11 May 2013

Just Think For Once

वो आए मेरे आशियाने में
गूंजी शहनाइयाँ घराने में
बजी घण्टियाँ मेरे दिल में
वो आ गए मेरे दहलीज में
बांध पायल नाजुक पैरों में
रचा मेहँदी अपने हाथों में
सिंदूर की साज रही मांग में
बिंदिया भी चमक रही माथे में
खनक रहीं चुड़ियाँ कलाई में
चमकती होंठलाली होंठों में
काजल भी सजाया आँखों में
हया भरी है नीची नजरों में
अंगूठे कुरेदते मिट्टी जमीन में
वो आ भी गए अब तो मेरे पहलू में
तभी टूटा सपना मच्छर भिनभिनाने में
पड़े थे हम अपनी उसी टूटी चारपाई में
हँसते थे दोस्त मेरे भी इस जमाने में
बावला है ये भेजो इसको पागलखाने में
कहा मैंने अपने उन हसोड़ दोस्तों में
रखा है क्या इस रंगीन जमाने में
सोचते हो तुम गलत बैठ इस मयखाने में
देखा मैंने शहादत अपने हसीन इस सपने में
क्यूँ रहते हो सिर्फ लड़कियों को आजमाने में
थोड़ा तो सोचो देश को इस बेदर्द जमाने में



2 May 2013

Some Moments Hurts

रात से मेरी आँखों मे नमी सी है,
लगता जीवन मे कुछ कमी सी है,
घर मे उकड़ू बैठे हम उदास से हैं,
दर्द क्या है, इससे अंजान से हैं,
हो गए चहरदीवारी मे बंद से हैं,
दिमाग ठंडा पड़ा जमा बर्फ सा है,
ना कोई खुशी ना ही उमंग सी है,
जिंदा हैं क्यूँ परे ये समझ से है।

रात से मेरी आँखों मे नमी सी है,
लगता जीवन मे कुछ कमी सी है,
गले मे आवाज भी ये बंधी सी है,
सिने मे भी मेरे तो कुछ दर्द सा है,
मन भी मेरा बावला विचलित सा है,
ढूँढता आज केवल ये अपनों सा है,
दिखती नहीं आने की आस सी है,
फिर भी मेरी आँखों मे तलाश सी है।

रात से मेरी आँखों मे नमी सी है,
लगता जीवन मे कुछ कमी सी है,
चारो ओर लगता झंझावात सा है,
आँखों से आंसुओं का बरसात सा है,
सामने औरों के पत्थर रख हँसते से हैं,
अंदर ही अंदर उस पत्थर से दबते से हैं,
होंठ भी पपड़ी पड़ सीले हुए से हैं,
दर्द ही दर्द मुझे आज मिले से हैं।

रात से मेरी आँखों मे नमी सी है,
लगता जीवन मे कुछ कमी सी है,
भरी भीड़ मे भी आज तन्हा से हैं,
तन्हाइ के सागर मे डूबते से हैं,
हर घड़ी हम केवल बेचैन से हैं,
क्या करें थोड़ा कम पढे-लिखे से हैं,
अब तो हम बंधुवा मजदूर से हैं,
क्या कहें अब "विनीत" मौन सा है।