दिल की बात को दिल मे दबाए बैठा हूँ,
होंठ बेजान से पर आँखों से भी कुछ कह नहीं पाता हूँ॥
मन की बात को लबों पर दबाए बैठा हूँ,
दिल मे उठती हूक को आँखों मे छुपा नहीं पाता हूँ॥
आज बन गया मेरा दिल भी इक पत्थर,
अब तो जुगनुओं की चमक भी झेल नहीं पाता हूँ॥
भँवर मे कर रहा कोशिश तैरने की,
भूल गया था लहरों से लड़ाई जीत नहीं पाता हूँ॥
दुखी हो गया मेरा मन भी अब तो गालिब,
खुद की चुप्पी ही अब तो मुझसे सही नहीं जाती है॥
मन मे जाने कितने बवंडर दबाए बैठा हूँ,
पर इन आँखों की नमी मुझसे झेली नहीं जाती है॥
कभी मेरी अश्को ने बनाया था समंदर भी,
पर भूल गया की रेत पर कभी कोई तकदीर लिखी नहीं जाती है॥
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