गुजरात दंगे पर १० सालों तक अनवरत अपना फटा ढोल पीटने वाले सेक्युलर भांडों और मीडिया के दलालों को शायद देश के अन्य दंगो के बारे में बात करना पसंद नहीं है| क्युकी अगर ये दलाल बाकि के दंगों पर बात करेंगे तो उनकी दलाली का पैसा मिलना बंद हो जायेगा|
क्या अपने किसी को देखा है की वो कभी भी १९८४ के दिल्ली के दंगे के बारे में बात करता मिला हो? दिल्ली सिख-हिन्दू का दंगा जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भड़काया वो एक भीड़ का उन्माद हो गया और गोधरा में राम भक्तों को जलाना एक भटके हुए मुसलमानों की गलती पर वही गोधरा कांड के बाद भड़का गुजरात दंगा मोदी जी द्वारा भड़काया हुआ एक सामूहिक हत्याकांड|
भारत में १९५० से लेकर १९९५ तक में छोटे बड़े मिला कर ११९४ दंगे हुए पर जो दिल्ली में ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिरा गाँधी के मरने के बाद दंगा चला वो अब तक का सबसे वीभत्स सामूहिक हत्याकांड था| ये वीभत्स हत्याकांड उस जनसमूह के साथ हुआ था जिसने कुछ समय पहले देश के बंटवारे का दंश झेला था लेकिन किसी ने उस जन समूह की सुध नहीं ली थी तथा यही जन समूह जिसे हम सिख कहते हैं भारतीय सेना में सबसे ज्यादा बढ़ चढ़ कर आते हैं और इनके नाम से सिख रेजिमेंट तक है जिसने एक समय भारत की सीमा को लाहौर तक खिंच दिया था|
जब ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिरा गाँधी मरी तब सिखों की छिटपुट हत्याएं हुई पर यहाँ भारतीय मीडिया ने ऐसा फर्ज अदा किया अपना जिसने करीब ३००० सिख भाइयों की बलि ले ली और कितने ही सिख भाई दंगे के बाद मिले नहीं| इंदिरा गाँधी के मरने के बाद दूरदर्शन ने राजीव गाँधी का साक्क्षातकार लिया उस समय हो रही छिटपुट सिखों की हत्यायों पर जिसमे राजीव गाँधी ने कहा की "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिल जाती है और छोटे पौधे कुचल जाते हैं|" एक प्रधानमंत्री के द्वारा दिया गया ये अब तक का सबसे शर्मनाक बयान था और इस बयान ने इस छिटपुट हो रही हत्यायों को एक वीभत्स सामूहिक हत्याकांड में तब्दील कर दिया क्यूंकि देश का तत्कालीन प्रधानमंत्री यही चाहता था|
राजीव गाँधी के इस बयान से कुछ २ टेक की औकात वाले नेताओं को कमाने का और राजीव गाँधी के सानिध्य में आने का मौका दिख गया| इसमें थे सांसद "सज्जन कुमार", तत्कालीन कैबिनेट मंत्री "जगदीश टाइटलर", तत्कालीन कैबिनेट मंत्री "हरकिशन लाल भगत" में तो आतंरिक होड़ मच गई की कौन ज्यादा हत्याएं करवाता है (जैसे उनको हत्याएं करवाने का इनाम मिलने वाला था)| इन तीनो नेताओं ने अपने गुर्गों को यहाँ तक कह दिया था की "एक पगड़ी लाने पर १००० रूपया और एक सरदार का घर जलने पर १०००० रूपया"| इन तीनो नेताओं को इन हत्यायों का इनाम भी मिला की ये लोग सालों तक केंद्रीय मंत्री रहे और दंगे के गवाहों को मौत के घाट उतरवाते रहे|
जो भी अगर ये कहता हुआ मिलता है की दिल्ली का ये सामूहिक नरसंहार सरकार के द्वारा प्रायोजित नहीं था तो एक घटना उन लोगो के लिए है की एक सिख जिसका नाम "अमर सिंह" था वो इस नरसंहार से बच गया| वो सिख बचा कैसे तो उसके हिन्दू पडोसी ने उसे अपने घर में शरण दिया और जब कत्लेआम मचाती हुई भीड़ अमर सिंह नाम के सिख को ढुंढते हुए पहुंची तो उस हिन्दू ने ये बोल दिया की अमर सिंह मर चूका है|
पर उस कातिल भीड़ को इससे संतोष नहीं हुआ और वो अमर सिंह का मृत शरीर देखने की बात करने लगे तब उस हिन्दू ने कहा की उसके शरीर को और लोग उठा कर ले गए हैं| ये सुन कर उस समय तो भीड़ चली गई पर थोड़े समय में फिर पहुंची और उस हिन्दू को एक लिस्ट दिखाते हुए कहा की इस लिस्ट के मुताबिक अमर सिंह का मरा हुआ शरीर अभी तक किसी ने भी नहीं उठाया है| अब ऐसी लिस्ट बन कहाँ रही थी जिसमे चुन-चुन कर सिखों को मारा जा रहा था और उनके मरे हुए शरीर को किसको दिखाया जा रहा था और कौन बना रहा था वो लिस्ट| ये बात सोचने वाली है! लेकिन इस घटना से पता चल जाता है की ये सामूहिक नरसंहार कितने व्यवस्थित ढंग से चलाया जा रहा था|
जब इस महा नरसंहार की जांच की कमान CBI के आर० एस० चीमा को दिया गया तब चीमा जी ने जो बताया वो देख कर ये पूर्ण रूप से कहा जा सकता है की कांग्रेस नाम की सरकार उस समय एक आतंकवादी जैसा व्यव्हार कर रही थी और दिल्ली की पुलिस को अपने इशारे पर नचा रही थी| चीमा ने उस समय के एडिसनल जज जे० आर० आर्यन को बताया की "दिल्ली की पुलिस एक पूर्व-नियोजित तरीके से व्यव्हार कर रही थी दंगे के समय और दंगे पर अपनी ऑंखें बंद किये बैठी थी| उस नरसंहार के दौरान १५० दंगे की वारदातों के बारे में पुलिस को कम्प्लेन किया गया लेकिन पहली ५ वारदातें जो छोटी थीं और शुरुवात की थीं उन्हें ही एफ़० आ० आर० में लिखा गया और इसका किसी भी मीडिया में कोई उल्लेख नहीं है|"
पर हद तो तब हो गई जब इतने के बाद भी जो दाग नेताओं के ऊपर लगे थे और उनके खिलाफ कोर्ट में सुनवाई हो रही थी उसमे कोर्ट ने ऐसा साक्ष्य माँगा की सुन कर यही कहा जा सकता है की भारत की अदालतें वही फैसला सुनती हैं जो सरकार में बैठे लोग चाहते हैं| कोर्ट ने CBI से माँगा की जिन नेताओं पर आरोप लगे हैं उनके खिलाफ आपके पास क्या सुबूत हैं गवाहों के अलावा, कोई न्यूज़ पेपर की कटिंग, कोई भी मीडिया की खबर कुछ और लाइए| जब न्यूज़ पेपर में ही खबर में नाम आने से आरोप सिद्ध होता है तो छोटे लोगों को तो न्याय मिलने से रहा क्यूंकि उनके पास तो सिर्फ चंद गवाह होते हैं लेकिन पेपर की कटिंग नहीं होती है|
अब इस सामूहिक हत्याकांड के बारे में जितना लिखे उतना कम ही लगेगा क्युकी ये इतना जतन से जो करवाया गया था और आज भी इसमें बर्बाद लोग जब भारत की अदालत से त्रस्त हो और भारत छोड़ अमेरिका में शरण लिए उन लोगों ने अमेरिका में कांग्रेस के खिलाफ और इस नरसंहार के खिलाफ केस किया जिसकी सुनवाई आने वाली २७ जून २०१२ को हुआ| पर कांग्रेस का भांडपन तो देखिये कांग्रेस ने अमेरिका की सरकार से ये कहा की जो केस अमेरिका की अदालत में कांग्रेस के खिलाफ चल रहा है वो चुकी २५ साल पुराना है अतः इस केस को ख़ारिज कर दिया जाये|
इस केस को ख़ारिज करने के लिए देखिये कैसे कांग्रेस के सांसद मोतीलाल वोरा ने भांडों वाली दलील दी की, "कोई भी समन या कम्प्लेन इंडियन नेशनल कांग्रेस को नहीं मिला है अतः इस केस को ख़ारिज करें|"
इससे २ कदम आगे बढ़ कर इस वोरा ने ये कहा अपने एफिडेविड में कहा की इंडियन नेशनल कांग्रेस और इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस दोनों अलग-अलग एंटिटी हैं और दोनों का कोई सम्बन्ध नहीं है क्यूंकि ये छोटा बच्चा वोरा का नहीं था।
नेशनल कांग्रेस के लीगल ऐडवाईजर गुरापत्वंत सिंह पन्नुन ने तो इस केस को ही बेकार और निराधार बता दिया|
इसमें हमारे गृह मंत्री पि० चिदंबरम २५ जून २०११ को १९८४ में हुए सिख नरसंहार के ऊपर बोलते हुए कहा की, "ये समय है की हम १९८४ की उस घटना को भूल एक नए भारत का निर्माण करें|" अब जरा कोई इस पर बोलेगा की ये क्या था क्यूंकि खुद तो ये लुंगी उठा-उठा कर गुजरात के २००२ के दंगे पर भौकते हुए दिख जाता है|
तो ये है इस खुनी कांग्रेस का दोहरा चरित्र की, "खुद करे तो रासलीला और कहीं किसी घटना का जवाब मिले तो वो वह्सीपना|"
वाह रे कांग्रेस तेरी महिमा अपरम्पार.....करती रह ऐसे ही नरसंहार||
वाह रे मीडिया इस फोटो को तो बहुत उछाला ताकि गुजरात का नाम ख़राब और मोदी को फंसाया जाये
लेकिन इस फोटो को दिखने की हिम्मत क्यूँ नहीं कर पाते हो तुम या खुद तुम्हारी छाती फटने लगती है।