20 Apr 2012

अग्नि-५- ख़ुशी या आत्ममंथन

आज १९ अप्रैल  २०१२ एक  बहुत गर्व का दिन रहा की हमारी बहुप्रतीक्षित अग्नि- गई| इस अग्नि- के द्वारा यूरोप तक का बहुत बड़ा भूभाग हमारे निशाने पर सकता है| इस मिसाइल के जाने से बहुत से देशो के छाती पर सांप लोट रहा है| लोटना भी चाहिए क्युकी भारत की गणना एक पिछड़े देश में होती थी जिसका कोई नामोनिशान नहीं था जैसा की और देश अपना बना चुके थे| पर आज के कदम ने हर देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है और साथ ही हमें हर्शोल्लाश का माहौल दे दिया है। 

पर वही अगर मै अगर मौजूदा स्थिति को देखता हु व्यावहारिक स्तर पर या कहे तो एक टिप्पड़ी कारक के तौर पर तो मुझे कुछ और ही दिखाई देता है| मै शायद गलत हो सकता हु यहाँ पर अपनी बात को सभी के सामने रखने के हक़ से मै अपनी सोच को सबके सामने रखने की चेष्टा कर रहा हु|

इंडियन एयर फोर्स ने पिछले ७ सालो २००५ से अभी तक में ४६ लड़ाकू जहाज को खोया है (PTI अगस्त 24, 2011, 08.19pm)

२००५ से २००८ तक में कुल २० लड़ाकू जहाज गिरे और २००८ से अगस्त २०११ में कुल २६ लड़ाकू जहाज गिरे---ऐसा हमारे रक्षा मंत्री A K Antony ने ही राज्य सभा में कहा।

ये जो लड़ाकू जहाज गिरे ये कोई ऐसे वैसे लड़ाकू जहाज नहीं थे बल्कि मिग, सुखोई-३० और जगुवार थे और इसमें हमने हमारे ६ लड़ाकू पायलट खोये।

इस हानी को देखते हुए हमारे रक्षा मंत्री ने कोर्ट ऑफ़ इन्क्वैरी के लिए कहा ताकि हम जन सकें की ऐसी दुर्घटनाये क्यों हुई और इन दुर्घटनाओ को भविष्य में टला जा सके। साथ ही इन्होने ने इसमें एक और बात जोड़ा की ये सर्कार पायलटो को और ट्रेनिंग देगी ताकि मानविक गलती को दूर किया जा सके। साथ ही फ्लाईंग बेस पर चिडियों के रोक थाम  की व्यवस्था की जाएगी। तो ये था हमारे रक्षा मंत्री का बयान पर अब मै आपका ध्यान कुछ और बातो पर इंगित करना चाहूँगा।

अगर इस लिंक की माने तो गलती आपको दिख जाएगी की किसकी है---


यहाँ सीधे-सीधे आरोप लगाया गया है की हमारे लड़ाकू जहाजो के दुर्घटना ग्रस्त होने के पीछे कोई मानविक गलती नहीं है बल्कि एक सोची समझी चाल है जिसमे कुछ लोगो का बैंक अकाउंट बढ़ रहा है क्युकी हमारे सोवियत संघ के लड़ाकू जहाजो के कल-पुर्जे न तो सोवियत संघ से लिए जा रहे हैं और न ही उन्हें भारत में बनाया जा रहा है बल्कि इन जहाजो के कल-पुर्जे घटिया स्तर के हैं जिन्हें बहार के किसी देश से मंगाया जाता है और ऐसा मै नहीं कह रहा हु बल्कि ऐसा रसिया के अम्बेसडर अलेक्जेंडर कदाकिन ने कहा है।

अब आप खुद सोचे की कौन कहा तक सही है और क्या हमें बहुत ज्यादा खुश होने की जरुरत है? या की हमें एक जुट हो कर कोई ठोस कदम उठाने की जरुरत है।

इसके आगे की जानकारी अगले लेख में प्रदान करने की कोशिस करूँगा मै।

जय हिंद.....जय भारत

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