकता को समझो जो केवल आपको बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं और कुछ नहीं| इन कुटिल नेताओं को उनके मकसद में कामयाब न होने दें और इन्हें सबक सिखाएं|
जय हिंद जय भारत
मेरे विचार से आरक्षण संविधान का कलंक है /..वैसे भी हमारा संविधान हमारे विचारो से , भारतीय संस्कृति से, भारतीय विचारो से मेल नही खाता .. क्योकि वह वास्तव मे वह हमारा है ही नही हम पर थोपा गया है ... हम गुलामो की तरह उसे मानने बाध्य है ..
ReplyDeletebhais ke age bin bajaye bhais khadi pguraye
ReplyDeleteआपका लेख सार्थक और सटीक है | आरक्षण से कोई परेशानी किसी और को हो,वर्ग भेद भाव बढे, अरक्षित वर्ग सदा के लिए पट्टा न लिखावे यह सरकार को देखना चाहिए |उदहारण के लिए राजस्थान सरकार का एक क.लेखाकार(१९७९ बैच) अरक्षित वर्ग से २ पदौनती लेकर लेखधिकारी बन कर उससे वरिष्ठ (लेखाकार ७८ बैच) जो एक पदोन्नति पाकर सहायक लेखाधिकार बना के ऊपर एक ही विभाग में वरिष्ठ को आदेशित करने लगा, तो वरिष्ठ सेवा निवृति लेने को मजबूर हो गया -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
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