11 May 2013

Just Think For Once

वो आए मेरे आशियाने में
गूंजी शहनाइयाँ घराने में
बजी घण्टियाँ मेरे दिल में
वो आ गए मेरे दहलीज में
बांध पायल नाजुक पैरों में
रचा मेहँदी अपने हाथों में
सिंदूर की साज रही मांग में
बिंदिया भी चमक रही माथे में
खनक रहीं चुड़ियाँ कलाई में
चमकती होंठलाली होंठों में
काजल भी सजाया आँखों में
हया भरी है नीची नजरों में
अंगूठे कुरेदते मिट्टी जमीन में
वो आ भी गए अब तो मेरे पहलू में
तभी टूटा सपना मच्छर भिनभिनाने में
पड़े थे हम अपनी उसी टूटी चारपाई में
हँसते थे दोस्त मेरे भी इस जमाने में
बावला है ये भेजो इसको पागलखाने में
कहा मैंने अपने उन हसोड़ दोस्तों में
रखा है क्या इस रंगीन जमाने में
सोचते हो तुम गलत बैठ इस मयखाने में
देखा मैंने शहादत अपने हसीन इस सपने में
क्यूँ रहते हो सिर्फ लड़कियों को आजमाने में
थोड़ा तो सोचो देश को इस बेदर्द जमाने में



2 comments:

  1. Great work. I am happy to see your intrest in Hindi poems.. I like to share you more poems like http://poem-shayari.blogspot.in/

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