25 Jan 2013

Republic day on the pile of dead bodies


लाशों के ढेर पर गणतन्त्र दिवस 

Indian republic day

इस महाकुंभ के दौरान ही इलाहाबाद के किले मे जाना हुआ मेरा। वहाँ अक्षय वाटिका मंदिर मे दर्शन के बाद आगे जाते वक़्त मेरी नजर पड़ी 2 फोटोग्राफ पर जो अभी हाल के ही शहीद हुए हमारे 2 सैनिकों की थी जिनका सर "श्री पाकिस्तानी जी साहब" कॉंग्रेस भेंट स्वरूप ले गए थे। [ध्यान रहे ये दोनों सैनिक भी भगवा हिन्दू आतंकी थे (शिंदे जी के हिसाब से)।]

मैंने वहाँ देखा की वहाँ इन दोनों वीरों के फोटो के सामने फूलों का अंबार लगा था और हर कोई अपनी श्रद्धांजलि दे रहा था उन्हे। वहीं पर एक रजिस्टर भी रखा हुआ था जिसमे लोग अपनी सोच और इस अमानवीय घटना के प्रति अपने रोष को व्यक्त कर रहे थे। मैं भी लाइन मे लग गया श्रद्धांजलि देने के लिए। मेरा नंबर आया और मैंने जब रजिस्टर देखा तो गर्व से मेरा सीना और चौड़ा हो गया। 

उस रजिस्टर मे लोगों ने सेना को पूरा साथ देने, पाकिस्तान पर हमला करने और यहाँ तक की सेना इस देश की सत्ता संभाले 5 सालों के लिए और इन नरपिशाच कांग्रेसियों को लात मार कर भगाएँ, ऐसे विचार दिये गए थे श्रद्धालुओं के द्वारा।

वहीं खड़े खड़े मैंने सैनिकों को बात करते हुए सुना की कुछ और सनिकों की मृत्यु हुई है सीमा पर और उनके शव उनके घर पर भेजे जा रहे हैं...........ये बात सुन कर उनके चेहरे एक बार को भींच गए.....मुट्ठियाँ तन गईं........भृकुटियाँ टेढ़ी हो गईं.........परंतु अगले ही पल वो शांत हो गए ये सोच कर की वो तो अपनी जान गंवा रहे हैं देश की रक्षा मे परंतु हमारी सरकार को उनकी ही फिक्र नहीं है और उनको मरने तो दे रही है परंतु मारने वाले को मारने नहीं दे रही है।

परंतु हमे क्या हम तो कल के गणतन्त्र दिवस की तैयारी मे तल्लीन हैं.....क्या फर्क पड़ता है एक सैनिक कम हो गया या 100 सैनिक कम हो गए तो.......हमारी तो गुड मॉर्निंग चाय हमारी बीवी ला रही है ना....हमें रेड रोज़ मिल रहे हैं ना...अरे मैं तो भूल ही गया इस बार तो पैसा ही कम हो गया मेरा इस महंगाई में अब घर का खर्चा कैसे चलाऊँ अब तो फाँके मारने की नौबत आ गई है.....तभी एक आकाशवाणी हुई.....

"बच्चा क्यूँ व्यथित हो रहा है अभी चुनाव आ रहे हैं उसमे जम कर पैसा कमा लेना कॉंग्रेस पार्टी से और वोट कॉंग्रेस को ही देना ताकि फिर से तुम चाय पीते हुए अखबार मे किसी और समूहिक बलात्कार की शिकार और दम तोड़ती दामिनी या किसी सर कटे सैनिक हेमराज को देख सको....इसलिए व्यथित होना छोड़ अभी जाओ और गणतन्त्र दिवस मनाओ"।

वन्देमातरम
भारतीय सेना हम तुम्हारे साथ हैं......हर कदम पर


21 Jan 2013

Tears of Soniya Gandhi

सोनिया के आँसू

पानी के बाहर भी रहते हैं घड़ियाल 

Soniya's Tears only for Terrorists

सोनिया के आँसू नहीं हो गए पता नहीं क्या हो गया। ये आँसू निकलते किस ट्यूबवेल से हैं आज तक नहीं पता चला। कहीं इस ट्यूबवेल की बोरिंग अल्पसंख्यकों के आँगन मे तो नहीं है। ऐसा इस लिए कह रहा हूँ की हर आतंकी जो मुल्ला होता है उसके मरने पर आँसू निकल पड़ते हैं मोहतरमा के। 

परंतु ये आँसू तब नहीं निकले थे जब इनकी सास इन्दिरा गांधी अपने कर्मों के चलते मरी थी। ये आँसू तब नहीं निकले थे जब मर रही इन्दिरा को पास के अस्पताल ना ले जा कर दूसरे तरफ के तब अभी व्यवस्थित हो रहे अस्पताल ले जाया गया था जबकि बगल मे स्थित एम्स को छोड़ा गया था।

इन मोहतरमा के आँसू तब नहीं निकले थे जब 1984 मे सिखों को जिंदा जलाया जा रहा था वो भी बहुत ही वीभत्स तरीके से गले में टायर डाल कर। सिखों के घरों को चिन्नहित करके घरों पर हमला करके उन्हे मारा जा रहा था। सिखों की बेटियों के साथ इन मोहतरमा के अंतरंग साथी टाईटलर इत्यादि सरेआम चौराहे पर समूहिक बलात्कार कर रहे थे। तब तो ये इटली के दूतावास मे बैठीं हुई थीं और एक चार्टर्ड प्लेन वहाँ खड़ा था की जैसे ही कुछ उल्टा दाँव पड़ता है वैसे ही सपरिवार ये देश से निकल जाएंगी।

इन मोहतरमा के आँसू तब नहीं निकले जब पूरे कश्मीर मे पाकिस्तान समर्थित मुल्ले हिंदुओं को मार रहे थे और घरों के ऊपर चिपका रहे थे की "हिन्दू औरतों के साथ पर बिना हिन्दू मर्दों के"। उस समय शायद ये मोहतरमा इंडिया गेट पर रात के समय मे आइसक्रीम के मजे ले रही थीं।

ये मोहतरमा तब नहीं आँसू टपकाईं जब इनकी माँग धुल गई थी। तब तो ये देश को छोड़ कर निकल गईं थीं की अब नहीं लौटना है इस देश मे। और जब लौटीं तो सबसे पहले अपने धुली माँग को धोने वालों को माफ कर दिया। और खुद ही माफ नहीं किया बल्कि अपने नौटंकी के शहँशाहों राहुल और प्रियंका से भी माफ करवा दिया।

इन मोहतरमा तो क्या इनके पूरे कुनबे का आँसू तब नहीं बहा है जब भारत के सैनिक मरे या भारत की जनता मारी गई तब तो ये पार्टियों के लुत्फ उठा रहे होते थे या नंगी जांघे देखने से फुर्सत नहीं मिलती थी। परंतु जैसे ही कोई आतंकी मारा जाता है वैसे ही मोहतरमा तो क्या पूरे इनके नौकर बीरदारी के आँखों मे आँसू आ जाते हैं।

अब तक तो मोहतरमा के आँसू निकालने की कवायद को बल दे उसको पुष्टि करने हेतु नौकर होते थे परंतु अब शायद उनको निकाल कर दो नंबरी को इस कार्य हेतु नियुक्त किया गया है।

अब मुझे कोई समझाये की सोनिया के आँसू हैं या राहुल की सूसू कभी भी निकल जाती है।



17 Jan 2013

Maha Kumbh, Ganga and Sangam


महिमा गंगा मईया की


आस्था ने मिटाई जातियों एवं समंदरों की दूरियाँ


14 जनवरी, 2013, पौष सूद 3, विक्रम संवत 2069, दिन सोमवार मकर संक्रांति के दिन इलाहाबाद स्थित संगम पर साधुओं के शाही स्नान के साथ सदी के महाकुंभ का शुभारम्भ।


आज मैं बहुत ही उत्सुक था सदी के महाकुंभ के दिन और शाही स्नान के समय मे ही संगम मे डुबकी लगाने को। लेकिन मन मे एक डर था की कहीं भीड़ के वजह से मैं संगम मे डुबकी ना लगा पाऊँ। कहीं ऐसा ना हो की जहां मैं डुबकी लगाऊँ वहाँ केवल पतित पावनी गंगा हों या फिर यमुना हों। मेरा मन था सिर्फ उस स्थान पर डुबकी लगाने को जहां माँ गंगा, यमुना और अदृश्य रूप मे सरस्वती मिल संगम बनाती हैं।

मैं एक उत्साह और मन मे संगम से दूर जाने के डर को लिए हुए घर से निकल गया संगम की ओर। जैसे-जैसे मैं नदी तट के समीप पहुँच रहा था वैसे-वैसे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। रास्ते मे बहुत से श्रद्धालु मिले जिनमे कोई बंगाली था तो कोई मराठी, कोई उड़ीसा से आया था तो कोई केरल से, किसी का घर कश्मीर मे था तो किसी का गुजरात मे, कोई आसाम का रहने वाला था तो कोई पंजाब का, यहाँ तक की मुसलमान भी पहुंचे थे इस सदी के महाकुंभ मे डुबकी लगाने। आश्चर्य हुआ मुझे देख कर की सात समंदर पार से आए विदेशी श्रद्धालुओं को देख कर जो भगवा भेष मे नंगे पाँव श्रद्धाभाव मे नदी के तरफ बढ़े चले जा रहे थे। ये विदेशी श्रद्धालु रास्ते मे जो भी मिल रहा था उससे हाथ जोड़ नमस्ते कर रहे थे। भगवा वस्त्र मे तन कर चले जा रहे थे। जिनके पास भगवा वस्त्र नहीं थे वो खरीददारी करते हुए दिखे भगवा वस्त्रों की।

सभी के अंदर एक ललक और एक उत्साह था नदी मे डुबकी लगाने का। सभी भाव-विह्वल थे। सभी निष्काम भाव से आगे बढ़े चले जा रहे थे और गंगा मईया की जय, जय श्री राम अथवा अपने इष्ट देव का आहवाहन करते हुए चले जा रहे थे। रास्ते मे कई लोग ऐसे मिले जो आने जाने वालों को चाय, नाश्ता या पानी वगैरह की सुविधा देने के लिए खड़े थे और सब मुफ्त था। मैं चूंकि अपने रिस्तेदार के यहाँ से ही निकला था तो मैंने उनके इस आग्रह को विनम्रता से मना कर दिया की मुझे जरूरत नहीं है आप मेरा हिस्सा किसी दूर से आए श्रद्धालु को दें मैं तो अभी घर से ही आ रहा हूँ।
मैं भी विभिन्नता मे एकता को प्रदर्शित करती श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ उस जगह पहुंचा जहां से कुम्भ मेला आरंभ था। मैं जैसे वहाँ पहुंचा तो देखा की नदी के तरफ मुंह करके रेत मे लेट कर गंगा मईया को सस्टांग नमन करते भगवाधारी कई विदेशी श्रद्धालु जिनकी आँखें नम थी माँ गंगा के मुहाने पर आ कर ही एवं एक बच्चे के मानिंद खुश हो रहे थे वो विदेशी तथा भारत के भिन्न-भिन्न कोने से पहुंचे हुए भक्त गण। उनको देख मेरे अंदर भी माँ गंगा को वंदन करने की ईक्षा हुई और मैं भी लोट गया उस सफ़ेद बालू मे। सफ़ेद बालू की शीतलता ने ही मेरे अंदर के अभी तक के सारे थकान को जैसे एक क्षण मे हर लिया हो और एक नई स्फूर्ति मेरे नसों मे दौड़ गई हो।

वहाँ से उठ हम सभी बढ़ चले संगम तट की ओर एक नए उत्साह से ओत-प्रोत हो कर। रास्ते मे हमें और श्रद्धालु भी मिलते गए और कारवां बनता गया, जयकारा लगता गया गंगा मईया का। सभी श्रद्धालु एक दूसरे को साथ ले कर चल रहे थे। हर तरफ केवल श्रद्धालुओं की भीड़ थी। लड़के-लड़कियाँ, बड़े-बुड्ढे यहाँ तक की बच्चों मे भी एक उत्साह था, गंगा मे डुबकी लगाने का। जमीन तो कहीं दिख ही नहीं रही थी। केवल श्रद्धालुओं का शरीर और उनकी भक्ति-निष्ठा दिख रही थी। एक भाव-विह्वलता दिख रही थी। एक समर्पण दिख रहा था माँ गंगा के प्रति। 

रास्ते के दोनों तरफ साधुओं के स्थल थे। उसके बीच से ही सारे श्रद्धालु बस संगम तट की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। रास्ते मे पुलिस की बैरिकेटिंग थी भीड़ को दूसरे तरफ मोड़ने हेतु ताकि श्रद्धालुओं की भीड़ एक ही घाट पर ना पहुँचे। पर गंगा मईया की महिमा भी अपरंपार थी और मैं अपने साथियों समेत संगम के तरफ ही मुड़ गया। जैसे पता चला की मैं संगम के तरफ मुड़ा हूँ मेरा उत्साह और दुगुना हो गया साथ ही विदेशी और देश के विभिन्न प्रान्तों से आए श्रद्धालुओं का भी। 

अब हम सूखी सफ़ेद रेत से निकल कर गीली रेत पर आ गए और गीली रेत के ठंढक कर अहसास तन के साथ-साथ मन को भी सुकून दे रहा था। अब हमारी निगाहों के सामने विशाल क्षेत्र मे फैला संगम था। संगम का दृश्य बहुत ही विहंगम था और सभी भावविह्वल थे वहाँ। कुछ की आंखे नम थीं वहाँ तो कुछ श्रद्धा भाव मे बस गंगा और संगम की अविरलता को निहारे जा रहे थे। क्यूँ झूठ बोलूँ मैं खुद भी उनही श्रद्धालुओं की भीड़ मे था जो अविरलता को निहार रहे थे।

मैंने कब कपड़े उतारे और कब मैं संगम की गोद मे समा और उस अविरलता को अपने तन और मन पर महसूस करने हेतु और भी गीले रेत मे कब उतर गया, मैं कब झुका माँ गंगा को श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु, इसका मुझे पता ही नहीं चला। मुझे तो तब पता चला जब गंगा मैं संगम के ठंडे पानी मे उतरा और ऐसा लगा की जैसे मेरे पैर ठंड से सुन्न हो गए। यकीन मानिए और जगह होती मैं निकल गया होता पानी से, इतनी ठंड मे कौन इस बर्फ वाले पानी मे नहाये। परंतु जाने वो कौन सी शक्ति थी जिसने मेरे अंदर इतनी गर्मी पैदा कर दी की जब मैं छाती के बराबर पानी मे पहुँचा और डुबकी लगाई तो ऐसा जान पड़ा की इससे बड़ी शांति नहीं मिल शक्ति और कौन कहता है की जनवरी मे उत्तरी भारत मे 0 के आस-पास तापमान पहुँच गया था। कौन कहता है की इस ठंडी मे नदी का पानी बर्फ के मानिंद ठंडा होगा। पहली डुबकी के बाद जरा भी ठंड नहीं थी। 

तभी मेरी नजर नदी के दूसरे तट पर गई जहां साधू-सन्यासी शाही स्नान कर रहे थे और वो भी उसी प्रकार उछल-कूद मचा रहे थे माँ गंगा और संगम मे जैसे की वो किसी माँ के गोद मे किलकारी मार हाथ-पैर चला रहे हों। 

एक वाक्य मे कहें तो "क्या साधू क्या सन्यासी या फिर था वो कोई श्रद्धालु, सब थे मगन ध्यान मे लिन, गंगा की गोद मे समा जाने को तैयार।"

फिर मैंने अपने सभी परिजनों, स्वजनों और मित्रों के नाम की डुबकी लगाई जिनके नाम मुझे याद आते गए उस भावविह्वलता मे। फिर अपनी डुबकियाँ लगाईं मैंने। फिर जैसा माना जाता है की संगम मे स्नान के बाद वहीं नदी मे खड़े-खड़े सूर्य भगवान को अर्घ दिया जिसमे मैंने अपने सभी स्वजनों के लिए प्रार्थना और देश का भविष्य बदले ऐसी कामना की। (अब प्रार्थना क्या की ऐसा मानना है की बताया नहीं जाता है तो आपको मेरे कहे पर विश्वास करना पड़ेगा की मैंने प्रार्थना की)।

संगम मे अच्छा समय बिताने के बाद मैं बाकी के श्रद्धालुओं के साथ ही बाहर निकला। अपने कपड़े पहने। तब मैंने देखा की वहाँ तो लड़कियाँ भी नहा रही हैं, माताएँ भी नहा रही हैं, सात समंदर पार से लड़कियाँ भी नहा रही हैं और बाहर निकल कर कपड़ों के ओट मे वो अपने कपड़े बदल रही हैं परंतु लाखों की भीड़ के बाद भी किसी भी माता-बहन के साथ कोई छेड़-छाड़ नहीं कर रहा है। सभी अपने मे मस्त हैं। शारीरिक सौंदर्य की उपेक्षा कर केवल और केवल संगम के सौंदर्य को देखने मे व्यस्त हैं।

अब कपड़े पहन लेने के बाद मैंने सोचा की घूमते हैं कुम्भ लेकिन तभी घाट पर ही मैंने देखा की कुछ परिवार जिनमे औरतें ज्यादा थीं वो स्नान करने के बाद वहाँ पुजा वगैरह कर लेने के बाद प्लास्टिक की थैलियाँ वहीं छोड़े जा रही थी। मैंने उन्हे रोका और कहा की आप कृपया अपने फैलाये हुए कूड़े को समेट लें और इन्हे बाहर फेंके। इतने पर औरतें मेरे ऊपर चढ़ बैठीं। मैं कौन होता हूँ उन्हे मार्गदर्शन देने वाला या उनके काम मे टांग अड़ाने वाला या मुझे अपने काम से मतलब रखना चाहिए।

तब मैंने शांत मन से उन सभी परिवारों को समझाया की हम यहाँ अपने अगर कोई मैल है तो इस पावन घाट पर उस मैल को धोने आते हैं, हम यहाँ एक श्रद्धा भाव से आते हैं, हम यहाँ माँ गंगा के दर्शन और उनकी शीतलता और अविरलता को अपने अंदर आत्मसात करने आते हैं ना की हम यहाँ अपनी गंदगी को माँ गंगा को दान करने आते हैं, हम यहाँ आपने कूड़े को माँ गंगा मे प्रवाहित करने नहीं आते हैं, हमारे इस कूड़े से माँ गंगा कितनी दूषित होंगी और माँ गंगा को क्या कष्ट होगा हमारे इस कूड़े के प्रवाह से आप इतना तो समझ ही रहे होगे। 

मेरे इतना समझने पर वो परिवार तुरंत समझ गया और उस परिवार ने ना केवल अपना ही कूड़ा बल्कि बाकी और भी जो कूड़े वहाँ थे सभी कूड़े को उठा एक झोले मे भर लिया और यही कार्य वहाँ उपस्थित बाकी लोगों ने भी किया और तुरंत ही घाट पूरी तरह से कूड़ा विहीन हो गया।

इन सारी गतिविधियों लोगों के बीच के बिना भेद-भाव के आत्मीयता को देख कर यही लगा की सच मे माँ गंगा और संगम साथ ही इस महाकुम्भ मे कुछ तो शक्ति है जो सभी को एक सूत्र मे बांध देती है।


हर हर गंगे

जय निर्मल पतित पावनी गंगा 



14 Jan 2013

Congress threatening indian businessmen


उद्योगजगत मोदी को सपोर्ट ना करें वरना परिणाम अच्छा नहीं

वाईब्रेण्ट गुजरात की चमक से चौंधियाई कॉंग्रेस की आंखे भारतीय उद्योगपतियों को धमकी



वाईब्रेण्ट गुजरात जिसका इंतजार आज सभी उद्योगपतियों को होता है और इस विहंगम व्यावसायिक समारोह मे न केवल भारत के अपितु विश्व के कई संभ्रांत देश शिरकत करने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े होते हैं ताकि व्यवसाय के नए आयाम खुल सकें और छुपे हुए सपनें साकार किए जा सकें।

आज देश विकास चाहता है परंतु देशवासियों को विकास एक मात्र गुजरात मे मिल रहा है। ऐसे मे उद्योगपतियों का गुजरात की तरफ रुख करना अचंभित करने वाला वाकिया नहीं लगता है अपितु एक यथार्थ सत्य है जिसे ठुकराना मतलब आईने को पीठ पीछे रख खुद को निहारना। 

अब ऐसे मे जहां देश से कंपनियाँ कम होती जा रही हैं और उन्हे सुविधा के नाम पर कुछ नहीं दिया जा रहा है और उनके द्वारा लिए जा रहे टैक्स को बस स्विस बैंक की तिजोरियाँ संभाल रही हैं वहाँ गुजरात हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े उद्योग घराने का घरौंदा बना हुआ है। सभी उद्योगपति चाहें वो जहां कहीं के भी हों जैसे कुछ समय पहले मैं हिसार और भिवानी जो की कॉंग्रेस शासित प्रदेश हरयाणा के अंतर्गत आते हैं वहाँ के उद्योगपतियों से मिला और सभी का ये विचार था और कुछ तो कार्यान्वित भी थे की यहाँ से व्यवसाय को गुजरात के तरफ ले चला जाये। वहाँ गुजरात मे कार्य करने का जज्बा है और वहाँ की सरकार व्यवसायियों को व्यवसाय की मूलभूत सुविधाएँ तो दे रही है।

तो ऐसे मे ये देख कर की सभी व्यवसायीयों का झुकाव विकासपुरुष नरेंद्र दामोदर भाई मोदी जी के तरफ हो रहा है तो ऐसे मे कॉंग्रेस मे खलबली का मचना लाजमी था। और इस खलबली का निष्कर्ष भी निकलना ही था और सोचा गया था की कॉंग्रेस मोदी जी को निशाने पर लेगी। कॉंग्रेस ने मोदी जी को तो निशाने पर लिया ही और मोदी जी की तुलना "हिटलर" से कर दी। ये हिटलर से तुलना शायद कॉंग्रेस की अमन की आशा के प्रचारक कॉंग्रेस के पाकिस्तानी साथी को सीमा पर हुए विवाद जिसमे पाकिस्तानियों ने हमारे 2 सैनिकों के सर काट कर लेते गए के बाद उस पाकिस्तानी उद्योगपति को मोदी जी द्वारा वाईब्रेण्ट गुजरात से निष्काषित करने पर किया गया। 

परंतु यह क्या कॉंग्रेस के सांसद मनीष तिवारी तो इतने पर भी नहीं रुके की उन्होने मोदी जी की तुलना हिटलर से कर दी क्यूंकी मोदी जी ने सच्चा राष्ट्रधर्म और राजधर्म निभाया बल्कि मनीष तिवारी जी तो भारतीय उद्योग घरानों को ही सीख देने मे व्यस्त हो गए वो भी चेतावनी के रूप मे की समय है संभाल जाओ और मोदी राग अलापना बंद कर दो नहीं तो अंजाम बहुत बुरा होगा।

मैं कॉंग्रेस और मनीष तिवारी से एक सवाल करना चाहता हूँ कि क्या आप देश के धन्नासेठ हैं परंतु आप धन्नासेठ तो लगते नहीं हैं, हाँ आप इस मायावी सेठ के यहाँ नगरवधू जरूर हो सकते हैं। पहले तो आपको डर हुआ सोशियल मीडिया पर जागरूक देशभक्तों से तो आप 66A के रूप मे इन्टरनेट पर कर्फ़्यू लगा गए अब कौन सा नियम या कानून निकाल लोगो को उनकी भावनात्मक और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति से दूर करना चाहते हैं।

आपके वक्तव्यों से तो मनीष जी ऐसा प्रतीत होता है कि आप "शेर कि दहाड़ से अपने मंद मे घुस अपने लोगों को डराने मे लगे हैं कि उधर मत जाना।"

सुधर जाएँ मनीष जी कहीं ऐसा ना हो जाए कि हम आम जनता को आपको सुधारना पड़े.....हमारे सुधारने से आपको बड़ी तकलीफ होगी अतः खुद ही सुधर जाएँ तो अच्छा रहेगा।


13 Jan 2013

Media against Kumbh a hidden agenda


भारतीय मीडिया पर भारी महाकुंभ


मीडिया सही मार्ग के नाम पर हिंदुओं को कर रही गुमराह




जो कुम्भ मेला जाने कितनी सदियों से चलता चला आ रहा है और न केवल भारत बल्कि देश-विदेश से लोग यहाँ जुटते हैं और ये मेला मानव जाती का पृथ्वी का सबसे बड़ा जनसमूह को अपने मे समेटता है उसके लिए अब मीडिया के पेट मे दर्द शुरू हो गया। शायद मीडिया घराने को इस मेले की भव्यता से कुढ़न हो गई तभी तो इन मीडिया के ओहदेदारों को बाकी मे नहीं दिखाई दे रहा है कुछ।

क्या मतलब है क्रिसमस पर लोगों को गिफ्ट बाँट कर या भारत मे रह कर विदेशी कैलेंडर के हिसाब से नया साल मनाने का या एक तय तिथि 14 फरवरी को प्यार का दिन मनाने का जबकि भारत मे हर एक दिन प्यार का दिन माना जाता है।

क्या मीडिया को किसी तय पर्व मे सड़कों पर नंगे हथियारों से अपने शरीर को जख्मी करती भीड़ नहीं दिखती है या की सनातन पैदा बच्चे या बच्ची का शरीर विक्षेदित किया जाये ताकि उसको मुसलमान बनाया जा सके परंतु ईमान ना हो उसके अंदर। 

या इस मीडिया को ये दर्द हो रहा है की करीब 10 लाख विदेशी मूल के गोरे या काले लोग जो अपने मूल सनातन धर्म से भटक गए थे वो वापस सनातन धर्म मे वापस आ गए हैं और कुम्भ मे धुनि रमाए बैठे हैं वो भी भगवा मे।

अब तो यही लगता है की जैसे हिन्दू धर्म का कोई भी त्योहार हो ये भीखारी पहले पहुँचेंगे अपना कटोरा ले कर और भीख मिलने के तुरंत बाद गाली भी देना चालू करेंगे।

अब ये असल दर्द क्या है ये या तो इन मीडिया के कर्मी जाने या फिर इनके आका परंतु ये इस बात को भूल रहे हैं की हिन्दू जिस दिन उठ गया उस दिन इनको देखने को कुछ नहीं बचेगा। 

अतः मीडिया के सरदारों आपको एक नम्र सलाह है

"चड्ढी मे ही रहो.......लंगोट ना बांधो........खुल जाएगी जल्दी.......और नंगे हो जाओगे"



Insult of Martyr Hemraj's Mother


शहीद की माँ का होता अपमान


शहीद हेमराज जी की अनसनरत माँ को मिल रही चिकित्सकीय सुविधा


Medical Facility of Martyr Hemraj's Mother

इस माँ का क़ुसूर क्या सिर्फ इतना है की इसने अपने बेटे शहीद हेमराज के शरीर पर खद्दर नहीं बल्कि बिन सर के शरीर पर तिरंगा डाला। अपने बेटे के तन पर सफ़ेद कुर्ता नहीं बल्कि भारत की शान सैनिक की वर्दी डाली। अपने बेटे को इस माँ ने मोम का या गरीबों के घर मे घुस कर उनके हिस्से की रोटी मुफ्त मे तोड़ने वाला नेता नहीं बल्कि आग मे तपा हुआ सच्चा भारत माँ का सपूत बनाया, क्या ये था इस माँ का क़ुसूर। 

इस माँ का वीर बेटा कश्मीर मे पाकिस्तानी क्षद्म शत्रुओं से घिरने के बाद भी भागा नहीं ताकि इस पावन धरती पर और जन्म देने वाली कोख पर कोई लांक्षन ना लगे। ये वीर बेटा उनसे लड़ा और इसमे अपना सर कटा दिया लेकिन सर को झुकाया नहीं।

पर इतने के बाद इस शहीद के परिवार को क्या मिल रहा है। 

सरकार से उपेक्षा.......सरकार की जबर्दस्ती अनसन तुड़वाने हेतु

ये सब तो एक बार चल भी जाता परंतु आप उपरोक्त चित्र को देख अंदाजा लगाएँ की शहीद की वीर माँ जो अपने बेटे के जाने का गम तो झेल ही रही है साथ ही प्रशासन के प्रति जो रोष है उसको अपने अनसन से जाहीर करना चाहती है, उस माँ को स्वास्थ्य सुविधा तक नहीं दी जा रही है।

जमीन जो खुद मे धूल-धूसरित है, वहाँ लेटी माँ को ग्लूकोज चढ़ाने के लिए एक स्टैंड तक नहीं मिला सरकार और प्रशासन को, तो ग्लूकोज के बोतल को लकड़ी पर टांग दिया गया। 

इसके पहले अनसनरत परिवार को केंद्र और प्रदेश सरकार ने डरा-धमका कर अनसन तुड़वा दिया था और अब ऐसी उपेक्षा। पहले अनसन तुड़वाने मे कहा की सरकार से मिल रही मदद राशि रोक दी जाएगी और तुम्हें जेल मे डाला जाएगा वो अलग। 

अब इन नेताओं का तो पेट ही पलता है सैनिकों के शहीद होने पर तो ऐसे मे वो कैसे कुछ कह सकते हैं क्यूंकी शहीद होने के बाद तो सैनिक इनके काम के रह नहीं जाते हैं।

परंतु ऐसे मे हमारे देश के थल-सेनाध्यक्ष कहाँ हैं ? उनका कोई बयान तक क्यूँ नहीं है ? क्या हमारे थल-सेनाध्यक्ष रिश्तेदारी निभा रहे हैं चुप रह कर ? या पाकिस्तान को मंद-मोहनी के अंदाज मे विरोध दर्ज कराएंगे ?

वैसे शहीदों के साथ ये बर्ताव हमारे देश मे नया नहीं है। हमारे देश के कर्णधार नेता इतने महान हैं की इस निंदनीय घटना से भी बड़े और कई उदाहरण विद्यमान हैं। जैसे की शहीद उधम सिंह जी के पोते आज क्या काम कर रहे हैं वो आप नीचे दी हुई फोटो मे देख सकते हैं। कुछ समय पहले ही तात्या टोपे की वर्तमान पीढ़ी कानपुर मे चाय की दुकान चला कर अपनी जीविका चलाते हुए मिलीं। शाहिदे आजम भगत सिंह जी का परिवार कहाँ है और क्या कर रहा है आज ये हसायद ही किसी को पता हो। चन्द्र शेखर आजाद जी के बाद तो उनकी पीढ़ी का कोई सुना ही नहीं गया। सुभाष चन्द्र बोस के बारे मे मिले तथ्य को हमारे मौजूदा राष्ट्रपति जी ने ही अपने तशरीफ के टोकरे के नीचे दबा लिया था। अब देखते हैं इस शहीद के परिवार के साथ हमारे स्व-घोषित एक मात्र राष्ट्रभक्त नेता क्या करते हैं।


वैसे नेता से एक बाद याद आया की हमारे नवोदित नेता और अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा केजरीवाल जी कहाँ हैं। इस मुद्दे पर केजरीवाल जी का कोई वक्तव्य नहीं आया।

बहुत हो गई ये नाते-रिश्तेदारी अब सिर्फ देश के प्रति ज़िम्मेदारी ! ! !

मैं सामान्य राष्ट्रवादी जनता से ये आग्रह करना चाहूँगा की आप आगे बढ़ इस महान परिवार की यथा संभव मदद करें। कुछ नहीं कर सकते हैं तो इस परिवार के दर्द को बांटें।



11 Jan 2013

Soniya Gandhi: Kashmir should not be part of India

कश्मीर अलगाववाद के सेब के बाग को सींचती 
सोनिया गांधी

क्या है फर्क बुखारी, गीलानी, ओवैशी और सोनिया में ? ? ?



हम लोग आए दिन कश्मीर मे हुए दंगों, कत्लेयामों को ले कर चिल्लाते रहते हैं साथ ही चिल्लाते हैं कश्मीर को भारत से अलग करने वालों को लेकर। भूषण को भी इसी चलते मार पड़ी थी की वो कश्मीर को या तो आजाद करने या पाकिस्तान को देने की मांग कर रहा है। हम सभी कश्मीरियत को ले कर पता नहीं क्या-क्या सोचते रहते हैं और प्रतिदिन बिना नागा किए उस पर चिंतन और मनन करते रहते हैं।

क्या आपने कभी सोचा है की कश्मीर मे सीमा उल्लंघन की इतनी बड़ी घटनाओं तथा हमारे सैनिकों की आए दिन हो रही शहादतों के उपरांत भी हमारी सरकार कोई भी कदम क्यूँ नहीं उठाती है सिवाय बोल-बच्चन के। अब आइये देखिये हमारे इस सरकार के निकम्मेपन का कारण जिसके कारण हमारे सैनिक आए दिन वीर गति को प्राप्त हो रहे हैं और हमारी सरकार विपक्ष और जनता के कितना भी विरोध करने के बाद भी चुप है।

मौजूदा सरकार की माताश्री माननीय सोनिया गांधी जी "The Forum Of Democratic Leaders in the Asia-Pacific (FDI-AP)" नामक भारत विरोधी और भारत के विघटन को तत्पर संस्था जो की कश्मीर की आजादी की बात करती है, की सह-अध्यक्षा हैं।
अब जब देश की संसद महोदया होने के साथ-साथ सोनिया जी तो कॉंग्रेस की जगत माता के रूप मे जानी जाती हैं तो ऐसे मे क्या किसी कोंग्रेसी की इतनी हिम्मत होगी की वो कश्मीर तो क्या देश के किसी भाग को देश से अलग होने पर उंगली नहीं उठा सकते हैं। क्यूंकी इनकी माता श्री ही कश्मीर को आजाद देखना चाहती है और ऐसा प्रतीत होता है की इन महोदया को तकलीफ होती है कश्मीर को भारत का अंग देख कर। तो ऐसे मे कश्मीर मे हमारे सैनिकों का मरना तो जारी रहेगा ही साथ ही हमारी माताओं की गोद और नवविवाहितों की मांग तथा घर का आँगन सूना होता रहेगा। लेकिन इन माताओं और विधवा बहनों की चीत्कारों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है क्यूंकी 10 जनपथ ही चाहता है की कश्मीर भारत से अलग हो जाये इसके लिए चाहे कुछ भी करना हो।

अब ऐसे मे कई सवाल उठते हैं कि:

देश को तोड़ने कि बात करना क्या सोनिया के आगे देशद्रोह नहीं है?

क्यूँ अभी तक सोनिया गांधी पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ क्यूंकी वो एक नकली मिश्रित गांधी परिवार कि बेवा हैं?

एक संसद होने के बाद देश को तोड़ने वाले संगठन का साथ देने के बाद किस मुँह से सोनिया गांधी संसद मे बैठती हैं?
जिस संगठन को भारत मे प्रतिबंधित होना चाहिए उसी संगठन कि सह-अध्यक्षा हमारी विधवा संसद महोदया सोनिया गांधी जी हैं फिर भी कोई नहीं बोलता है, ऐसा क्यूँ?

हम गीलानी, बुखारी इत्यादि को गाली देते हैं कि ये सभी कश्मीर को भारत से अलग करने कि बात करते हैं परंतु आज तक कोई भी सोनिया गांधी के इस घिनौने और दोगले कृत्य पर एक शब्द नहीं कहा। ऐसा क्यूँ?

क्या मिश्रित नकली गांधी परिवार कि बेवा होने के चलते इन सोनिया गांधी महोदया को राष्ट्रद्रोह कि खुली छुट होने के साथ-साथ राष्ट्रद्रोह का आरक्षण है?

क्या आप सभी यूं ही चुप रह कर सोनिया गांधी जैसी राष्ट्रद्रोही के राष्ट्रद्रोह के कार्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ उसमे सहभागी बने रहना चाहते हैं?

बग्गा जी ने इस सच के ऊपर से और सोनिया गांधी के राष्ट्रद्रोह के ऊपर से पर्दा उठाया था परंतु किसी भी मीडिया को इसे दिखने कि जहमत तो क्या हिम्मत ही नहीं हुई शायद या कहें तो हो सकता है चुप रहने कि कीमत मिल गई होगी मीडिया कर्मियों को। लेकिन मीडिया कि इस चुप्पी से देश का विघटन तक हो सकता है और जनता यूंही मूर्ख बन राष्ट्रद्रोह मे अपना सहयोग करती रहेगी।

अगर अभी भी आपको मेरी बातों पर विश्वास न हो तो आप निम्नांकित लिंक पर जाएँ और खुद देखें राष्ट्रद्रोही सोनिया गांधी कि सच्चाई और फैसला करें------

10 Jan 2013

Rudraksha

रुद्राक्ष



आज के युग मे सभी वर्गों मे रुद्राक्ष के विषय मे अनेकानेक धारणाएँ प्रचलित हैं। धार्मिक संस्थानों पर रुद्राक्ष की मालाएँ भी खूब बिकती हैं। यह देखकर क्रेता के मन मे रुद्राक्ष के विषय मे उचित जानकारी पाने की जिज्ञासा होती है। लेकिन रुद्राक्ष के विषय मे प्रचलित अनेकानेक भ्रांतियों से उलट उचित जानकारी का अभाव होता है।

मनुष्य के जीवन मे तीन एषणाएँ होती हैं, प्रथम- प्राण एषणा, द्वितीय- लोक एषणा और तृतीय धन एषणा। ये तीनों एषणाएँ रुद्राक्ष धारण करने से पूर्ण होती हैं। यह रुद्राक्ष चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने मे सक्षम है। मनुष्य के लिए स्वास्थ्य, आयुष्य, मेघा, शक्ति, सुंदरता, ऋद्धि-सिद्धि से लेकर धन, संतान और उच्च पद की प्राप्ति रुद्राक्ष धारण से प्राप्त होती है। आठों सिद्धि और नवों निधियों का सुख रुद्राक्ष के धारण से प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों मे पढ़ने को मिलता है। रुद्राक्ष की अपरिमित माँग और बहुमूल्यता भी इसके महत्व मे चार चाँद लगाती है। इसके विभिन्न प्रकारों या जातियों का अलग-अलग महत्व है।

रुद्राक्ष की दिव्यता से पूरा विश्व आलोकित होता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की "रुद्राक्ष" पर जीतने शोध विदेशों मे हुए हैं उसके आगे हम भारतीय शिथिल हैं इसके प्रति। हम अपनी ही दिव्य वस्तु को महत्व नहीं दे पा रहे हैं। वहीं विदेशी इसके गुणों का भरपूर लाभ उठा रहे हैं।

यदि रुद्राक्ष को विधिवत इसके प्रत्येक मुख की विवेचना करके धारण और उपयोग मे लाया जाये तो दुनिया का महंगे से महंगा रत्न (हीरा, नीलम, पुखराज, माणिक्य, पन्ना और मोती) भी गुणों मे रुद्राक्ष की बराबरी नहीं कर सकते हैं। रत्न धारण करने से पूर्व जीवन का ज्योतिषीय विवेचन करना पड़ता है, लेकिन रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व यद्दपी धारणकर्ता को जीवन की ज्योतिषीय विवेचन नहीं करना पड़ता है तथापि यदि थोड़ा सा विवेचन करके विधि-विधान से रुद्राक्ष को धारण और उपयोग किया जाये तो रत्नों से कई गुना ज्यादा लाभ निश्चित उठाया जा सकता है, इसमे संशय नहीं है। 

रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रसाद और साक्षात उनका स्वरूप है, ये शिव के रूप मे पूजित है। वैज्ञानिक परीक्षणों से यह प्रमाणित हो गया है की रक्तचाप को संतुलित रखने की इसमे अपूर्व क्षमता है रुद्राक्ष को धारण करने वाला सदा सुखी, निरोगी, प्रसन्न और आलस्य रहित रहता है। रुद्राक्षधारी को दिल का दौरा, मधुमेह, गुर्दा संबंधी बीमारियाँ या तो नहीं होती या फिर नियंत्रित रहती हैं। बीमारियों को काबू मे रखना उन्हे ठीक करना रुद्राक्ष जैसी दिव्य वस्तु का एक छोटा सा गुण है, इसका मुख्य कार्य तो मानव जीवन को पूर्णता प्रदान कर मोक्ष तक पहुँचना है।

नक्षत्रों की संख्या सत्ताईस है, प्रत्येक नक्षत्र पर किसी न किसी का आधिपत्य अवश्य होता है। अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष का अलग-अलग नौ गृह आधिपत्य है। अतः ये सत्ताईस नक्षत्र किसी न किसी सम्बद्ध रुद्राक्ष से संचालित होते हैं। इसलिए यदि जन्म नक्षत्र के अनुसार विभिन्न मुखों के रुद्राक्ष धारण किए जाएँ तो अधिक लाभ प्राप्त होता है, क्यूंकी वे अपने सम्बद्ध ग्रहों से शक्ति ग्रहण करते हैं। रुद्राक्ष की ग्रहिका शक्ति सर्वाधिक तीव्र और संचयिता की तरह है। रुद्राक्ष केवल शक्ति संग्रहण ही नहीं अपितु ऊर्जा का विकीर्णन (धारणकर्ता के शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करना) भी करता है, जबकि रत्न केवल ऊर्जा का संग्रहण ही करते हैं। विकीर्णन की क्षमता रत्नों मे नहीं होती है। शोध, अध्ययन, प्रयोग, धारण, अनुभूति एवं अनुभव के आधार पर जो निष्कर्ष निकलता है वह अद्भुत है, लोक हितकारी है।


डॉ॰ एम॰ पी॰ सिंह 


Pakistan Army cut Indian Soldiers head


भारतीय सैनिक का सर पाकिस्तानी ले गए

कहीं ये दूसरे कारगिल की धमक तो नहीं ? ? ?



जबकी देश मे चुनाव सर पर आ रहे हैं ठीक उसी समय हमारे सेना के 2 जवानों का सर काट डाला पाकिस्तानियों ने और कुछ जवान जख्मी और ये घटना घटी हमारे सरहद मे हमारी सीमा के अंदर....

ऐसे कई सवाल हैं जो मुँह फाड़े खड़े हैं.....परंतु उसके पहले कुछ और भी पहलू हैं वो देखते हैं......

अगर कोई भी टुकड़ी साधारण गस्त पर निकलती है तो कम से कम 5 जवान होते हैं। हर जवान को साधारण दिनों मे 4 मैगजीन मिलती है.....1 बंदूक मे और 3 जैकेट मे साथ ही 2 हैंड ग्रेनेड.....और एक मैगजीन मे 30 गोलियां होती हैं।

ऐसे मे अगर 5 सैनिक भी साधारण गस्त पर थे मतलब की उनके पास 10 हैंड ग्रेनेड और 600 गोलियाँ थीं।

अगर दुश्मन सेना ने हमारे जमीन पर ही हमे घेर लिया है तो अमूमन है की वो मुँह दिखाई की रस्म निभाने नहीं आया है बल्कि मारने ही आया है।

अब सवालों की बारी.......

जब हमारे जवान घिर गए थे तो उन्होने गोली क्यूँ नहीं चलाई....क्या ऐसे समय मे भी उन्हे ऊपर से आदेश लेना था जो उन्हे नहीं मिला क्यूंकी "अमन की आशा" की चाह उमड़ रही थी और हमारे सैनिक मारे गए और जख्मी हुए....

मरे हुए सैनिक के शरीर पर गोलियों के निशान नहीं हैं इसका मतलब की हमारे सैनिकों को बंधक बना कर मारा गया.......साथ ही हमारे 5 सनिक बंधक बनाए गए मतलब साफ है की पाकिस्तानि सैनिकों की सख्या बहुत ज्यादा होगी

हमारे जमीन पर हमारी सरहद के अंदर हमारे सैनिक को बंधक बना कर और हमारे सैनिक का गला काट कर पाकिस्तानी ले कर गए और हमारी खुफिया और जांच एजेंसियाँ क्या सो रही थीं जो इतने पाकिस्तानी सनिक हमारी सीमा मे घुस आए और हमे पता ही नहीं

"ऐसी ही घटना और चूक के वजह से हमे कारगिल युद्ध का सामना करना पड़ा था और हमने हजारों की संख्या मे अपने सैनिक खोये थे"....इसे भी ध्यान मे रखिएगा कि कहीं ये कारगिल कि पुनरावृत्ति तो नहीं है जो हमसे छिपाने कि कोशिस करने मे लगे हैं।

कारगिल युद्ध के साथ ही अभी हाल ही की 26-11 की घटना बहुत पुरानी नहीं है साथ पाकिस्तान का पूर्वार्ध मे तथा हाल के दिनों मे भी जब भारत पाकिस्तान को खुश करने हेतु मैदान मे चौके और छक्के खा रहा था तब क्या जांच एजेंसियाँ इन पकिस्तांकियों को सैनिकों का अपहरण कर सर काट ले जाने का वीजा बाँट रही थी

सवालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है परंतु जवाब भी मांगे तो किससे यहाँ तो सभी अपने-अपनी लंगोट को फाड़ चादर बनाने मे जूटे हैं और जो लंगोट नहीं पहन सकती हैं वो तो कुछ और ही उछल रही हैं लेकिन देश की कोई नहीं सोच रहा है।

यहाँ सबसे बड़ा खतरा ये है की देश इस समय आंतरिक झंझावात से जूझ रहा है और लंगोट और पेटीकोट चादर बदलने मे लगे हैं ऐसे मे कुछ समय पहले तक चाइना हमेसा हमारी सीमा के अंदर आ हमे आँख दिखा कर निकल जाता था परंतु चीर प्रतिद्वंदी और विद्वेषी पाकिस्तान भी अब हमारी सीमा मे न ही घुसा बल्कि हमारा मान भी ले गया। ये एक ऐसा समय है जब हमारे देश, जिसका अधिकांश पैसा मौजूदा समय मे स्विस बैंक की तिजोरी मे बंद है और उस पर PW GOLDEN ACCOUNT का ताला लगा हुआ, के ऊपर हमारा विद्वेषी पड़ोसी हमला भी कर सकता है और हम लाचार बन जाएँगे क्यूंकी खुद तो हथियार बनाते नहीं हैं सब पैसे फेंकने के बाद भी हाथ फैला कर माँगने को मजबूर हैं क्यूंकी हमारे नेताओं के किसी आका ने इस पैसा फेंक मे पैसा बनाया है। 

अब ऐसी घटनाओं के बाद जबकि ना तो हम घर के अंदर सुरक्षित हैं और ना ही बाहर। तो ऐसे मे हम "केला देश के आम नागरिक" क्या करें क्यूंकी सत्तासीनों के कानों मे नोटों के बण्डल भरे हुए हैं और होंठ तो नदारद हैं की कुछ बोल फूटें वैसे अगर फूटते भी हैं तो कड़े कदम के लिए लेकिन शायद वो कड़े कदम का मतलब सिर्फ कोरी बयानबाजी ही रहती है।

"वैसे ये भी ज्ञात रहे की मौजूदा सत्तासीन हमारी सीमाओं को पड़ोसी देशों को जहां से हमे खतरा हो सकता है उनको दहेज मे दे आए और अभी भी गुजरात स्थित 'सर क्रीक' को पाकिस्तान को दहेज मे देने की तैयारी मे लगे हैं।

वैसे बिन पैसे का एक सुझाव है इन पद के नशे मे मस्त पैसे की भाषा समझने वाले सत्तासीनों से कि "गर कर नहीं सकते खुद तुम कुछ तो दे दो हम आम आदमियों को आजादी इतनी पाकिस्तान को मिला दें धूल मे बिना एक भी अपना वीर सैनिक गँवाए।"



8 Jan 2013

Talk out of your heart


दिल की बात आने दो कभी जुबान तक



दिल की बात आने दो कभी जुबान तक
न करो बंद उसे तुम किसी भी ताले मे 
नाहक होगा कोई अपना परेसान इससे
चाहता वो तुम्हें दिलोजान से है 
कर उसकी चाहत की कद्र ऐ बेरहम 
मरहम ना सही हंसी के दो बोल तो दे
उसकी चाहत का गर ना हो एतबार तुझे 
उतर तू उसके दिल की गहराईयों मे 
सोचता तुझे ही है वो हरपल हर दिन 
रातें उसकी कटती हैं करवटें बदल 
गर ना आती तू उसके सपनों मे 
दिन मे अपना दीदार तो दे उसे 
दिल ही है उसका कोई शीशा नहीं है 
जो चिपका देगी फेविकोल से तू 
तेरी सूरत को मन-मंदिर मे लिए 
कर रहम बुलडोजर ना चला मंदिर पर 
टूट कर बिखरेगा वो ऐसे ऐ जालिम 
अंदाजा नहीं है तुझे उसके प्यार का 
गर ना करती तू प्यार उससे कभी 
दो हंसी की ठिठोली से क्या जाएगा तेरा
उसकी खुशी तो छिपी तेरे हंसी मे है 
कुछ न कर बस मुस्कुरा दे एक बार 
तेरी मुस्कुराहट पर वार दे वो सारी दुनिया 
एक बार उसका हाथ थाम कर तो देख 
ना तोड़ सकता वो चाँद-सितारे मगर 
खुशियों की बहार बिछा देगा तेरे राह में
अपने आँचल को जरा लहरा कर तो देख 
साँसे उसकी ना थम जाएँ तो कहना 
बालों को यूं अपने जुड़े मे ना बांध जालिम 
खुले बालों मे तू लगती कमाल है 
पलकें अपनी ना झपका तू बार-बार 
कोई बंद है इन पलकों मे ख्याल तो रख
अपने गुलाबी अधरों को यूँ ना बंद रख
मोतियों को देखने को मचलता है कोई 
सुराहीदार गर्दन को जरा पीछे तो घूमा
कोई गिरा है राह मे तेरे तुझे देखते हुए 
चाहता तुझे है वो अपनी जान से ज्यादा
उसकी चाहत को स्वीकार तो कर तू 



My India My Pride


मेरा भारत........मेरा अभिमान





एक लहर चली 
मुझको भी साथ ले चली
तुझको भी न छोड़ा उसने
सबको साथ ले चली

एक लहर चली
मुझको भी साथ ले चली


समंदर की लहरों मे कहाँ ज़ोर है उतना
ये राष्ट्रभक्ति की लहर का कमाल है
बहते इसमे जाना है, दुखी न होना है 
जहां भी जाये हमें ये साथ ले जाये 

रहकर इस लहर के आंचल में
क्या धूप और क्या बारिश है 
ठण्ड ये क्या बिगाड़ेगी हमारा
आग ही आग जो है भरा इसमे 

अब मंजिल सामने खड़ी है 
कदम बढ़ाने की देर है बस 
सोचना क्या है इसमे अब 
जो होगा वो देखेंगे तब 

हाथ तो मजबूती से पकड़ना साथी
कहीं मेरे कदम डगमगा ना जाएँ
तू थोड़ा मुझे संभालना मैं तुझे 
चलेंगे साथ मे तिरंगे की नीचे 

चाहे अब मिलें कितनी भी संगीनें
रुकना नहीं है थकना नहीं है हमें 
या तो तिरंगे को छुड़ा कर लाएँगे 
या फिर तिरंगे मे लिपट आएंगे 


6 Jan 2013

I am Hindu ...

"मैं हिन्दू हूँ"




हिन्दुत्व ही क्यूँ ?


पिछले साठ वर्षों से स्कूलों मे जाने वाले हर बालक-बालिका के मुख से तथा जनता के मुख से यही गवाया जाता रहा है - "मजहब नहीं सिखाता, आपस मे बैर रखना", जबकि तथ्य यह है कि पिछले पंद्रह सौ वर्षों मे विश्व मे जितना खून मझाब के नाम पर बहा है, उसकी कोई तुलना ही नहीं है। कत्लेआम, बलात्कार, अत्याचार का तो कोई हिसाब ही नहीं है।

हिन्दू ने प्रत्येक मजहब का स्वागत किया है और इसे भारत मे फलने-फूलने का अवसर दिया है।

अब एक अन्य खतरनाक मझाब 'नास्तिक' एक चुनौती बन कर उभर रहा है। दुनिया मे नास्तिक मत (कम्यूनिज़्म) ने भी हंगरी इत्यादि देशों मे कम रक्त नहीं बहाया। नास्तिक्य और कम्यूनिज़्म भी मजहब के अंतर्गत आते हैं।

अभी बीसवीं शताब्दी पर ही दृष्टि डालें तो देखेंगे कि भारत, जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हिमांचल से पूरी तक एक सूत्र मे बंधे देश को तीन टुकड़ों मे मझाबी आधार पर विभाजित कर दिया गया। यह उस मजहबी जुनून का कमाल है जो "नहीं सिखाता आपस मे बैर रखना।"

एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा है जिसने विश्व को मानवता का प्रचार करने के लिए शांति दूत भेजे और बिना युद्ध किए विश्व भर को मानवता का पाठ पढ़ाया और प्रचार किया। 

इस पर भी हिन्दू धर्म को सांप्रदायिक कहना या तो मूर्खता ही काही जाएगी अथवा धूर्तता। हिन्दू कोई मजहब नहीं है। यह कुछ मान्यताओं का नाम है। वे मान्यताएं ऐसी हैं जो मानवता का पाठ पढ़ाती हैं।

हिंदुओं कि धर्म पुस्तकों मे मनुस्मृति का नाम सर्वोपरि है और मनुस्मृति धर्म का लक्षण करती है - धुर्ति क्षमा दमोस्तेय शौचम इंद्रिय-निग्रह, धीर्विधा सत्यमक्रोधी दशकम धर्म लक्षणम। कोई बताए इसमे कौन सा लक्षण है जो मानवता के विपरीत है। 

स्मृति मे धर्म का सार स्पष्ट शब्दों मे कहा है - श्रूयतां धर्म सर्वस्व, श्रूत्व चैवाव धार्यताम, आत्मनः, प्रतिकूलानि परेणाम न समाचरेत ।। (धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो, अपने प्रतिकूल व्यवहार किसी से न करो।)

ऐसे लक्षण वाले धर्म को साम्प्रदायिक कहता तो मूर्खता की पराकाष्ठा कही जाएगी।

वास्तव मे हिन्दू धर्म को न समझने के कारण दुनिया मे अशांति मची हुई है। सम्पूर्ण भारत देशवासी हिन्दू ही हैं क्यूंकी वे हिंदुस्तान के नागरिक हैं। इस्लाम, ईसाई, पारसी, बौद्ध इत्यादि जो हिंदुस्तान का नागरिक है वह हिन्दू ही है।

हमारे राजनैतिक नेता तथा आज के कुशिक्षित लोग अंधाधुंध, बिना सोचे समझे लट्ठ लिए हुए हिन्दू के पीछे पड़ जाते हैं। 

समस्या का हल तो है परंतु राजनीति में आए स्वार्थी नेता अपना उल्लू कैसे सीधा करेंगे?

बच्चों की पाठ्य पुस्तक मे एक पाठ इस विषय मे हो, कि हिन्दू क्या है, इसके मान्यताएं क्या हैं, और भारत का प्रत्येक नागरिक जो भी भारतवासी है, वह हिन्दू ही है।

हिंदुओं कि मान्यताएं शास्त्रोक्त हैं, बुद्धियुक्त हैं, किसी भी मझाब के विरोध मे नहीं। किसी भी मजहब को मानने वाले यदि वे हिन्दू कि मान्यताओं को जो मानवता ही है, मान लें तो द्वेष का कोई कारण नहीं रहेगा।

संक्षेप मे हिन्दू कि मान्यताएं हैं - जोकि शास्त्रोक्त हैं, युक्तियुक्त हैं, इस परकर हैं -

1॰ जगत के रचयिता परमात्मा पर जो सर्वशक्तिमान है, अजर अमर है, विश्वास;
२. जीवात्मा के अस्तित्व पर विश्वास;
३. कर्म-फल पर विश्वास। इसका स्वाभाविक अभिप्राय है पुनर्जन्म पर विश्वास;
४. धर्म पर विश्वास। धर्म जैसा कि मनुस्मृति मे लिखा है, जिसका सार है - 

आत्मनः प्रतिकूलानी परेषाम न समाचरेत । । 

हिन्दू जनसंख्या विश्वपटल पर 

हिन्दू के इतिहास पर, हिन्दू राष्ट्र कि विवेचना पर तथा हिन्दू कि मान्यताओं पर श्री गुरुदत्त जी ने तीन पुस्तकें लिखीं हैं - हिन्दुत्व कि यात्रा, वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान-हिन्दू राष्ट्र तथा मैं हिन्दू हूँ (हिन्दू धर्म कि मान्यताएं), जो प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को पढनी चाहिए। 

साभार : श्री गुरुदत्त जी 
पुस्तक : मैं हिन्दू हूँ (हिन्दू धर्म कि मान्यताएं)