मैं दरख्त से टूटा एक सूखा पत्ता हूँ
ना जिंदा हूँ ना मरता हूँ
आग से मैं दोस्ती करता हूँ
तिनके सा जल उठता हूँ
राख़ बन उड़ जाता हूँ
मैं एक तिरस्कृत झंझावात हूँ
सहता हरदम कुठारघाट हूँ
दुनिया को करता मदमस्त हूँ
मैं तो मैली चादर मे पैबस्त हूँ
अपनी ही हालत मे पस्त हूँ
मैं समंदर मे फेंका एक तिनका हूँ
लहरों पे डूबता उतराता हूँ
किनारे आने को जूझता हूँ
किनारे आ कर भी किनारे से दूर हूँ
समंदर की लहरों के आगे मजबूर हूँ
मैं अपने दुखों मे खुद पिसता हूँ
ढूँढता अंजान रिश्ता हूँ
दुनिया के आगे झूठ सही जीता हूँ
अपने गमों को खुद ही पीता हूँ
अंजान से राहों पर चलता हूँ
मैं तो बस एक नादान परिंदा हूँ
चुनता खुद का फंदा हूँ
आँखों से आधा अंधा हूँ
दिमाग से मैं गंजा हूँ
मैं तो बस मनहूस एक बंदा हूँ
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