29 Sept 2014

मेरे जीने की दुआ कौन करे (Mere Jine Ki Dua Kaun Kare)


उदास इस रात मे वीरान दिल की सजी है महफ़ील,
ना कोई हमसफर है, ना है ठिकाना किसी मजिल का॥

ये नामुराद अलसाई जिंदगी कहाँ ले कर आई मुझे,
जिंदगी तो कर गई बेवफाई, शायद मौत दे वफा मुझे॥

अब ना तो कोई तरंग है ना ही है कोई उमंग,
जिंदगी तो बनी मेरी बस एक कटी पतंग॥

खुशी की चाह मे उठाता रहा मैं रंज बड़े,
बदनसीबी मिलती रही, जहां पड़े कदम मेरे॥

दुखते मेरे जख्मों की दवा कौन करे,
सबको अपनी पड़ी है, मेरी परवाह कौन करे॥

इस हाल मे मेरे जीने की दुआ कौन करे,
मुझ मरीज की दवा करे तो कौन करे॥

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