30 Mar 2012

भारतीय: जिन्दा या मुर्दा


आए दिन इतने घोटाले होते हैं अपने इस भारत देश में पर क्या कोई बता सकता है की जिम्मेदार कौन है इसका........क्यों सारे नेता जिनपर कोई न कोई आरोप या केस है वो सांसद या विधान सभा में पहुच जाते हैं...........चोरो, लूटेरो, डकैतों, बलात्कारियो, खुनियों और यहाँ तक की देशद्रोहियों तक को हमारे सर के ऊपर ला कर बैठा ही नहीं दिया जाता है बल्कि फेविकोल के जोड़ से भी ज्यादा मजबूत जोड़ से जोड़ या चिपका दिया जाता है.......कहाँ से बैठ जाते हैं ये लोग हमारे सर पर..........क्यों झेलते हैं हम ऐसो को.........कौन हमें अलग अलग मुद्दों पर लडाता है और क्यों लड़ा पता है वो ........किसने हमारे बिच में खाई पैदा करी.......किसने हमें बांटा है.........सबसे बड़ा प्रश्न कौन सबसे ज्यादा गलत है नेता या खुद हम.....क्या हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं......अपनी जिम्मेदारियों का सही से निर्वाहन करते हैं|

अब यक्ष प्रश्न यह है की हम अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन सही से क्यों नहीं कर पाते हैं ...... ऐसी क्या परेशानी है हमको अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाहन में.......क्या हम अपने परिवार की जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं......क्या हम अपने घर वालो के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं......क्या हम अपने घर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन नहीं करते हैं......नहीं ना......फिर हम अपने देश जो की सबसे पहले हमारा घर है उसके प्रति हम क्यों अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाते हैं........क्या ये देश हमारा घर नहीं है......क्या इस देश के लोग हमारे घर वाले नहीं हैं......या की हमारी गैरत मर गई है......या हम खुद अन्दर से मर नहीं सड़ चुके हैं......क्यूंकि अगर हमारे घर वालों की तरफ कोई बुरी नजर भर उठता है तो हम उसको जान से मारने तक की कोसिस तो कर ही लेते हैं इसी में से कुछ लोग जान से मारने में सफल भी हो जाते हैं अपने घर वालों के तरफ बुरी नजर उठाने वालों को......ऐसा क्यों होता है क्युकी जिन पर बुरी नजर उठी है वो हमारे अपने हैं और ये देश में जिसका दिया हम खाते हैं.....या जिसके हवा में हम साँस लेते हैं......या जिसके जमीं पर हम रहते हैं और अपनी पूरी जिंदगी बिताते हैं......उनके प्रति हमारा कोई हक़ नहीं बनता है.

अगर ऐसा है की हम मुर्दों के सामान हो गए हैं और देश के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है या हम देश के प्रति किसी भी जिम्मेदारी का निर्वाहन नहीं करेंगे या नहीं कर सकते हैं किसी भी स्तर पर तो क्या हम इस देश की अबो-हवा में साँस लेने तक के भी हक़दार हैं.

नेटीजन्स या सिटीजंस

अंततोगत्वा सोसिअल नेट्वोर्किंग साइट्स का प्रभाव देखने को मिला दुनिया में.......दुनिया के कई कोने में बड़े-बड़े क्रांति आ गई और वहां की भ्रष्ट सरकारे या तानाशाह ख़तम हो गए.....इसमें एक बहुत बड़ा हाथ सोसिअल नेटवर्किंग साइट्स का रहा....पर वो क्रांति हमारे भारत में क्यों नहीं दिखती है

इसका कारन बहुत आसान है......यहाँ NETIZENS (FACEBOOKIYE and SOCIAL NETWORKING WORMS ) हैं, CITIZENS नहीं.....सब बड़ी-बड़ी बाते लिख सकते हैं....लिख कर एक दुसरे को गलियां दे सकते हैं और अपने आप को बहुत बड़ा देशभक्त या क्रन्तिकारी दिखा सकते हैं.....लेकिन इन लोगो से कोई क्रांति नहीं आ सकती कभी देश में......इनसे केवल गन्दगी फ़ैल सकती है....और फ़ैल रहा है जिसका कही न कही खामियाजा हो ही रहा है|

आप क्या चाहते हैं?

29 Mar 2012

अनाज घोटाले की तरफ बढ़ता भारत

अभी तक कहा जाता था की भारत गांवो का देश है.....गाँव मतलब किसान....किसान  मतलब  खेती......फिर भी एक और घोटाले की तरफ बढ़ता हुआ हमारा गांवो का देश भारत| 

घोटाला भी कौन सा.............अनाज घोटाला!


अब सवाल उठता है की हमारा देश तो अनाज के उत्पादन में अग्रणी देश रहा है फिर ये अनाज घोटाला कैसे होगा?


भाइयो इसका जवाब आपको एक किसान देगा| जो खाद किसानो ने धन के रोपाई के समय में ४८० रुपये (जो की बाजार में ५२० रुपये) में लेता था वो धन के बाद अगली फसल गेंहू के समय ९२० रुपये का हो गया और और अब ये खबर आ रही है की यही खाद फिर से इस समय की धन की फसल की बोवाई में १९०० रुपये से भी ज्यादा मिलने की सम्भावना है और इस वजह से किसान कम फसल बोयेगा और फसल के कम पैदा होने के वजह से अनाज को दुसरे देशो से ख़रीदा जायेगा| अब सीधा सा जवाब है की जब ये राजनेता देश की सुरक्षा उपकरणों की खरीद में दलाली कर घोटाला कर सकते हैं क्या वो गरीब जनता का ख्याल रखेंगे कभी.......या वो मनमाने ढंग से खरीद-फ़रोख्त करके एक और घोटाले को पैदा करेंगे और अपनी जेब भरेंगे|
अब दूसरा सवाल ये है की जो किसान अभी तक महंगी खाद (४८०-५२० रुपये) की वजह से आत्महत्या कर रहा था वो अब क्या करेगा........सामूहिक आत्महत्या!
और गौर तलब है की इस ओर किसी भी राजनितिक पार्टी ने ध्यान देना बंद कर दिया है और कोई प्रश्न तक नहीं पुछा जा रहा है इस बाबत|

क्या आप और हम सब भी इन्ही राजनितिक पार्टियों के जैसे हैं............क्या हम इन्ही राजनेताओ के जैसे हैं की हम जिनके कारन खा पा रहे हैं अपने घरो में बैठे हुए उनको सामूहिक आत्महत्या करने के लिए छोड़ दें.......क्या हमारा कुछ कर्तव्य नहीं बनता है हमारे किसानो के प्रति|

टुकडो में बंटता हिंदुत्व और हिन्दू


हमारी सबसे बड़ी गलती जिसको हम में से कोई भी नहीं बोलता है!

हमारे हिन्दू भाई इतने दूर हो गए हैं अपने ही भाइयो से और इतनी बड़ी खाई खुद गई है जो की पटने का नाम नहीं ले रही है और न ही उसके लिए कोई कोशिस भी कर रहे हैं| पहले हमारे सिख भाई हमसे अलग हुए जो हिंदुत्व की रक्षा के लिए सिख बने थे पर गलती ऐसी हुई की दोनों भाई अलग हो गए एक दुसरे से और राजनेता इस खाई को और बढ़ाने का काम किये पर ये अलग बात है की आज वो ही राजनेता आज इसका भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं| 

फिर अलग हुए निम्न वर्गीय जिनको दलित बोला जाने लगा जबकि असलियत ये है की वो भी उतने ही हिन्दू हैं जितने सवर्ण लेकिन क्या हम जाती से सवर्ण उनको वो हक़ दे रहे हैं या दिया है जो उन्हें मिलना चाहिए था बिना मांगे ही| क्या बिना उनको समानता का हक़ दिए हम उनको अपने साथ चलने को बोल सकते हैं या क्या वो हमारे साथ चल सकते हैं कभी|
कभी हमारे हिन्दू धर्म से सिख अलग हुए कभी बौद्ध कभी जैन कभी निम्न वर्गीय (दलित)| क्या बिना हमारे सभी अलग हुए धडो के एक हुए हम कोई अच्छा, सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं अपने देश में|

आज हिन्दू मुख्यधारा से अगर कोई सबसे ज्यादा दूर है तो वो है निम्न वर्ग (दलित)| एक सवाल मै इनको निचा दिखने वालो से पूछना चाहता हु की निम्न वर्ग से अगर कोई ऊँची पोस्ट पर पहुँच जाता है यहाँ तक की अगर मै मायावती तक का नाम लू तो सरे उच्च वर्गीय लोग सब भूल कर इनके मातहत बन जाते हैं और इनके पैरो तक को जमीं पर नहीं अपने हाथो तक पर धारण करने से नहीं चुकते हैं और इनको खुश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं पर वही लोग जब कुछ भी नहीं होते हैं एक आम इन्सान होते हैं क्या हम उनको अपने साथ तक बैठने देते हैं? क्या इस अपमानजनक तरीके से आप और हम अपने भारत में एक सकारात्मक बदलाव लायेंगे| या इस तरीके से हम अपने इस देश को फिर से सोने की चिड़िया बना पाएंगे कभी| 

अगर हाँ तो कैसे और अगर नहीं तो क्या करना चाहिए?

जेनेरल वि. के. सिंह बनाम भारतीय जनता


जेनेरल वि. के. सिंह इमानदार या एक अपराधी!

जेनेरल ने पहले अपने उम्र को ले कर केस लड़ा.

जेनेरल ने सेना में भी छुपे भ्रस्ताचार को उजागर किया ताकि कोई भी देश की सुरक्षा से कोई खिलवाड़ न कर सके चाहे कोई राजनेता या उसका कोई दलाल.

जेनेरल ने हमारे मंद बुद्धि प्रधान मंत्री को पत्र लिखा हमारी सुरक्षा की खामियों को लेकर....क्या एक प्रधानमंत्री को सुरक्षा की जानकारी देना गलत है......पर वो पत्र पब्लिक में कैसे गया इस बात के बारे में कोई भी नेता कुछ नहीं बोल रहा है की कहा से गलती हुई न पत्र में लिखे सवालो पर कोई बात.....बात सिर्फ इतनी हो रही है की पत्र पब्लिक हो गया और सरकार की किरकिरी हो गई और इसका ठीकरा फोड़ दो जेनेरल पर ताकि हम राजनेताओ का सर बच जाये......क्या ये सरकार हर उस बन्दे को गलत ठहरायेगी जो भ्रस्टाचार को उजागर करेगा या करने की कोशिस करेगा.........मुझे तो अब ये लग रहा है की हम सफ़ेद तालिबान शासन में जी रहे हैं जहाँ हमारी सेना के सर्वोच्च अधिकारी तक को न्याय नहीं मिल रहा है तो हम लोगो जैसे  आम आदमी की क्या बिसात........क्या हमारे राजनेता संसद में सो कर देश की शान बढ़ा रहे हैं और हमारी रक्षा करने वालो को ही टांग रहे हैं ताकि कोई उनकी ओह्देदारी को चुनौती ना दे सके........इसी लहजे पर हमारे लालू जी ने अपने जैसे कुछ कामचोरो और डकैत साथियों के साथ मिल कर हमारे जेनेरल को पद लोभी बता दिया.......क्या भ्रस्टाचार को उजागर करने वाला भारतीय पद लोलुप है........अभी तो ऐसा लग रहा है की कोई भी नेता चाहे सड़क छाप नेता (छुटभैया) या संसद में बैठा नेता कोई भी भरोषा करने लायक नहीं है...........कोई भी नेता सड़क छाप या संसद में बैठा नेता कोई भी किसी की पॉपुलरिटी अपने से ज्यादा नहीं देखना चाहता है.............पर हमें इससे क्या हमें तो सोना है.......ये परेशानी हमारे घर की थोड़े ही है.......जब हमारे घर पर आयेगी तो देखि जाएगी........अभी तो थोडा सोने दो दोस्तों........देश चाहे भांड में जाये हमें उससे क्या.......मेरे केवल आवाज उठाने से क्या होगा........इतने बड़े प्रोफाइल के लोगो से तो कुछ हो नहीं रहा है हम जैसे निरीह इंसानी खाल में छुपे जानवरों से क्या होगा.