दी क़ुरबानी अशफाक भगत चंद्रशेखर ने
चाहत थी एक मुकम्मिल जहाँ बनाने की
आज़ादी तो मिली एक अभिशाप के साथ
आई पार्टी जो बनी मौज मस्ती की खातिर
कर रही है आज भी जम कर लूट-खसोट
मचा है चारो ओर एक घनघोर अन्धकार
अब तो उठो ऐ मेरे भारत के वीर सपूतों
पलट ये तख्ते ताज बना दो इसे इतिहास
चाहत थी एक मुकम्मिल जहाँ बनाने की
आज़ादी तो मिली एक अभिशाप के साथ
आई पार्टी जो बनी मौज मस्ती की खातिर
कर रही है आज भी जम कर लूट-खसोट
मचा है चारो ओर एक घनघोर अन्धकार
अब तो उठो ऐ मेरे भारत के वीर सपूतों
पलट ये तख्ते ताज बना दो इसे इतिहास
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