भारतीय मीडिया पर भारी महाकुंभ
मीडिया सही मार्ग के नाम पर हिंदुओं को कर रही गुमराह
जो कुम्भ मेला जाने कितनी सदियों से चलता चला आ रहा है और न केवल भारत बल्कि देश-विदेश से लोग यहाँ जुटते हैं और ये मेला मानव जाती का पृथ्वी का सबसे बड़ा जनसमूह को अपने मे समेटता है उसके लिए अब मीडिया के पेट मे दर्द शुरू हो गया। शायद मीडिया घराने को इस मेले की भव्यता से कुढ़न हो गई तभी तो इन मीडिया के ओहदेदारों को बाकी मे नहीं दिखाई दे रहा है कुछ।
क्या मतलब है क्रिसमस पर लोगों को गिफ्ट बाँट कर या भारत मे रह कर विदेशी कैलेंडर के हिसाब से नया साल मनाने का या एक तय तिथि 14 फरवरी को प्यार का दिन मनाने का जबकि भारत मे हर एक दिन प्यार का दिन माना जाता है।
क्या मीडिया को किसी तय पर्व मे सड़कों पर नंगे हथियारों से अपने शरीर को जख्मी करती भीड़ नहीं दिखती है या की सनातन पैदा बच्चे या बच्ची का शरीर विक्षेदित किया जाये ताकि उसको मुसलमान बनाया जा सके परंतु ईमान ना हो उसके अंदर।
या इस मीडिया को ये दर्द हो रहा है की करीब 10 लाख विदेशी मूल के गोरे या काले लोग जो अपने मूल सनातन धर्म से भटक गए थे वो वापस सनातन धर्म मे वापस आ गए हैं और कुम्भ मे धुनि रमाए बैठे हैं वो भी भगवा मे।
अब तो यही लगता है की जैसे हिन्दू धर्म का कोई भी त्योहार हो ये भीखारी पहले पहुँचेंगे अपना कटोरा ले कर और भीख मिलने के तुरंत बाद गाली भी देना चालू करेंगे।
अब ये असल दर्द क्या है ये या तो इन मीडिया के कर्मी जाने या फिर इनके आका परंतु ये इस बात को भूल रहे हैं की हिन्दू जिस दिन उठ गया उस दिन इनको देखने को कुछ नहीं बचेगा।
अतः मीडिया के सरदारों आपको एक नम्र सलाह है
"चड्ढी मे ही रहो.......लंगोट ना बांधो........खुल जाएगी जल्दी.......और नंगे हो जाओगे"
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