और जला उनका प्यारा घर
जले उनके घर वाले भी
जला माँ का आंचल भी
जला बहन का सिंदूर भी
जल रही वो असहाय माँ भी
जिसने अपने दूध से सींचा
पर वो तो खड़े मुसकाय
क्या आज ये दिन देखने को
पुरखो ने अपना खून बहाया
क्या इसी आग की खातिर
तुमने पिया गंगा का नीर
अधिकार की बात तुम करते हो
पर कर्तव्य तुम्हे याद नहीं
अपने इन कलंकित हाथो से
अपनी माँ का आंचल मत नोचो
बहन का सिंदूर मत पोछो
सोचो आज के इस दिन के लिए
कितनो ने कटाए अपने शीश थे
आज उन वीरों के कटे शीशों को
अपने गंदे पैरों से न रौदो
उठो-जागो ऐ भारत के वीर तुम
मत बनो ऐसे अधीर तुम
एक आग है तुममे जलती हुई
जला डालो हर पापी को तुम
देश तुम्हे पुकार रहा है
सिसक रहा है माँ का आंचल भी
देखो कही देर न हो जाये
चिर निंद्रा में सभी सो न जाये
No comments:
Post a Comment