30 Sept 2012

नेहरु परिवार : बलिदानी या कुछ और ?


बहुत पढाया और बताया गया की इस नकली और उधारी के गाँधी परिवार के लोगों ने देश के लिए बलिदान दिया है. मैंने कई लोगों से पूछा की आखिर ऐसा क्या बलिदान दे दिया है इस नेहरु और गाँधी परिवार ने. लेकिन इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सका आज तक.

मैं नेहरु से ही अगर शुरू करता हूँ तो पाता हूँ की इन्होने तो कोई बलिदान किया ही नहीं बल्कि ये कुछ और ही था. 

आप अगर नेहरु के परिधान को देखें जो ये आज़ादी के पहले पहनते थे तो आप पाएंगे की इन पर गुलामी का कोई निशान नहीं था. इनकी जीवन शैली बिलकुल भी अलग थी. इनकी जीवन शैली में भारत के गुलाम होने का कहीं से कोई दंश नहीं दिखाई देता था बल्कि ये एडविना के साथ-साथ बाकि कई औरतों के साथ ही मस्ती करते हुए देखे जाते थे. प्रधानमंत्री बनने के चक्कर इन महानुभाव ने देश का बंटवारा करा दिया लेकिन आक्षेप मढ़ा केवल जिन्ना पर. हमारे में से कितने लोग जानते हैं की जिन्ना तब से कांग्रेस की विचारधारा से अलग हुए जब सुभाष चन्द्र बोस जैसे व्यक्तितिवा के कांग्रेस अधिवेशन के चुनाव में जितने पर भी उनसे जबरन मानसिक प्रताड़ना दे कर पद से इस्तीफा दिलवाया गया. इसके बाद भी जिन्ना कांग्रेस का साथ देते रहे लेकिन आज़ादी के समय साफ-साफ बोल दिया था की अगर नेहरु प्रधानमंत्री बने तो देश का विभाजन लेकिन वहीँ नेहरु की जगह अगर सरदार बल्लभ भाई पटेल जी बने तो हम बल्लभ भाई पटेल जी का साथ देंगे. लेकिन विडम्बना देखिये की प्रधानमंत्री पद की लोलुपता ऐसी थी की नेहरु ने देश का विभाजन स्वीकार किया लेकिन देश को एक रखने का प्रयास नहीं किया. वहीँ आजाद भारत में भी प्रधानमंत्री बनने का जब आतंरिक चुनाव हुआ तब सारे वोट केवल बल्लभ भाई पटेल जी को मिले और सिर्फ एक वोट ही नेहरु को मिला. यहाँ भी नेहरु ने गाँधी को ढाल बना कर प्रधानमंत्री पद को प्राप्त किया. बल्लभ भाई पटेल जी देश के गृहमंत्री बने और देश राज्यों को जोड़ा भारत से. वहीँ कश्मीर पर हुए पाकिस्तान के हमले में जीतने की अवस्था में भी संयुक्त राष्ट्र संघ में जा कर देश का बंटाधार कर दिया. इतने के बाद भी बल्लभ भाई पटेल जी ने कहा था की कश्मीर की जिम्मेदारी मुझे दीजिये मैं इसको भारत में जोड़ता हूँ लेकिन नेहरु ने अपना कद छोटा होता हुआ देख ऐसा करने से मना कर दिया और पूरा भारत गृह मंत्री पटेल जी के पास रहा और कश्मीर नेहरु के पास. और आज हम सभी जानते हैं की वही कश्मीर आज भारत के लिए किस प्रकार सरदर्द बना हुआ है. भारत में होकर भी कश्मीर अभी तक भारत का नहीं बन पाया है और न ही कश्मीरी भारत के बन पाए हैं. मौत भी अपनी स्वाभाविक मौत.

अब देखते हैं की इंदिरा गाँधी ने क्या बलिदान दिया भारत के लिए-

इंदिरा जी के बारे में क्या कहें और क्या सुने. इंदिरा गाँधी का नाम प्रिदार्शिनी नेहरु से मैमुना बेगम और इंदिरा गाँधी कैसे बना इसका कोई उत्तर नहीं दे पाता है. साथ ही इंदिरा गाँधी को रविन्द्र नाथ टैगोर जी के आश्रम से क्यूँ निकाली गईं इसके बारे में कोई बताता ही नहीं है. और अगर मथाई महाशय ने बताया तो उनकी किताब को ही भारत में बैन कर दिया गया. कहा जाता है की नेहरु के अपनी पत्नी को छोड़ बाकि की औरतों के साथ ही समय व्यतीत करने और इंदिरा तक पर समय न देने के वजह से इंदिरा बहक गई थीं. अरे भाई कोई एक बार बहकता है दो बार बहकता है न की हर बार बहकता ही रहता है. इनके प्यार के चर्चों की फेहरिश्त तो नेहरु से भी लम्बी है. कभी फिरोज खान (जिनसे इंदिरा ने शादी भी किया और मैमुना बेगम बनी फिर इंदिरा गाँधी) तो कभी युनुस खान. वैसे ये भी मजेदार बात है की राजीव गाँधी के जन्म के बाद से ही इंदिरा तो फिरोज गाँधी अलग-अलग रहते थे और बिना तलाक लिए ही इंदिरा ने फिरोज खान से सारे रिश्ते ख़तम कर दिए थे फिर संजय गाँधी कहाँ से आ गए ये सोचने वाली बात है. इसके साथ साथ ही इंदिरा जी ने अपने योग गुरु को भी नहीं छोड़ा योग गुरु के मोहपाश में बंधने से. वैसे लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इंदिरा गाँधी का नाम हमेसा से आता रहा है क्यूंकि इंदिरा की पद लोलुपता नेहरु से कहीं ज्यादा थी. संजय गाँधी के अपने असली बाप युनुस खान के बारे में जान जाने के बाद ही संजय गाँधी की मृत्यु. बाकि तो कई चेहरे हैं पन्ने कम पड़ जायेंगे और उँगलियाँ दुखने लगेंगी. वैसे मौत तो गोलियों से हुई लेकिन ये गोलियां चली क्यूँ इनके बारे में क्या कोई सोचता है.

अब बारी आती है राजीव गाँधी जी की---

ये तो उन महँ आत्मावों में से थे जिन्होंने खुलेआम दंगे करवाए दिल्ली में. उत्तेजक भाषण दिया जो सदियों तक १९८४ के दिल्ली  के दंगा पीड़ितों के दिलों में नासूर बन कर चुभता रहेगा और ये भाषण था "जब बड़ा पेंड गिरता है तो उसके आस-पास की धरती हिलती है और घांस दब जाती है". इसके साथ ही इंदिरा की रख को पुरे भारत में घुमाना क्या कहा जा सकता था उस समय आप सभी समझ सकते हैं. इश्कबाजी तो विरासत में मिली थी पर उसके चलते आज देश भोग रहा है. 

सोनिया गाँधी जी के बारे में कुछ कहना बाकि रह गया है ऐसा तो लगता नहीं है लेकिन फिर भी मैं कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश डालने की कोशिस करता हूँ----

ये वही सोनिया गाँधी हैं जिन्होंने इमरजेंसी के समय अपने पुरे परिवार मतलब ये खुद, राजीव गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को साथ ले कर इतालियन दूतावास में शरण लेने चली गई थी लेकिन कहा जाता है की उस समय सोनिया गाँधी ने इटालियन नागरिकता त्याग दिया था. अगर इटालियन नागरिकता त्याग दिया था तो ये इटालियन दूतावास में क्यूँ गईं. जब राजीव गाँधी मेरे तब इन्होने खुलेआम कहा था की ये भारत की राजनीती में कभी वापस नहीं आएँगी लेकिन सीताराम केसरी को बिना कार्यकाल पूरा हुए लात मार कर बहार का रास्ता दिखा इनको कांग्रेस अध्यक्षा बनाया गया जो आज भी बिना चुनाव हुए बदस्तूर जारी है. एक और मजेदार बात मैं बताना भूल गया की जिस राजीव गाँधी को मारने वाला लिट्टे था उसी लिट्टे को हथियार देने वाला क्वात्रोची है और क्वात्रोव्ची सोनिया का कितना करीबी है ये तो हम सभी जानते हैं. साथ ही भारत में कोई भी विधवा या उस विधवा का बच्चा अपने पिता के कातिल को माफ़ नहीं करेगा लेकिन आखिर इतने बड़े दिलवाले तो इटली वाले होते नहीं हैं की अपने पति के खुनी को माफ़ कर दें लेकिन सोनिया ने साफ़ कहा की वो अपने पति के कातिल को माफ़ कर रही है और कोर्ट भी उसे माफ़ करे. कहीं ऐसा तो नहीं है की राजीव गाँधी की हत्या में सोनिया का ही हाथ है और इन हत्यारों को सजा दिलवाने के चक्कर में सोनिया का नाम सामने आ जाये और सोनिया का अमेरिका प्रवास कुछ दिन की अपेक्षा हमेसा के लिए हो जाये. अमेरिका प्रवास से याद आया की बाबा रामदेव जी के काले धन के अनसन के समय यही सोनिया गाँधी अपने बच्चों और लावलश्कर समेत स्विट्जरलैंड गईं पहले फिर तबसे २ बार के अनसन के समय ही जब देश पर कोई भी विपत्ति आ सकती थी उसी समय ये अब अमेरिका जाना शुरू कर दिया. वो भी संविधान का सीधा-सीधा उलंघन करके.

राहुल गाँधी क्या कहें इन जनाब के बारे में

इनके बारे में तो यही कह सकते हैं की जहाँ बजा ढोल वहीँ खुला इनका पोल. जनाब को गरीबों के घरों में जा कर खाने का बहुत शौक है और इसी शौक में ये गरीबों के हक़ का खाना तो खा कर निकल जाते हैं और गरीब वैसे ही नंगे और भूखे रह जाते हैं. कहीं कोई हलचल हुई और वहां चुनाव है तो सबसे पहले पहुँचने वालों में से होते हैं राहुल गाँधी और कहीं दंगा भी हो जाये और सैंकड़ों लोग मर जाएँ तब भी इनके दर्शन दुर्लभ होते हैं. कांग्रेस शासित प्रदेशों में बलात्कार, दंगे और किसानों की मौत इन मंद बुद्धि बालक को नहीं दिखती है.

प्रियंका गाँधी..........एक ही शब्द इनके लिए...............बरसाती मेंढकी..........बरसाती इस लिए की इस मेंढकी के दर्शन केवल चुनावी बरसात में ही दिखाई देते हैं बाकि समय ये क्या करती हैं ये तो शायद भगवान जनता होगा या खुद ये.

बाकि आप सभी सदस्यगण मुझसे ज्यादा जानकर हैं.....अगर कहीं कोई त्रुटी रह गई हो तो उसे पूरा करने का प्रयत्न करें.


25 Sept 2012

बहनों की इज्जत के छींटे भी सहने हैं


अर्थ के नाम पर हमेसा होता अनर्थ
सोच वही गुलामो की क्या होगा समर्थ
कभी देश था ये सोने की चिड़िया
आज बन गया है पिजड़े की चिड़िया
देश को लूटा बाहर वालों ने अब तक
देश लूट रहा अन्दर वाला अब तो
लूट का माल न मिले बराबर तो समझो
न भैया न बहना रास्ता अलग समझो
बोलियाँ लग रही हैं देश की आज
देखना है कौन बड़ी बोली लगता है आज
गाँधी की तस्वीर तुम रखते हो अपने पीछे
उसी तस्वीर के आगे करते हो गबन
जिसने दिया विश्व को रहने की सीख
आज वही सीखेगा सब्जी बेचना
देश की बोली लग चुकी है
देश की अर्थी उठने वाली है
खून के छींटे पड़ते थे दामन पर अब तक
अब तो बहनों की इज्जत के छींटे भी सहने हैं
दूध मलाई के देश में हो गया कैसे बवंडर
आज गाय काटी जाती है हर चौराहे पर 
आ जाओ ऐ भारत के वीरों फिर से
देश में जरुरत तुम्हारी आन पड़ी फिर से
यहाँ कोई नहीं आगे आने वाला है
सब बैठ तमासा देखने वाले हैं
भारत अब तक एक न हो पाया है
कुछ तुमने और कुछ मैंने इसमें कमाया है
पर इतना जरुर सोचना ऐ भारतीयों
इस कमाई में हम सबने क्या गंवाया है



24 Sept 2012

क्या भारत एक हो पाया है अभी तक?


भारत एक देश या देशों के बिच में एक मजाक 


बहुत सुना की भारत गांवों का देश है. भारत प्रदेशों का देश है. भारत में विभिन्नता है पर इस विभिन्नता में भी पूरी एकता है. भारत एक है. हम सभी भारतीय एक हैं. हमें ये एकता बना कर रखनी चाहिए. 


लेकिन क्या सच में हम एक हैं? क्या भारत एक हो पाया है अभी तक?

भारत में कई प्रदेश ऐसे हैं जो सरहद वाले प्रदेश हैं. फिर चाहे वो गुजरात हो या अरुणांचल प्रदेश, चाहे वो जम्मू कश्मीर हो या मिजोरम. पर क्या सारे सरहद वाले प्रदेशों को भारत में सामान अधिकार प्राप्त हैं. अब इतना तो हम जानते ही हैं की भारत का कुल १५,१०७ किलोमीटर का हिस्सा अपने पडोसी देशों के साथ सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है. पाकिस्तान के साथ भारत का करीब ३३२३ किलोमीटर का हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है वहीँ बंगलादेश के साथ भारत का करीब ४०९६ किलोमीटर का हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा है. चाइना के साथ ४०५७ किलोमीटर, म्यांमार (बर्मा) के साथ १६४३ किलोमीटर, भूटान के साथ ६९९ किलोमीटर तथा नेपाल के साथ १७५१ किलोमीटर का हिस्सा भारत में सरहद के रूप में है.

अब कुछ भी कहने से पहले आइये हम देखते हैं की किस देश से भारत के किस प्रदेश का कितना बड़ा सरहद जुड़ा हुआ है. 

१. अब सबसे पहले हम हमारे धुर विरोधी पाकिस्तान से लगने वाले सरहदी प्रदेशों का आंकलन करते हैं.

पंजाब - ५४७ किलोमीटर जिसमे से १५२ किलोमीटर नदी का हिस्सा है,
राजस्थान - १०३५ किलोमीटर
गुजरात - ५१२ किलोमीटर
जम्मू-कश्मीर - १२१६ किलोमीटर जिसमे से ८ किलोमीटर नदी का हिस्सा है लेकिन वास्तविक और मौजूदा स्थिति के आधार पर मात्र ७९० किलोमीटर ही सरहद का हिस्सा है जम्मू-कश्मीर का

२. अब देखते हैं की तिब्बत के साथ भारत का कितना हिस्सा सरहद के रूप में जुड़ा हुआ है

जम्मू-कश्मीर - १५७० किलोमीटर 
हिमांचल प्रदेश - २०० किलोमीटर
उत्तर प्रदेश - ३४५ किलोमीटर
सिक्किम - २०० किलोमीटर
अरुणांचल प्रदेश - ११२५ किलोमीटर

३. तीसरा नंबर आता है हमारे पडोसी देश म्यांमार (बर्मा) का और इसके साथ सरहदी हिस्सा

अरुणांचल प्रदेश - ५२० किलोमीटर
मणिपुर - ३९८ किलोमीटर
मिजोरम - ५१० किलोमीटर
नागालैंड - २१५ किलोमीटर

४. हमारे देश की सरहद हमारे एक और पडोसी भूटान से भी मिलती है लेकिन कितनी और किससे-किससे

सिक्किम - ३३ किलोमीटर
वेस्ट बंगाल - १७५ किलोमीटर
आसाम - २६५ किलोमीटर
अरुणांचल प्रदेश - १७० किलोमीटर 

५. विश्व का एक मात्र बचा हुआ हिन्दू राष्ट्र और हमारी सेना में महती भूमिका निभाने वाला नेपाल भी हमारा पडोसी देश है

उत्तर प्रदेश - ८४५ किलोमीटर
बिहार - ७२५ किलोमीटर
वेस्ट बंगाल - ९२ किलोमीटर
सिक्किम - ८५ किलोमीटर

६. अब एक और पडोसी देश जो हमारे लिए एक बड़ा सरदर्द भी बनता जा रहा है और हम उसे लगातार पीछे छोड़ते जा रहे हैं

वेस्ट बंगाल - २२१७ किलोमीटर जिसमे से ११८२ किलोमीटर जमीनी सरहद और ३३५ किलोमीटर नदी का हिस्सा 
आसाम - २६३ किलोमीटर जिसमे से १६० किलोमीटर जमीनी और १०३ किलोमीटर नदी का हिस्सा है
मेघालय - ४४३ किलोमीटर
त्रिपुरा - कुल ८६५ किलोमीटर जिसमे से ७७३ किलोमीटर जमीनी तथा ८३ किलोमीटर नदी का हिस्सा
मिजोरम - कुल ३१८ किलोमीटर जिसमे से ५८ किलोमीटर जमीनी और २६० किलोमीटर नदी का हिस्सा

अब इतना देखने के बाद हम कह सकते हैं की भारत के १६ राज्य सरहद रखते हैं अपने पडोसी राज्यों से. लेकिन क्या सारे राज्य एक सा मान और स्थान पाते हैं भारत में. क्यूँ केवल जम्मू-कश्मीर को ही विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता रहा है और आज भी बदस्तूर जारी है. जबकि इतना कुछ करने के बाद भी जम्मू-कश्मीर की जनता आज तक भारत को स्वीकार नहीं कर पाई है और आये दिन वहां पाकिस्तान का झंडा फहराया जाता रहता है. जम्मू-कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना तो दूर कोई भारत माता का नाम तक नहीं लेता है. साथ ही उस समय भी कुछ नहीं बोला गया जब पुरे कश्मीर को हिन्दुओं से खाली कराया गया था. इतना के बाद भी कश्मीरियों को लगातार विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना बदस्तूर जारी है और सभी नेता साथ ही बड़ी से बड़ी पार्टी आज भी उस पार्टी को ऊपर उठाने में लगी है जिसने हिन्दुओं को कश्मीर से भगाने में पारिवारिक परंपरा के अनुसार कार्य को बड़ी ही निष्ठां से अंजाम तक पहुँचाया. भारत के दुसरे हिस्से के लोग कश्मीर में अपना घर नहीं खरीद सकते हैं लेकिन कहने को कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.

अब जरा हम और प्रदेशों को देखें जिनमे अरुणांचल प्रदेश जिस पर चाइना लगातार अपना दावा ठोके जा रहा है. साथ ही सारे उत्तर-पूर्वी राज्यों में क्या हो रहा है ये कोई नहीं जानता है. पुरे उत्तर-पूर्वी राज्यों में लगातार परेसनियाँ आती रहती हैं और हम अपने घरों में बैठे किसी फिल्म स्टार या किसी दिल्ली के बलात्कार की ख़बरें देखते रहते हैं. कभी आसाम के जरिये बंगलादेशी भारत में घुस आते हैं तो कभी म्यांमार के दंगे का दंश भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य झेलते हैं. कभी इन प्रदेशो के सरहद पर बाड़ा लगाने पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है और न ही वहां के गरीबों का ध्यान रखा जाता है. अगर लोग उत्तर-पूर्वी राज्यों में जंगलों में भटक रहे हैं तो भटकते रहें लेकिन ध्यान तो एक ही जगह केन्द्रित रहेगा केवल. यहाँ तक तो ठीक है पर जरा ये भी देखें की उत्तर-पूर्व के अलावा पुरे भारत में उत्तर-पूर्वी नागरिकों को एक विदेशी की दृष्टि से देखा जाता है तथा खुद सरकारी महकमे के लोग उन्हें उनके अपने अलग और स्वक्क्षंद पहनावे के चलते वासना की दृष्टि से देखते हैं. इसके पीछे क्या कारण हो सकता है की अपने ही देश में कोई देशवासी विदेशियों की तरह देखा जाये.

यही हालत हमारे राजस्थान और गुजरात में भी है जहाँ मरू-रेतीली भूमि होने के बाद भी सीमा सुरक्षा बलों के साथ-साथ हमारे देश के आम आदमी सरहदों की रक्षा में रात-दिन एक किये रहते हैं. लेकिन बदले में उन्हें मिलता क्या है तो जो राज्य सरकार दे दे. यहाँ तक की इस रेतीली भूमि पर पानी लाने के लिए गाँव वासियों को पता नहीं कितने ही दूर का सफ़र तय करना पड़ता है उस तपती रेत पर नंगे पैरों से.

उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम और वेस्ट बंगाल ये चारों ही राज्य एक साथ एक बहुत बड़ा हिस्सा रखते हैं सरहद के रूप में पर क्या मिलता है इन चारों राज्यों को ये हम सभी देखते हैं. लेकिन क्या जम्मू-कश्मीर के अलावा हम और कहीं पर देश-विरोधी कार्य देखते हैं. इस सवाल का जवाब एक ही होगा की हाल ही में हुए आसाम दंगे से पहले तक तो बिलकुल भी नहीं. बल्कि अगर असल में देखें तो ये दंगा भी क्यूँ हुआ ये हम सभी जानते हैं. क्यूंकि सरहदी प्रदेश होने के बाद भी इन प्रदेशों को कोई तरजीह नहीं दी जाती है.

अब जरा एक और वाकया देखते हैं जो बहुत ही मजेदार है. जिस काम को कश्मीर के मुसलमानों ने किया मतलब पुरे कश्मीर को हिन्दुओं से खाली कराया चाहे जान से मार कर या औरतों का बलात्कार करके वो भटके हुए कहे गए लेकिन वहीँ जहाँ सदियों से बसे उत्तर-पूर्वी के बासिंदों के जमीनों पर बांग्लादेशियों को बलात बसाया गया वहां अपने जमीनों के लिए संघर्ष करने वालों को पुरे देश के सामने आतंकी बता दिया गया और उन्हें इस प्रकार प्रचारित किया गया की वो देश में ही अपने वजूद को खो बैठे और ये संघर्ष जमीन से हट कर अपने वजूद के लिए लड़ने लगे और अपने देश में ही विदेशी या विदेशी समर्थित आतंकी हो गए. 


आखिर ऐसा दोहरा वर्ताव क्यूँ हो रहा है देश में देश के ही लोगों के साथ. क्या जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा सिर्फ इस वजह से दिया गया है की वहां मुसलमान हैं और देश के बाकि सरहदी राज्य इससे वंचित हैं क्यूंकि वहां हिन्दू बाहुलता है. विशेष राज्य के पीछे मुस्लिम तुस्टीकरण कहाँ तक सही है जबकि भारत वासियों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ बड़ी ही धूर्तता से पढाया जाता है और धर्मनिरपेक्षता के आड़ में घोर सम्प्रदायीकता को एक जहर की तरह फैलाया जा रहा है. आखिर ये जहर क्यूँ? मकसद क्या है इस दोहरे जहर घोलू बर्ताव का.



हिंदी है हिन्दू की पहचान



भारत विभिन्नता में एकता रखने वाला देश है. इसका प्रमाण एक बहुत ही प्रचलित कहावत से साफ़-साफ़ पता चलता है "कोस-कोस पर पानी बदले, ढाई कोस पर वाणी". भारत में बहुत तरह की भाषाएँ बोलीं जाती हैं. हर भाषा का अपना ही एक महत्व होता है. भाषाएँ एक-दुसरे को जोड़ने का काम करती हैं. देश में ४ भाषाओँ को देव भाषा का नाम दिया गया है जो की लिपि बद्ध हैं इनमे पहला है संस्कृत, तमिल, तेलगु और कन्नड़. लेकिन इन सभी भाषाओँ के साथ-साथ हमारी बाकि की क्षेत्रीय भाषाओँ का भी अपना ही एक महत्व होता है. हर क्षेत्र की अपनी एक अलग भाषा है. कोई बंगाली बोलता है तो कोई मराठी, कोई असमी बोलता है तो कोई भोजपुरी लेकिन इन सभी भाषाओँ का एक ही उद्देश्य होता है अपने विचारों की अभिव्यक्ति और एक जुडाव अपनों से अपनों की तरह. पर क्या होगा अगर एक कश्मीरी अपनी भाषा में किसी तमिल से बात करे या कोई असमी में किसी मराठी से बात करे. अगर ऐसा होता है तो अभिव्यक्ति तो हम कर सकते हैं लेकिन इस अभियक्ति का कोई महत्व नहीं होगा क्यूंकि हमारी बातें सामने वाले के समझ में नहीं आएँगी और हमारा संचार तंत्र वहीँ खत्म हो जायेगा. 

क्षेत्रीय होना एक स्तर तक सही है लेकिन क्या भारतीय होना गलत है? इन्सान होना सही है लेकिन क्या अपने धर्म और अपने मूल को भूल जाना सही है? हिन्दू धर्म का सब कुछ अपने में समाहित करता है फिर एकता को क्यूँ नहीं समाहित करता है?

अब इसका दो ही उपाय है. हम जहाँ भी जाएँ वहां की भाषा सीखें जैसे की अगर कोई भोजपुरी बोलने वाला असम में जाये तो असमी सीखे जोकि जरुरी भी है लेकिन ये एक लम्बी प्रक्रिया है. तो यहाँ एक दूसरा पहलु है की अगर हम अपने देश की राष्ट्रीय भाषा हिंदी में बात करें. चूँकि हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे अधिकांश लोग समझ सकते हैं और टूटी-फूटी बोल भी सकते हैं. इस प्रकार अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाने में बहुत आसानी होती है. क्यूंकि भाषा अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए होती है न की अपनों को अपनों से दूर करने के लिए. दूर करने के लिए तो नेता हैं न जो की हमें लड़ाते रहते हैं कभी जाती के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर. पर इस भाषा के नाम पर लड़ने में हम अपने देश को ही बदनाम करते हैं जिसमे हम रहते हैं और अपनी मातृभूमि कहते हैं. क्या हम अपनी मातृभूमि का फर्ज पूरी तरह समझ पाए हैं?  

हम इस सच्चाई को पूरी तरह ह्रदय से सर झुका कर मानते हैं की भारत देश जो कभी बिखरा हुआ था उसे सरदार बल्लभ भाई पटेल जी ने एक सूत्र में जोड़ा और इस जोड़ने में उनका उद्देश्य एक ही था की पूरा देश एक होकर रहे. इसी एक सूत्री भारत के उद्देश्य के लिए तत्कालीन आजाद भारत की सरकार ने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाया. लेकिन तत्कालीन भारत सरकार ने भी हिंदी को थोपा नहीं. सरकार ने यही कहा की जो जिस भाषा में भारत में बोलने में आसानी महसूस करता है वो उस अमुक भाषा में बात करे लेकिन अगर २ अलग भाषा को बोलने वाले एक दुसरे से बात करना हो तो हिंदी का प्रयोग करें.

मैं आज भी वही बात करना चाहता हूँ की जैसे कोई भी बात जबरदस्ती किसी पर थोप कर नहीं की जा सकती है वैसे ही कोई भी भाषा किसी पर थोप कर एक-दुसरे को नहीं जोड़ा जा सकता है. एक दुसरे को अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए किसी भी भाषा से पहले आत्मीयता की जरुरत होती है. अगर हमारे अन्दर आत्मीयता है तो हर भाषा हमारे लिए एक हो सकती है फिर चाहे वो हिंदी हो या असमी या फिर तमिल. भाषा तो हमें एक ऐसा पुल प्रदान करती है जो नदी के दो किनारों को आपस में जोडती है और नदी के दोनों किनारों पर खड़े इंसानों को आपस में जोडती है. 

अतः हम एक होकर एक भाषा को अपनी सामूहिक और कई क्षेत्रों के मध्य की भाषा बनायें और इस कार्य में एक ही भाषा है जो इस कार्य को कर सकती है और वो है हिंदी. हिंदी कोई एक अमुक समूह की भाषा नहीं है वरन हिंदी पुरे हिन्दू समूह और भारत की भाषा है. हर हिन्दू को हिंदी भाषा को अपने ऊपर थोपा हुआ नहीं समझना चाहिए वरन हिंदुत्व के लिए उसे सहर्ष अपनाना चाहिए साथ ही अपने दुसरे हिन्दू भाइयों को हिंदी भाषा को ह्रदय से अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए न की किसी हिन्दू को हिंदी भाषा बोलने से हतोत्साहित करना चाहिए.

हिंदी या कोई भी भाषा किसी पर थोपिए मत वरन हिंदी को हिन्दू सहर्ष अपनाएं ! ! !



22 Sept 2012

कोई भी विदेशी शराब १०० रुपये की एक बोतल

मैंने रात को एक सपना देखा...

एक पाउच पेट्रोल १०० रुपये का
गैस सिलिंडर ५००० रुपये का
एक पाउच डीजल ८० रुपये का
१ लिटर दूध ५०० रुपये का
१ प्याज १५० रुपये का
१ आलू १२० रुपये का
हरी सब्जी देखने का केवल २०० रुपये
गाँव ख़तम हो गया मेरा साथ ही और सारे गाँव भी और गाँव वाले भी और मेरे गाँव में केवल विदेशी भरे हैं 
देश में भारतीय किसान नहीं बचा कोई
भारत अब गांवों और किसानों का देश नहीं बल्कि माल और विदेशियों का देश बन गया है

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मैं तो पूरा घबडा गया...लेकिन तभी मैंने आगे देखा की
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मेरे घर के बगल वाली किराना स्टोर पर सरदार जी के जगह एक मस्त अंग्रेजन है छोटे कपड़ों में
कोई भी विदेशी शराब १०० रुपये की एक बोतल
किसी भी वाल-मार्ट या विदेशी स्टोर जाने के लिए घर के सामने एसी गाड़ी खड़ी है
नेस्ले का चोकलेट १०० रुपये किलो
विदेशी दूध घर पहुँचाया जायेगा किसी सुन्दर विदेशी कम कपड़ों वाली बाला से १०० रुपये लीटर
हरी सब्जियां आप जो कहिये वो उपलब्ध है विदेशी मिटटी के साथ १०० रुपये किलो
बगल वाले खेत में एक सुन्दर बाला अपने गोरे मित्र (जो उसका पति नहीं है) के साथ प्यार करते हुए ट्रैक्टर चला कर खेत जोत रही है
गाँव अब शहर बन चुके हैं
देश की प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अमेरिका और बाकि के बाहरी देशों से आ रहे हैं

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अब इतना कुछ तो मिल रहा है इस FDI से. फिर कहें लोग इसका विरोध करने में लगे हैं ये समझ से परे है. भाई हमारी मौजूदा सरकार हमें इतनी सहूलियत दे रही है की हम हर काम में एक कम कपड़ों वाली विदेशी बाला के दर्शन करते रहें. साथ ही केवल और केवल विदेशी चीजें हम खाएं और पियें, पहने और पहनाएं.

अब हम बहुत कुछ सीखेंगे क्यूंकि हर काम यहाँ तक की मुख्य मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी FDI के जरिये आ रहा है भारत में. केवल चपरासी, मंत्री और विधायक ही भारतीय होंगे लेकिन उनको बोलने का कोई हक़ नहीं बल्कि केवल हाँ और ना में सर हिलाएंगे.

बोलो FDI और इसकी माता की जय



19 Sept 2012

गरीबों को उपेक्षित करता गृह मंत्रालय


वाह रे भारत की गृह मंत्रालय !!!

गरीबों को उपेक्षित करता गृह मंत्रालय टैक्स जमा करने वालों की जानकारी भी नहीं रखता !!!


देश के करीब ४००० NGO का FCRA निरस्त कर दिया गया और इसका कारण बताया गया है की इन NGO ने टैक्स नहीं जमा किया है। और जब ये NGO गृह मंत्रालय के पास गए और अपना सालों का टैक्स रिटर्न फाइल दिखाया तो गृह मंत्रालय के पास कोई जवाब नहीं था।

जिन NGO का FCRA निरस्त किया गया है उनमे JNU, इस्कोन इत्यादि हैं|

अब जब FCRA निरस्त होने के बाद कोई अपने सामाजिक कार्य को कर रहे हैं वो नहीं कर पाएंगे। जो सुदूर में स्थित गरीब हैं वो कुछ अच्छे NGO के चलते ही अपना स्वास्थ्य परिक्षण करा पाते हैं तथा दवा ले पाते हैं| 

लेकिन अभी सरकार की इस मुर्खता पूर्ण लापरवाही का नतीजा क्या होगा?
क्या सरकार ने उन गरीबों के बारे में थोडा भी सोचा जिनको सरकार कभी देखती ही नहीं है?
कौन भुगतेगा इस मुर्खता पूर्ण उपेक्षा को???


साथ ही क्या ये समझा जाये की हम लोग के साथ-साथ
 कम्पनियाँ भी टैक्स जमा तो करती हैं लेकिन वो सरकार  के खजाने में न जा कर कहीं और जा रहा है और इसको सरकारी जमा पूंजी में नहीं दिखाया जा रहा है और लोगों के ऊपर महंगाई का बोझ डालने के लिए झूठे घाटे का सहारा लिया जा रहा है तथा देश के लिए सरकार से लड़ने वाले "बाबा राम देव जी" के ट्रस्ट तक को इसी योजना के तहत परेसान किया जा रहा है|

सबसे बड़ी बात ये समझदारी भरा कार्य भारत की गृह मंत्रालय ने जुलाई २०१२ महीने में ही किया है लेकिन अभी तक इस खबर को किसी ने देखा तक नहीं|


वाह रे मेरा देश भारत और वाह रे इस देश की सरकार और इस देश की जनता



4 Sept 2012

आरक्षण या लोलीपोप



मैं ये लेख न तो आरक्षण के प्रति दुर्भावना से किसी प्रकार ग्रषित हो कर लिख रहा हूँ और न ही इस आरक्षण के कारन मुझे कोई हानी है क्यूंकि शुरू से मुझे सरकारी नौकरी नहीं करनी थी| मुझे आरक्षण से कोई परेशानी नहीं है बल्कि मेरा मानना है की इस तुरुप के इक्के का अच्छे से इस्तेमाल हो|

भाई आरक्षण एक ऐसा लोलिओप बन रखा है जिसमे सीधा मकसद है की दलितों को बेवकूफ बनाओ और उनसे वोट लो| लेकिन एक और मकसद है जिसे दलित उत्थान के झूठे वादे में बड़े जतन से छिपा लिया गया है| ये मकसद और कुछ नहीं बल्कि हिन्दुओं में फुट डालने का|

अब आइये जांचते हैं की जो आरक्षण १० साल के लिए बनाया गया था उसको आज ६५ साल से लगातार चलाया जा रहा है लेकिन उसका फ़ायदा किसे पहुंचा आरक्षण का| आज तक कितनी झोपड़ियाँ पत्थर और कंक्रीट के घर बन पाए| कितने गाँव के दलित भाई विकसित हो पाए| क्या आरक्षण कुछ हाथों की कठपुतली बन कर नहीं रह गया है|

अब कोई भी आगे आये और अपने गाँव के दलित भाइयों का हश्र देख ले की कितना आगे बढ़ा है इस आरक्षण से आपके गाँव का दलित| क्या केवल आरक्षण के नाम पर चंद रुपये हथेली पर रख देने भर से किसी दलित का उत्थान हो सकता है क्या? घर में खाने को कुछ नहीं हो, अनाज पैदा करने के लिए जमीन न हो तो इस आरक्षण का क्या दलित अचार डालेंगें?

जो कल मिटटी के घरों और झोपड़ों में रहते थे वो आज भी उसी तरह रहने को मजबूर हैं लेकिन फ़ायदा मिला जिनके पास पहले से मजबूती थी| जो कल डॉक्टर या IAS या कुछ बड़े लाभ के पद पर थे वही आगे बढे जिनका प्रतिशत ९५% है लेकिन जो मलिन घरों से आगे आये वो केवल ५% हैं| सबसे बड़ी बात की जो आज नेता हैं वो भी इस आरक्षण का लाभ उठाते हैं जिसकी इनको जरुरत ही नहीं है| 

तो क्या मान लिया जाये की आरक्षण केवल समर्थ लोगों के फायदे के लिए बनाया जाता है आज और गरीबों के लिए लोलीपोप|

अब इस आरक्षण का दूसरा पहलु देखते हैं| आरक्षण कैसे हिन्दुओं में फुट डाल रहा है| एक नाकाबिल युवक आरक्षण के जरिये लाभ के पद पर पहुँच जाता है लेकिन काबिल इन्सान पीछे रह जाता है तो अमूमन है की उस काबिल इन्सान के अन्दर रोष आएगा जो कभी न कभी फूटेगा| आज कितनी ही बार खबर आती है की अमुक कॉलेज की अरक्षित सिट भर नहीं पाई लेकिन किसी काबिल अनारक्षित युवक को वो सिट नहीं दी जा सकती है क्यूंकि वो अरक्षित वर्ग की है| जो कोई अपने मेहनत से ऊपर के पोस्ट तक पहुंचा है उसको केवल इस लिए पीछे छोड़ दिया जाता है क्यूंकि प्रोनात्ति पाने वाला एक अरक्षित वर्ग का युवक है|

एक बात याद आती है मुझे हमारे पूर्व प्रधानमंत्री जो की अब जीवित नहीं हैं स्वर्गीय राजीव गाँधी जी, जिन्होंने कहा था की जो भी राहत कोष केंद्र से चलता है अगर वो १०० रूपया है तो जरूरतमंद तक पहुंचते-पहुंचते वो सिर्फ एक रूपया रह जाता है| अब आप खुद सोचें की अगर वो पूरा १०० रूपया जरूरतमंद तक पहुंचे तो क्या कोई गरीब रहेगा या इस आरक्षण की जरुरत रहेगी| लेकिन आज की हालत में तो वो १ रूपया भी नहीं पहुँच रहा है बल्कि पूरा १०० रूपया लूट लिया जा रहा है| इतने घोटाले हो रहे हैं देश में अगर वो पैसा देश में लगे तो देश में क्या आरक्षण की जरुरत रहेगी? जो पैसा इन चोरों ने विदेशों में जमा कर रखा है वो भारत लाने में इनकी हालत ख़राब क्यूँ होती है क्यूंकि उसके बाद आरक्षण की जरुरत ही नहीं होगी देश में|

अब जरा इन मंत्रियों की माली हालत पर नजर डालते हैं जो इस आरक्षण की पैरवी करते हैं की उनकी माली हालत में इन दिनों में कितना बदलाव आया:-

मायावती जो की उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री रही हैं उनकी धन-दौलत १११ करोड़ है जो की १४ मार्च २०१२ के हिसाब से पिचले २ सालों में ही २७% बढ़ी| मायावती जी के पिता गौतम बुद्ध  नगर में एक पोस्ट ऑफिसर थे| इनका परिवार जाटव जाती का है जिस पर मायावती जी की सोच थी की ये अगर प्रधानमंत्री बनाने का मौका पाएंगी तब ये बुद्धिस्ट बन जाएँगी| यानि फिर जाती का खेल| मायावती जी १९९४ में राज्यसभा की सदाशय बनी| अब अगर १९९४ से आज तक यानि २०१४ तक हर महीने ५०,००० रुपये के हिसाब से भी हिसाब लगाया जाये जो की एक मुख्य मंत्री की सैलरी है तो देखते हैं की कितना होना चाहिए इन महोदय के पास| 

१८ साल * १२ महीने * ५०००० = १,०८,००,००० यानि १ करोड़ ८० लाख ही होना चाहिए पर दलितों की अधिष्ठाता मायावती जी के पास है कितना माल तो सीधा १०१ गुना ज्यादा| अब जरा इनसे कोई पूछे की क्या इनको आरक्षण चाहिए या ये पैसा कहाँ से आया| क्या ये वो पैसा नहीं है जो अरक्षित लोगों के उत्थान के लिए था और जो उन लोगों के उत्थान के बदले अरक्षित लोगों की अधिष्ठात्री मायावती जी की जेब को शुशोभित कर रही है और ये दिखावे के लिए इस आरक्षण के लिए झूठी लड़ाई लड़ने की नौटंकी में लगी हैं और इन जैसे तो पता नहीं कितने नेता हैं जो भोले भाले दलित भाइयों को बेवकूफ बनाने में लगे हैं और उन्हें एक ऐसी गहरी और अँधेरी खाई में धकेल देना चाहते हैं जिसका परिणाम एक ही है "गृह युद्ध"| 

दूसरा सवाल है की आखिर किसी भी आरक्षण का लोलीपोप केवल चुनावी माहौल में ही क्यूँ किया जाता है? क्या ये वोटर्स को ललचाने के पुराना और कारगर तरीका है जिसे वोटर्स देख ही नहीं पते हैं या देखने के बाद भी अपनी इन्द्रियों को बंद करके गाँधी जी बन्दर बन इन मदारी रूपी नेताओं के तान पर नाचते रहते हैं|

मैं आरक्षण के खिलाफ नहीं हूँ जैसा की मैंने पहले भी कहा है पर अगर आरक्षण देना ही है तो जाती आधारित दे कर हिन्दुओं को बांटने से अच्छा है की आप आमदनी के आधार पर आरक्षण दें|

१. आमदनी के आधार पर आप आरक्षण दें जिसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज नजर रखें| 

२. साथ ही आमदनी आधारित आरक्षण के लिए आप फॉर्म १६ लें जिसे लोग टैक्स जमा करने के लिए उपयोग करते हैं और जिसे सीधा सरकारी कम्पनी और मौजूदा सरकार की दुश्मन कैग चेक करती है|

३. जिसको एक बार आरक्षण मिल जाये उसे दुबारा आरक्षण का लाभ न मिले बल्कि उसके जगह दुसरे को आरक्षण का लाभ मिले|

इस आधार से हर उस व्यक्ति को लाभ मिल सकता है और हर जरूरतमंद को रोटी मिल सकती है| लेकिन हम सभी जानते हैं की अगर जरूरतमंद का पेट भर गया और वो सफल है तो वो इन पाखंडी और जाती के नाम पर आरक्षण का लोलीपोप दे कर दलित भाइयों का न तो मजाक बना पाएंगे और न ही हिन्दुओं के बिच कोई खाई पनप पायेगी|

भाइयों इन कुटिल नेताओं की मानसिकता को समझो जो केवल आपको बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं और कुछ नहीं| इन कुटिल नेताओं को उनके मकसद में कामयाब न होने दें और इन्हें सबक सिखाएं|

जय हिंद जय भारत